अगर कभी भी शतरंज की चर्चा की जाती है तो पुरूषों का नाम लिया जाता हैं। वहीं इस खेल से भी महिलाओं को अलग-थलग रखा गया था। लेकिन यहां भी अपनी पेठ जमा ली। हालांकि इस क्षेत्र में लड़कियों को आगे बढ़ने की ओर जरूरत है। लेकिन आज अगर शतरंज के लिए आदर्श के तौर पर देखा जाए तो भाग्यश्री साठे का नाम आता है। जी हां, शतरंज में ग्रैंडमास्टर का खिताब जीतने वाली देश की पहली महिला थीं। 28 अगस्त 1986 को उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। भाग्यश्री साठे ने शतरंज में कई सारे खिताब अपने नाम किए हैं और दूसरों के लिए प्रेरणा बनी हैं।
भाग्यश्री साठे का जीवन
भाग्यश्री साठे का जन्म 4 अगस्त, 1961 को मुंबई में हुआ था। बचपन से ही उनका दिमाग तेज था, वह होशियार थी, मात्र 12 वर्ष की उम्र से ही वह शतरंज खेलने लगी थीं। बचपन से ही उनकी इस खेल में रूचि उत्पन्न हो गई थी। इस खेल में आगे बढ़ने का श्रेय वह अपने पिता जी को देती हैं। इस खेल में उनकी रूचि तब और जाग गई जब वह अपने पिता जी को हराने लगी थीं। अपने भाई-बहन के साथ भी वह खेला करती थीं। इस तरह से उनके शतरंज खेलने का सफर शुरू हुआ। लेकिन पढ़ाई में व्यस्तता के कारण वह बहुत अधिक शतरंज पर ध्यान नहीं दे पा रही थी। ऐसे में बाद में उन्होंने इस अपना शौक बना लिया।
इस तरह अपनी जीत दर्ज करती रहीं...
सन् 1979 में भाग्यश्री ने मद्रास नेशनल वुमन्स चेस चैम्पियनशिप में भाग लिया। और 8 वां स्थान प्राप्त किया।
सन् 1985 में भाग्यश्री ने मद्रास नेशनल वुमन्स चेस चैम्पियनशिप में जीत दर्ज की।
सन् 1985, 1986, 1988, 1991 और 1994 में इंडियन वुमन्स चैम्पियनशिप दर्ज की।
सन् 1991 में एशियाई वुमन्स चैम्पियनशिप जीत दर्ज की।
इतने सारे गेम जीतने के बाद उन्होंने वाय.एम.सी.ए नेशनल विमन्स चैस चैम्पियनशिप का खिताब जीता। यह उनके लिए सबसे बड़ा दिन था। लगातार अपनी जीत दर्ज करने के बाद उन्होंने इंटरनेशनल ग्रैंडमास्टर का खिताब अपने नाम किया। यह जीत अपने नाम करने वाली वह पहली महिला बनी।
पद्मश्री से किया सम्मानित....
28 अगस्त 1986 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
सन् 1987 में उन्हें अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया।