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'संख्याओं के जादुगर' भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जयंती

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srinivasa ramanujan
 
-उमाशंकर मिश्र
 
दुनिया में जहां भी संख्याओं पर आधारित खोजों एवं विकास की बात होती है तो भारत की गणितीय परंपरा को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया जाता है। भारत में हुई शून्य एवं दशमलव जैसी बुनियादी गणितीय खोजें इसका महत्वपूर्ण कारण मानी जाती हैं। इन मूलभूत खोजों ने गणित को एक ऐसा आधार प्रदान किया है जिसके आधार पर सभ्यताओं के विकास का क्रम आज चांद और मंगल की जमीन तक पहुंच चुका है।
 
गणितीय सिद्धांतों के बिना आकाश में उड़ान भरने, समुद्र की गहराई नापने और भौगोलिक पैमाइश की कल्पना करना भी मुश्किल था। विज्ञान के जिन सिद्धांतों के आधार पर खड़े होकर हम तरक्कियों का दंभ भरते हैं, वे गणित के बिना बिलकुल संभव नहीं थीं। ऐसे में आज अगर हम भारतीय गणितज्ञों के कार्य और उनके योगदान को याद करके याद करते हैं और भारत भूमि से उनके जुड़ाव का उत्सव मनाते हैं तो वह अनायास नहीं है।
 
भारत में हर साल 22 दिसंबर को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय गणित दिवस देश के उन महान गणितज्ञों को न केवल एक श्रद्धांजलि है, बल्कि यह भावी पीढ़ियों को गणित के महत्व और उसके प्रयोगों से जुड़ने के लिए प्रेरित करने का भी दिन है। भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) की 125वीं वर्षगांठ के मौके पर उनको श्रद्धांजलि देते हुए वर्ष 2012 को 'राष्ट्रीय गणित वर्ष' घोषित किया गया था। इसके साथ ही श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिन 22 दिसंबर को 'राष्ट्रीय गणित दिवस' भी घोषित किया गया।
 
रामानुजन ने पिछली सदी के दूसरे दशक में गणित की दुनिया को एक नया आयाम दिया। बहुत कम लोग जानते होंगे कि पाश्चात्यी गणितज्ञ जीएस हार्डी ने श्रीनिवास रामानुजन को यूलर, गॉस, आर्कमिडीज तथा आईजैक न्यूटन जैसे दिग्गजों की समान श्रेणी में रखा था। इसके पीछे मात्र 32 वर्ष के उनके जीवनकाल की गणितीय साधना जुड़ी थी।
 
उनके छोटे-से जीवनकाल की उपलब्धियों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रामानुजन के निधन के बाद उनकी 5,000 से अधिक प्रमेय (थ्योरम्स) छपवाई गईं। इन गणितीय प्रमेयों में अधिकतर ऐसी थीं जिन्हें कई दशक बाद तक भी सुलझाया नहीं जा सका। गणित के क्षेत्र में की गई रामानुजन की खोजें आधुनिक गणित और विज्ञान की बुनियाद बनकर उभरी हैं। उन्हें 'गणितज्ञों का गणितज्ञ' और 'संख्याओं का जादुगर' कहा जाता है। रामानुजन को यह संज्ञा 'संख्या-सिद्धांत' पर उनके योगदान के लिए दी जाती है।
 
 
मद्रास से 400 किलोमीटर दूर ईरोड में 1887 में जन्मे श्रीनिवास रामानुजन को भारत के उन लोगों में शुमार किया जाता है जिन्होंने विश्व में नए ज्ञान को पाने और खोजने की पहल की। कुम्भकोणम के प्राइमरी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा के बाद वर्ष 1898 में उन्होंने हाईस्कूल में प्रवेश लिया और सभी विषयों में बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए। उसी दौरान रामानुजन को गणित पर जीएस कार की लिखी पुस्तक पढ़ने का अवसर मिला। इस पुस्तक से प्रभावित होकर रामानुजन की रुचि गणित में बढ़ने लगी।
 
 
घर की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए रामानुजन ने क्लर्क की नौकरी कर ली। वे खाली पन्नों पर अक्सर गणित के सवाल हल करते रहते थे। एक शुभचिंतक की नजर उन पन्नों पर पड़ गई और वह काफी प्रभावित हुआ। उसने रामानुजन को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रो. हार्डी के पास भेजने का प्रबंध कर दिया। प्रो. हार्डी ने ही रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना जिसका सम्मान आज पूरी दुनिया करती है।
 
वह एक ऐसा दौर था, जब भारतीयों को अंग्रेज वैज्ञानिकों के सामने अपनी बात रखने में भी संकोच होता था। बिना किसी अंग्रेज गणितज्ञ की सहायता के शोध-कार्यों को आगे बढ़ाना भी संभव नहीं था। रामानुजन के शुभचिंतकों ने उनके कार्यों को लंदन के प्रसिद्ध गणितज्ञों के पास भेजा, हालांकि कुछ खास लाभ नहीं हुआ। 
 
उसी दौरान रामानुजन ने अपने संख्या-सिद्धांत के कुछ सूत्र प्रोफेसर शेषू अय्यर को दिखाए तो उनका ध्यान लंदन के ही प्रोफेसर हार्डी की तरफ गया। प्रोफेसर हार्डी उस समय के विश्व के प्रसिद्ध गणितज्ञों में से एक थे। प्रोफेसर हार्डी के शोध को पढ़ने के बाद रामानुजन ने बताया कि उन्होंने हार्डी के अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर खोज लिया है। इसके बाद प्रोफेसर हार्डी से रामानुजन का पत्र व्यवहार शुरू हो गया। इस तरह रामानुजन को वह जौहरी मिल गया, जो एक हीरे की पहचान करना जानता था।
 
 
रामानुजन ने शुरुआत में जब अपना शोधकार्य प्रोफेसर हार्डी के पास भेजा तो प्रथम दृष्टया वे भी उसे समझ नहीं पाए। अपने मित्र गणितज्ञों से चर्चा करने के बाद हार्डी इस नतीजे पर पहुंचे कि रामानुजन गणित के क्षेत्र में एक असाधारण व्यक्ति हैं। इसी आधार पर रामानुजन के कार्य को ठीक से समझने और उसमें आगे शोध के लिए उन्हें इंग्लैंड आने के लिए आमंत्रित किया गया।
 
विज्ञान, इंजीनियरिंग एवं तकनीक से लेकर व्यापार-वाणिज्य या फिर तमाम ललित कलाओं के पीछे गणित का योगदान कहीं-न-कहीं छिपा हुआ है। विषम परिस्थितियों में पले-पढ़े रामानुजन ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी परिसर में अपनी शोध पताका फहराकर प्रत्येक भारतवासी को गौरवान्वित कराया।
 
 
भारत की गणित के क्षेत्र में बहुत बड़ी और गौरवशाली परंपरा है जिसे प्रोत्साहित करने की जरूरत है। उस परंपरा के प्रति स्वाभिमान जागृत करने और नई पीढ़ी को उससे परिचित कराने की जरूरत है। आज भी भारत में रामानुजन जैसी प्रतिभाओं की कमी नहीं है।


हमें जरूरत है, ऐसी प्रतिभाओं की पहचान करने वाले किसी प्रो. हार्डी और संवेदनशील उच्च संस्थानों की, जो गरीबी और विपरीत परिस्थितियों से निकले किसी रामानुजन जैसी प्रतिभा को हतोत्साहित न होने दें। 'गणित दिवस' के मौके पर ऐसा संकल्प करना ही उस महान गणितज्ञ को सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। (इंडिया साइंस वायर)

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