प्रारंभिक जीवन : लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तरप्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। इनके पिताजी का नाम शारदा प्रसाद और माताजी का नाम रामदुलारी देवी था। इनकी पत्नी का नाम ललिता देवी था। इनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। इन्हें जब काशी विद्यापीठ से 'शास्त्री' की उपाधि मिली तो इन्होंने अपना जातिसूचक शब्द 'श्रीवास्तव' हटाकर अपने नाम के आगे 'शास्त्री' लगा लिया और कालांतर में 'शास्त्री' शब्द 'लालबहादुर' के नाम का पर्याय ही बन गया।
'जय जवान, जय किसान' का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री किसानों को जहां देश का अन्नदाता मानते थे, वहीं देश के जवानों के प्रति भी उनके मन में अगाध प्रेम था। वे एक प्रसिद्ध भारतीय राजनेता, महान स्वतंत्रता सेनानी और जवाहरलाल नेहरू और गुलजारीलाल नंदा (कार्यवाहक प्रधानमंत्री) के बाद भारत के तीसरे प्रधानमंत्री थे।
उन्होंने देश को न सिर्फ सैन्य गौरव का तोहफा दिया बल्कि हरित क्रांति और औद्योगीकरण की राह पर भी उसे आगे ले गए। वे बेहद ही सादगीपसंद व ईमानदार राजनेता थे। वे अत्यंत ही निर्धन परिवार के थे। स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के लिए वे गंगा नदी पार कर दूसरी ओर बसे स्कूल पढ़ने जाते थे। इन्होंने बाद में काशी विद्यापीठ स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की थी।
राजनीतिक जीवन : गांधीजी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन के दौरान लाल बहादुर थोड़े समय के लिए 1921 में जेल गए थे। गांधीजी के अनुयायी के रूप में वे फिर राजनीति में लौटे व कई बार जेल गए। बाद में उप्र कांग्रेस पार्टी में प्रभावशाली पद ग्रहण किए। प्रांत की विधायिका में 1937 और 1946 में शास्त्रीजी निर्वाचित हुए। 1929 में इनकी नेहरूजी से मुलाकात के बाद इनकी नजदीकी नेहरूजी से भी बढ़ी। नेहरू मंत्रिमंडल में वे गृहमंत्री के तौर पर सम्मिलित हुए। इस पद पर वे 1951 तक बने रहे। 1951 में नेहरूजी के नेतृत्व में वे अभा कांग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त हुए। 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस को जिताने के लिए इन्होंने बहुत परिश्रम किया।
1964 में प्रधानमंत्री बने : नेहरूजी के निधन के बाद शास्त्रीजी प्रधानमंत्री बने। 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 तक वे प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहे। 'जय जवान, जय किसान' का नारा शास्त्रीजी ने ही दिया था। वे छोटे कद के महान राजनेता थे। 1965 के भारत-पाक युद्ध में शास्त्रीजी के नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया था।
पुरस्कार और सम्मान : उन्हें वर्ष 1966 में भारतरत्न से सम्मानित किया गया। लाल बहादुर शास्त्री के सम्मान में भारतीय भारतीय डाक विभाग ने एक डाक टिकट भी जारी किया है।