* आज भी वैज्ञानिक रहस्यों को उजागर कर रहा है 'रामचन्द्रन प्लॉट'
-नवनीत कुमार गुप्ता
नई दिल्ली। कुछ व्यक्ति विलक्षण प्रतिभा के धनी होते हैं, जो अपने उल्लेखनीय कार्यों की वजह से इतिहास में अमर हो जाते हैं। गोपालसमुन्द्रम नारायणा रामचन्द्रन भारतीय विज्ञान जगत में ऐसा ही एक नाम है। उन्हें 'जीएन रामचन्द्रन' के नाम से भी जाना जाता है। रामचन्द्रन 20वीं सदी के सबसे प्रतिभाशाली भारतीय वैज्ञानिकों में से एक थे। उन्होंने आणविक जीव विज्ञान में कई महत्वपूर्ण खोजें कीं और प्रोटीन संरचना का उन्होंने विशेष रूप से अध्ययन किया।
जीएन रामचन्द्रन ने शरीर के महत्वपूर्ण घटक प्रोटीन का विस्तृत अध्ययन करते हुए कोलैजन की त्रिकुंडलीय संरचना की व्याख्या की। उनके इस कार्य को आज 'रामचन्द्रन फाई-साई डायग्राम' या 'रामचन्द्रन प्लॉट' के नाम से जाना जाता है। उनके कार्य ने पॉलिपेप्टाइडों की सभी त्रिविध रासायनिक यानी स्टीरियो केमिस्ट्री संरचनाओं को समझने के लिए आधार प्रस्तुत किया। रामचन्द्रन द्वारा किए गए कार्यों को आज भी त्रिकुंडलीय संरचना के क्षेत्र में विशेष संदर्भ के रूप में देखा जाता है।
8 अक्टूबर 1922 को केरल के एरनाकुलम में जन्मे रामचन्द्रन बचपन से ही प्रतिभावान थे। उनके पिता गणित के प्रसिद्ध प्रोफेसर थे, लेकिन उन्होंने रामचन्द्रन को गणित के अलावा भौतिकी और रसायन विज्ञान में अध्ययन को प्रेरित किया, हालांकि वे उन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा में भेजना चाहते थे लेकिन रामचन्द्रन भौतिकी से दिल लगा चुके थे।
उनकी प्रतिभा को निखारने में सर सीवी रमन का भी योगदान है जिनके मार्गदर्शन में रामचन्द्रन ने भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु से डॉक्टरेट किया। रामचन्द्रन ने विभिन्न ठोस पदार्थों, जैसे फ्लुओस्पार, हीरा तथा जिंक ब्लैंडी आदि की प्रकाश प्रत्यास्थता यानी फोटो इलास्टिसिटी तथा ताप प्रकाशी यानी थर्मोऑप्टिक गतिविधियों पर रमन के निर्देशन में शोध कार्य किया।
1947 में रामचन्द्रन को डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि प्रदान की गई। इसके बाद उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में डब्ल्यूए वूस्टर के मार्गदर्शन में शोध कार्य किया। उन दिनों कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की कैवेंडिश प्रयोगशाला में सर विलियम लॉरेंस ब्रैग निदेशक पद पर थे। वहां उन्हें प्रसिद्ध वैज्ञानिक लाइनस पॉलिंग से मिलने का अवसर मिला। यह रामचन्द्रन के लिए विशेष मौका था। उनके लिए पॉलिंग किसी हीरो से कम नहीं थे, क्योंकि उन्होंने उन्हीं दिनों पॉलिपेप्टाइडों की अल्फा हेलिकल संरचना की खोज की थी।
कैंब्रिज से अपना पोस्ट डॉक्टरेट का कार्य पूरा करके रामचन्द्रन 1949 में भारत लौट आए और भारतीय विज्ञान संस्थान में भौतिकी विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्य करने लगे। 30 वर्ष की उम्र में वे मद्रास विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष बनकर भारतीय विज्ञान संस्थान से चले गए।
मद्रास विश्वविद्यालय में उनके द्वारा किए गए शोध कार्यों ने विश्वविद्यालय को काफी प्रसिद्धि दिलाई। वर्ष 1970 में वे वापस भारतीय विज्ञान संस्थान में कार्य करने आए और उन्हें वहां आणविक जैव भौतिकी का नया विभाग खोलने की जिम्मेदारी दी गई। औपचारिक रूप से वर्ष 1971 में खुला यह विभाग आज देश में संरचनात्मक जीव विज्ञान के प्रमुख अध्ययन केंद्र के रूप में पहचान बना चुका है।
रामचन्द्रन को वर्ष 1961 में भौतिकी के शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया और वर्ष 1977 में वे रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन के सदस्य बने। सीएसआईआर के सूक्ष्म जीव प्रौद्योगिकी संस्थान में भी उनकी स्मृति में प्रो. जीएन रामचन्द्रन प्रोटीन केंद्र स्थापित किया गया है। यह प्रोटीन विज्ञान, इंजीनियरिंग और जैव प्रौद्योगिकी प्रोटीन के क्षेत्र में परामर्श केंद्र के रूप में कार्य कर रहा है।
रामचन्द्रन की दर्शनशास्त्र, भारतीय एवं पश्चिमी संगीत में गहरी रुचि थी। एक वैज्ञानिक होने के साथ-साथ वे एक बेहतरीन वक्ता भी थे। वे भौतिकी की अत्यंत जटिल अवधाराणाओं को सरल शब्दों में समझाते थे। एक अच्छे शिक्षक के साथ ही वे अच्छे कवि भी थे। उन्होंने विज्ञान, धर्म, दर्शन और उपनिषदों पर कविताएं लिखी हैं। 7 अप्रैल 2001 को जीएन रामचन्द्रन की मृत्यु हुई। विज्ञान प्रसार द्वारा उनके जीवन एवं कार्यों पर एक वृत्तचित्र का निर्माण भी किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)