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क्या है कांजीवरम साड़ी की कहानी, दक्षिण भारत की बुनाई में घुलती सोने-चांदी की चमक

परंपरा और शिल्प की अद्भुत कारीगरी, दक्षिण भारत से मिली थी खास पहचान

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WD Feature Desk

, शनिवार, 28 सितम्बर 2024 (12:12 IST)
Kanjivaram Sarees

Kanjivaram Silk Sarees: कांचीवरम सिल्क साड़ी भारतीय संस्कृति और परंपरा की ऐसी धरोहर है, जो देशभर में अपनी अनूठी पहचान रखती है। इसे भारत की सबसे प्राचीन और खूबसूरत साड़ियों में गिना जाता है। तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर में तैयार की जाने वाली यह साड़ी न सिर्फ अपनी बेहतरीन शिल्पकारी बल्कि अपनी टिकाऊ गुणवत्ता के लिए भी प्रसिद्ध है। कांचीवरम साड़ी का नाम सुनते ही साड़ी प्रेमियों की आंखों में चमक आ जाती है। आज इस आलेख में हम आपको कांचीवरम सिल्क साड़ी से जुड़ी रोचक जानकारी देंगे।

कांचीवरम साड़ी का इतिहास
कांचीवरम साड़ी का इतिहास लगभग 400 साल पुराना है। यह साड़ियां चोल, पल्लव और विजयनगर साम्राज्य के शासनकाल से जुड़ी हुई हैं, जो कांचीपुरम को एक समृद्ध सांस्कृतिक और व्यापारिक केंद्र बनाती थीं। स्थानीय कारीगरों द्वारा बुनी गई इन साड़ियों में शाही आकर्षण झलकता है। कहा जाता है कि यहां के कारीगर विश्वकर्मा समुदाय से जुड़े हैं, जो अपनी पारंपरिक बुनाई कला के लिए प्रसिद्ध हैं।

कांचीवरम सिल्क साड़ी की विशेषताएं
कांचीवरम साड़ी की खासियत उसकी बुनाई तकनीक में छिपी है। इसे शुद्ध रेशम से तैयार किया जाता है और इसमें जरी का प्रयोग होता है, जो इसे विशेष रूप से आकर्षक और शाही बनाता है। इन साड़ियों की बुनाई में पारंपरिक मंदिर, हाथी, मोर, और फूलों के डिज़ाइन देखे जा सकते हैं, जो भारतीय संस्कृति का प्रतीक हैं।
इसके अलावा, कांचीवरम साड़ी को हाथ से बुना जाता है और इसका पल्लू, बॉर्डर और शरीर (मध्य भाग) अलग-अलग बुने जाते हैं, जिससे यह अन्य साड़ियों से अलग दिखती है। एक अच्छी कांचीवरम साड़ी का वजन 500 ग्राम से लेकर 1 किलो तक हो सकता है, जो इसकी टिकाऊ और भारी रेशमी बनावट को दर्शाता है।

कांचीवरम साड़ी का महत्व
कांचीवरम सिल्क साड़ी न केवल दक्षिण भारत, बल्कि पूरे भारत में विशेष मौकों पर पहनी जाती है। यह दक्षिण भारतीय शादी समारोहों का अनिवार्य हिस्सा है, जहां दुल्हन के परिधान में इसे सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसकी चमकदार रेशमी बनावट और जरी काम इसे खास अवसरों के लिए सबसे उपयुक्त बनाते हैं। भारतीय परंपरा में इसे एक मूल्यवान तोहफे के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है।

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कैसे पहचानें असली कांचीवरम साड़ी?
कांचीवरम साड़ी की पहचान करना भी एक कला है। असली कांचीवरम साड़ी हमेशा शुद्ध रेशम से बनी होती है, और इसकी जरी 22 कैरेट सोने और चांदी के धागों से बुनी जाती है। असली साड़ी का बॉर्डर और पल्लू हमेशा शरीर से अलग बुने होते हैं और उन्हें खास तरीके से जोड़ा जाता है। इसके अलावा, असली साड़ी में जब इसे जलाया जाता है, तो इसकी राख में बाल की तरह गंध आती है, क्योंकि यह शुद्ध रेशम से बनी होती है।
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क्यों लाखों में पहुंच जाती है कीमत?
बुनाई की बारीकियों और इसमें लगने वाली लेबर की वजह से एक लूप पर 3 लोग काम कर सकते हैं। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं, कि आज कांजीवरम साड़ी की कीमत 1 लाख या उससे भी ज्यादा हो सकती है। किसी साड़ी पर पेंटिंग, तो किसी पर सोने-चांदी का काम किया जाता है। जाहिर है कि ये साड़ियां Work Of Art होती हैं और इन्हें बनाने वाले बुनकर किसी कलाकार से कम नहीं हैं।

कांचीवरम सिल्क की देखभाल: कैसे रखें अपनी साड़ी को नया?
कांचीवरम सिल्क साड़ियाँ अपनी बारीक बुनावट और शानदार शिल्पकारी के लिए जानी जाती हैं, और उनकी देखभाल करना बेहद जरूरी होता है ताकि वे लंबे समय तक नई जैसी बनी रहें। सबसे पहले, साड़ी को किसी मुलायम कॉटन के कपड़े में लपेटकर रखें और इसे सीधा मोड़ें, ताकि साड़ी पर क्रीज न पड़े। साड़ी को कभी भी सीधी धूप में ना सुखाएँ, बल्कि छांव में सुखाएं, ताकि उसका रंग फीका न हो। जब भी साड़ी को धोने की जरूरत हो, तो हल्के हाथों से साड़ी को धोएं और बेहतर होगा कि इसे ड्राई क्लीन कराएं। इसे नियमित रूप से अलमारी से बाहर निकाल कर हवा लगाना भी जरूरी है, ताकि सिल्क की चमक और मजबूती बनी रहे।

आज के दौर में कांचीवरम साड़ी
आधुनिकता के इस युग में भी कांचीवरम साड़ी का आकर्षण कम नहीं हुआ है। फैशन की बदलती दुनिया में भी यह साड़ी अपनी पारंपरिक और आधुनिक डिजाइन में बेहद लोकप्रिय है। ऑनलाइन शॉपिंग की सुविधा के कारण अब यह साड़ी देश-विदेश में आसानी से उपलब्ध है।
कांचीवरम सिल्क साड़ी भारतीय हस्तशिल्प और परंपरा का एक अद्भुत उदाहरण है। इसकी सुंदरता, टिकाऊपन और भव्यता इसे विशेष अवसरों के लिए पहली पसंद बनाती है। अगर आप भी भारतीय परंपरा और शिल्प की इस अमूल्य धरोहर को अपनी वॉर्डरोब का हिस्सा बनाना चाहती हैं, तो कांचीवरम सिल्क साड़ी से बेहतर कुछ नहीं हो सकता।
 

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