Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

जब दलित महिलाओं से स्तन ढकने पर वसूला जाता था 'मुलक्कारम' टैक्स

जातिगत भेदभाव का काला अध्याय: एक ऐसा कानून जिसने इतिहास को किया शर्मसार

हमें फॉलो करें जब दलित महिलाओं से स्तन ढकने पर वसूला जाता था 'मुलक्कारम' टैक्स

WD Feature Desk

, बुधवार, 13 नवंबर 2024 (12:27 IST)
केरल के त्रावणकोर राज्य में 19वीं सदी के दौरान दलित महिलाओं को नहीं था स्तन ढकने का अधिकार

Mulakkaram Tax: भारत का इतिहास अनेक रंगों से भरा हुआ है, लेकिन इसमें कुछ ऐसे काले अध्याय भी शामिल हैं, जो सामाजिक भेदभाव और असमानता को दर्शाते हैं। इन्हीं में से एक है 'मुलक्कारम' - एक ऐसा टैक्स जिसे त्रावणकोर राज्य में दलित महिलाओं से स्तन ढकने के लिए वसूला जाता था। यह कहानी न केवल जातिगत भेदभाव की है, बल्कि उस अन्याय की भी, जिसने समाज के निचले वर्ग के लोगों को उनके मूल अधिकारों से वंचित किया।
  • एक ऐसा कानून जहां 'तन' ढकने को देना पड़ता था टैक्स
  • महिलाओं की छाती ढकने पर फाड़ देते थे कपड़े
  • 'ब्रेस्ट टैक्स' से मुक्ति के लिए काटना पड़े थे स्तन
 
क्या था 'मुलक्कारम' - एक अमानवीय कानून?
त्रावणकोर राज्य, जो वर्तमान केरल में स्थित था, में 19वीं सदी के दौरान एक ऐसा नियम लागू था जिसमें दलित महिलाओं से स्तन ढकने के लिए टैक्स लिया जाता था। इस टैक्स का नाम था 'मुलक्कारम'। उच्च जाति के लोगों का मानना था कि निम्न जातियों की महिलाएं समाज में उनके बराबर नहीं हैं और उन्हें अपने स्तन ढकने का अधिकार नहीं है।

किसने और कब लागू किया ‘ब्रेस्ट टेक्स’
सन 1729 में त्रावणकोर साम्राज्य की स्थापना मद्रास प्रेसीडेंसी के अंतर्गत हुई, जिसके राजा मार्थंड वर्मा थे। इस साम्राज्य ने न केवल प्रशासनिक नियम बनाए, बल्कि कर वसूली के कई असमान नियम भी लागू किए। इनमें से एक था ‘ब्रेस्ट टैक्स’ या स्तन कर। यह एक अपमानजनक और भेदभावपूर्ण टैक्स था, जिसे दलित और ओबीसी वर्ग की महिलाओं पर लगाया गया था। ब्रेस्ट टैक्स का उद्देश्य था, निचले वर्ग की महिलाओं को अपने स्तनों को ढकने से रोकना था। यह कर सीधे तौर पर तथाकथित उच्च और निम्न वर्ग की जाति के बीच अंतर को दर्शाने और बनाए रखने के लिए लागू किया गया था।

कैसे लागू होता था यह टैक्स और कौन थे इसके शिकार?
इस टैक्स का सबसे अधिक प्रभाव दलित समुदाय की महिलाओं पर पड़ा। यदि कोई महिला स्तन ढकती थी, तो उसे यह टैक्स भरना पड़ता था। यह कानून अमानवीय और असमानता से भरा हुआ था। समाज में दलित महिलाओं के प्रति भेदभाव और अत्याचार का यह एक प्रमुख उदाहरण था।

त्रावणकोर के समाज में दलित महिलाओं पर अन्याय
त्रावणकोर के समाज ने निचले वर्ग की महिलाओं पर इस टैक्स का बोझ इसलिए डाला ताकि सामाजिक भेदभाव और ऊँच-नीच का भान बनाए रखा जाए। उन पर यह कर्तव्य थोप दिया गया कि वे समाज के ऊपरी वर्गों के सामने अपनी स्थिति को स्वीकार करें। यह टैक्स इस बात का प्रतीक था कि समाज में महिलाओं को उनके शारीरिक अधिकारों से भी वंचित किया जा रहा है।

कपड़े पहनने पर राजपुरोहित फाड़ देते थे चाकू से कपड़े
जब नादर महिलाओं ने अपने शरीर को कपड़ों से ढकना शुरू किया, तो यह खबर राजपुरोहित तक पहुंचाई जाती थी। राजपुरोहित अपने साथ एक लंबी लाठी लेकर चलता था। इस लाठी के सिरे पर एक चाकू बंधी होती थी। जैसे ही उसे पता चलता कि किसी महिला ने अपने शरीर को कपड़ों से ढका है, वह उसी चाकू से उनके कपड़े फाड़ देता था। इस प्रक्रिया में महिलाओं के ब्लाउज को पेड़ों पर टांग दिया जाता था ताकि समाज को एक संदेश मिल सके कि नादर वर्ग की महिलाएं ऐसा प्रयास ना करें।

राजपुरोहित का उद्देश्य केवल नादर वर्ग की महिलाओं को अपमानित करना नहीं था, बल्कि एक संदेश देना भी था कि वे अपने पहनावे के जरिए किसी भी प्रकार की समानता की कोशिश न करें। पेड़ों पर कपड़े टांगने का मकसद भी यही था कि समाज के दूसरे लोग इसे देख सकें और वे ऐसा करने की हिम्मत न जुटा पाएं।

ब्रेस्ट टैक्स के खिलाफ नंगेली का विद्रोह
इस टैक्स का विरोध करने के लिए कई महिलाएं सामने आईं, लेकिन इनमें से एक नाम जिसे इतिहास ने संजो कर रखा है, वह है 'नंगेली' का। नंगेली ने इस कर के विरोध में अपने स्तन काटकर उसे अधिकारियों के समक्ष केले के पत्ते पर रख कर प्रस्तुत किया। इस साहसी कदम के कारण नांगेली की मृत्यु हो गई, परंतु उसका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनके इस साहसी कदम ने समाज में बड़ी हलचल मचाई और यह ब्रेस्ट टैक्स को समाप्त करने के लिए एक प्रेरणा स्रोत बना।

नांगेली की चिता में कूदकर पति ने भी दी जान
नांगेली की मौत के बाद उसके दुखी पति चिरकंडुन ने भी नांगेली की चिता में कूदकर अपनी जान दे दी। भारत के इतिहास में किसी पुरुष के 'सती' होने की यह इकलौती घटना है। इस घटना के बाद विद्रोह और हिंसा का न थमने वाला दौर शुरू हो गया। महिलाओं ने कानून के विरूद्ध जाकर पूरे कपड़े पहनना शुरू कर दिए। मद्रास के कमिश्नर को त्रावणकोर राजा के महल जाकर ये मानना पड़ा कि हिंसा को रोकना नामुमकिन साबित हो रहा है। और आखिरकार राजा को घोषणा करनी पड़ी कि अब नादर जाति की महिलाएं बिना टैक्स के ऊपर कपड़े पहन सकती हैं।

webdunia
केरल के त्रावणकोर राज्य में 19वीं सदी के दौरान दलित महिलाओं को नहीं था स्तन ढकने का अधिकार


ब्रेस्ट टैक्स का अंत और इसका ऐतिहासिक प्रभाव
नंगेली जैसे साहसिक विरोध के बाद, जनता में जागरूकता बढ़ी और त्रावणकोर राज्य को इस अपमानजनक कर को समाप्त करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसका भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा और इससे जातिवाद के प्रति समाज में एक नई चेतना जागृत हुई। यह एक ऐसा संघर्ष था, जिसने न केवल त्रावणकोर बल्कि संपूर्ण भारत में सामाजिक समानता के प्रति जागरूकता फैलाई।

जातिगत भेदभाव की विरासत और उसका अंत
जैसे-जैसे समाज में जागरूकता बढ़ी, वैसे-वैसे इस तरह के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठी। 19वीं सदी के अंत में समाज सुधारकों और जागरूक व्यक्तियों ने इस कानून के खिलाफ आवाज उठाई, जिसके परिणामस्वरूप त्रावणकोर राज्य को इस टैक्स को समाप्त करना पड़ा।
 
यह इतिहास का एक ऐसा अध्याय है जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि जातिवाद और सामाजिक भेदभाव का प्रभाव कितना गहरा और दर्दनाक रहा है। इस अमानवीय कानून का अंत यह दर्शाता है कि संघर्ष और जागरूकता से समाज में बदलाव लाया जा सकता है।


अस्वीकरण (Disclaimer) : सेहत, ब्यूटी केयर, आयुर्वेद, योग, धर्म, ज्योतिष, वास्तु, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार जनरुचि को ध्यान में रखते हुए सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इससे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जम्मू कश्मीर में महसूस हुआ 5.2 तीव्रता का भूकंप, जानमाल का कोई नुकसान नहीं