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पं. जवाहरलाल नेहरू के 5 प्रेरक किस्से

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विनम्र और विनोदप्रिय व्यक्तित्व के धनी पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pt. Jawaharlal Nehru) को भला कौन नहीं जानता। वे स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। यहां पढ़ें नेहरू जी के जीवन के 5 रोचक किस्से- 
 
1. आत्मनिर्भरता 
 
नेहरू जी इंग्लैंड के हैरो स्कूल में पढ़ाई करते थे। एक दिन सुबह अपने जूतों पर पॉलिश कर रहे थे तब अचानक उनके पिता पं. मोतीलाल नेहरू वहां जा पहुंचे। जवाहरलाल को जूतों पर पॉलिश करते देख उन्हें अच्छा नहीं लगा, उन्होंने तत्काल नेहरूजी से कहा- क्या यह काम तुम नौकरों से नहीं करा सकते।
 
जवाहरलाल ने उत्तर दिया- जो काम मैं खुद कर सकता हूं, उसे नौकरों से क्यों कराऊं? नेहरू जी का मानना था कि इन छोटे-छोटे कामों से ही व्यक्ति आत्मनिर्भर होता है।

2. बचपन के नेहरू
 
यह घटना जवाहरलाल नेहरू के बाल्यकाल की है। जब चाचा नेहरू बच्चे थे, उनके घर पिंजरे में एक तोता पलता था। पिता मोतीलाल जी ने तोते की देखभाल का जिम्मा अपने माली को सौंप रखा था। एक बार नेहरू जी स्कूल से वापस आए तो उन्हें देखकर तोता जोर-जोर से बोलने लगा। नेहरू जी को लगा कि तोता पिंजरे से आजाद होना चाहता है। उन्होंने पिंजरे का दरवाजा खोल दिया। तोता आजाद होकर एक पेड़ पर जा बैठा और नेहरू जी की ओर देख-देखकर कृतज्ञ भाव से कुछ कहने लगा। 
 
उसी समय माली आ गया। उसने डांटा- 'यह तुमने क्या किया!' मालिक नाराज होंगे। बालक नेहरू ने कहा- 'सारा देश आजाद होना चाहता है। तोता भी चाहता है। आजादी सभी को मिलनी चाहिए।'

3.विनोदप्रिय नेहरू
 
एक बार एक बच्चे ने ऑटोग्राफ पुस्तिका नेहरूजी के सामने रखते हुए कहा- साइन कर दीजिए। बच्चे ने ऑटोग्राफ देखे, देखकर नेहरू जी से कहा- आपने तारीख तो लिखी ही नहीं!
 
बच्चे की इस बात पर नेहरू जी ने उर्दू अंकों में तारीख डाल दी! 
 
बच्चे ने इसे देख कहा- यह तो उर्दू में है। नेहरू जी ने कहा- भाई तुमने साइन अंगरेजी शब्द कहा- मैंने अंगरेजी में साइन कर दी, फिर तुमने तारीख उर्दू शब्द का प्रयोग किया, मैंने तारीख उर्दू में लिख दी। ऐसे थे विनोदप्रिय नेहरू जी।

4. नसीहत
 
यह बात उन दिनों की है जब पंडित जवाहरलाल नेहरू लखनऊ की सेंट्रल जेल में थे। लखनऊ सेंट्रल जेल में खाना तैयार होते ही मेज पर रख दिया जाता था। सभी सम्मिलित रूप से खाते थे। एक बार एक डायनिंग टेबल पर एक साथ सात आदमी खाने बैठे। तीन आदमी नेहरूजी की तरफ और चार आदमी दूसरी तरफ।
 
एक पंक्ति में नेहरूजी थे और दूसरी में चंद्रसिंह गढ़वाली। खाना खाते समय शकर की जरूरत पड़ी। बर्तन कुछ दूर था चीनी का, चंद्रसिंह ने सोचा- 'आलस्य करना ठीक नहीं है, अपना ही हाथ जरा आगे बढ़ा दिया जाए।' चंद्रसिंह ने हाथ बढ़ाकर बर्तन उठाना चाहा कि नेहरूजी ने अपने हाथ से रोक दिया और कहा- 'बोलो, जवाहरलाल शुगर पाट (बर्तन) दो।'
 
वे मारे गुस्से के तमतमा उठे। फिर तुरंत ठंडे भी हो गए और समझाने लगे- 'हर काम के साथ शिष्टाचार आवश्यक है। भोजन की मेज का भी अपना एक सभ्य तरीका है, एक शिष्टाचार है। यदि कोई चीज सामने से दूर हो तो पास वाले को कहना चाहिए- 'कृपया इसे देने का कष्ट करें।' शिष्टाचार के मामले में नेहरू जी ने कई लोगों को नसीहत प्रदान की थी। ऐसे थे नेहरू जी।

5. नेहरू जी की विनम्रता 
 
पंडित जवाहर लाल नेहरू एक बार इलाहबाद में कुंभ के मेले में गए। वहां प्रधानमंत्री के आगमन की बात सुनकर आम जनता का मजमा उमड़ पड़ा, तभी नेहरू जी की कार लोगों की भीड़ के बीच धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। वहां लगी भीड़ नेहरू जी को देखने के लिए उतावली हो रही थी। उनकी एक झलक दिखते ही ‘जवाहरलाल नेहरू की जय’ के नारे गूंजने लगते। 
 
तभी वहां अचानक एक वृद्ध महिला भीड़ को चीरते हुए नेहरू जी की कार के सामने पहुंची और जोर-जोर से चिल्लाने लगी, 'अरे ओ जवाहर, कहां है तू? सुन मेरी बात, तू कहता है न कि आजादी मिल गई है, किसे मिली है आजादी? तुम जैसे मोटर में घूमने वालों को ही आजादी मिली होगी, हम जैसे गरीब लोगों को कहां? देख, मेरे बेटे को एक नौकरी तक नहीं मिल रही। अब बता कहां है आजादी?'
 
उसकी बात सुनकर नेहरू ज ने तुरंत कार रुकवाई, वे कार से उतरे और उस वृद्ध महिला के सामने जाकर हाथ जोड़कर खड़े हो गए और विनम्र स्वर में बोले, 'मां जी! आप पूछ रही हैं कि आजादी कहां हैं? क्या आपको आजादी नहीं दिख रही? आज आप अपने देश के प्रधानमंत्री को ‘तू’ कहकर संबोधित कर रही हैं, उसे डांट रही हैं, आप क्या पहले ऐसा कर सकती थीं? अपनी शिकायत लेकर आप बेहिचक मेरे सामने चली आई, यही तो असली आजादी है। 
नेहरू जी की विनम्रता देखकर और उनकी बात सुनकर वृद्धा का गुस्सा गायब हो गया। फिर नेहरू जी ने उसे आश्वासन दिया कि उसकी शिकायत पर गौर किया जाएगा। 

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