Veer Savarkar Jyanati 2023
विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) भारत के महान क्रांतिकारी थे। वे विश्वभर के क्रांतिकारियों में अद्वितीय थे। वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी, इतिहासकार, समाज सुधारक, विचारक, चिंतक, क्रांतिकारी, साहित्यकार थे। उनका जीवन बहुआयामी था। उनका नाम ही भारतीय क्रांतिकारियों के लिए उनका संदेश था। उनकी पुस्तकें क्रांतिकारियों के लिए गीता के समान थीं।
वीर सावरकर का जन्म नासिक के भगूर गांव में 28 मई 1883 (Veer Savarkar Birth) को हुआ था। पिता का नाम दामोदर पंत सावरकर और माता का नाम राधाबाई था। उनके पिता गांव के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में जाने जाते थे। जब विनायक 9 साल के थे, तब ही उनकी माता का देहांत हो गया था। वे बचपन से ही वे पढ़ाकू थे। बचपन में उन्होंने कुछ कविताएं भी लिखी थीं। उन्होंने शिवाजी हाईस्कूल, नासिक से 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की।
आजादी के लिए काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो 'मित्र मेला' के नाम से जानी गई। 1905 के बंग-भंग के बाद उन्होंने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। पुणे में फर्ग्युसन कॉलेज में पढ़ने के दौरान वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देकर सबको प्रभावित कर देते थे। उन्हें तिलक की अनुशंसा पर 1906 में श्यामजी कृष्ण वर्मा छात्रवृत्ति मिली। 'इंडियन सोसियोलॉजिस्ट' और 'तलवार' में उन्होंने अनेक लेख लिखे, जो बाद में कोलकाता के 'युगांतर' में भी छपे।
वे रूसी क्रांतिकारियों से ज्यादा प्रभावित थे। लंदन में रहने के दौरान सावरकर की मुलाकात लाला हरदयाल से हुई। लंदन में वे इंडिया हाउस की देखरेख भी करते थे। मदनलाल धींगरा को फांसी दिए जाने के बाद उन्होंने 'लंदन टाइम्स' में भी एक लेख लिखा था। उन्होंने धींगरा के लिखित बयान के पर्चे भी बांटे थे। 1909 में लिखी पुस्तक 'द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857' में सावरकर ने इस लड़ाई को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आजादी (Indian Politician) की पहली लड़ाई घोषित किया।
वीर सावरकर 1911 से 1921 तक अंडमान जेल में रहे। 1921 में वे स्वदेश लौटे और फिर 3 साल जेल में रहे। उन्होंने जेल में 'हिन्दुत्व' पर शोध ग्रंथ लिखा। 1937 में वे हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गए। 1943 के बाद वे दादर, मुंबई में रहे।
उन्होंने 9 अक्टूबर 1942 को भारत की स्वतंत्रता के लिए चर्चिल को समुद्री तार भेजा और आजीवन अखंड भारत के पक्षधर रहे। आजादी के माध्यमों के बारे में गांधीजी और सावरकर का नजरिया अलग-अलग था। वे दुनिया के पहले ऐसे कवि थे, जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई 10 हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा।
उनका संपूर्ण जीवन स्वराज्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करते हुए ही बीता। वीर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी एवं प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। भारत के इस महान क्रांतिकारी का निधन 26 फरवरी 1966 (Veer Savarkar Death) को हुआ था। उनका स्वतंत्रता संग्राम में दिया गया योगदान प्रशंसनीय और सराहनीय है।