Tharu bride's first kitchen
Indian tribal culture: थारू जनजाति उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई इलाकों में निवास करने वाली एक अनोखी जनजाति है। उनकी संस्कृति और परंपराएं आज भी लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। थारू दुल्हन की पहली रसोई (First Kitchen of Tharu Bride) इसी सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
थारू दुल्हन की पहली रसोई का महत्व
थारू जनजाति में शादी के बाद नई नवेली दुल्हन की पहली रसोई को बेहद खास माना जाता है। इस रसोई का न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक महत्व भी है। इस रस्म के दौरान दुल्हन पहली बार अपने परिवार और खासकर पति के लिए खाना बनाती है।
क्या बनाती है दुल्हन पहली रसोई में?
पहली रसोई में थारू दुल्हन पारंपरिक व्यंजन तैयार करती है, जिसमें चावल, दाल, सब्जी और खासतौर पर "अर्हर की दाल" शामिल होती है। इस खाने को पूरे परिवार के साथ साझा किया जाता है, जो परिवार में एकता और सौहार्द का प्रतीक है।
इस रस्म में दुल्हन अपने पति को पैर से एक थाली खिसकाकर खाना खिलाती है।
पैरों से थाली देने की रस्म का महत्व
इस रस्म में दुल्हन अपने पति को पैर से एक थाली खिसकाकर खाना खिलाती है। दुल्हा भी इस रस्म को प्यार से निभाता है। जब दुल्हन थाली को उसके पैर से खिसकाती है, तो वह उसे पहले अपने सिर पर लगाता है। ऐसा करके वह दुल्हन का सम्मान करता है और इस रस्म के महत्व को दर्शाता है। इस रस्म को 'अपना-पराया' कहा जाता है। इसका मतलब है कि दुल्हन अब इस परिवार की अपनी तो हो गई है, लेकिन साथ ही वह अपने मायके से भी जुड़ी हुई है।
थारू महिलाओं के इस अनोखे रिवाज का रहस्य
जानकारों का कहना है कि थारू जनजाति की महिलाओं के इस अनोखे रिवाज की जड़ें इतिहास से जुडी हैं। मना जाता है कि ये महिलाएं अतीत में किसी शक्तिशाली राजवंश से संबंध रखती थीं। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद, जब उनके वंश का पतन हुआ, तो उन्हें मजबूरी में सैनिकों और सेवकों से विवाह करना पड़ा।
शादी करने से उन्हें जीवनसाथी तो मिल गए, लेकिन अपने ऊंचे कुल और समाजिक दर्जे में पतन की वजह से उन्हें मानसिक पीड़ा होती रही। कहा जा सकता है कि इस मानसिक पीड़ा को व्यक्त करने और शायद किसी तरह का बदला लेने के लिए, उन्होंने यह अनूठी परंपरा शुरू की।
सैम हिगिनबाटम इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालाजी एंड साइंसेज के मानव विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं के अनुसार, थाली को पैर से ठोकर मारकर देना, महिलाओं के लिए एक तरह का प्रतीकात्मक विरोध था। यह दिखाता था कि वे अपने पतियों के प्रति आभारी हैं, लेकिन साथ ही वे अपने पूर्वजों की गौरवशाली विरासत को भी नहीं भूल पाई हैं।
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