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संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिन्दी में संबोधित करने वाले पहले भारतीय नेता थे अटलजी

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संयुक्त राष्ट्र , गुरुवार, 16 अगस्त 2018 (21:15 IST)
संयुक्त राष्ट्र। अटल बिहारी वाजपेयी भारत के ऐसे पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिन्दी में भाषण दिया था और परमाणु निरस्त्रीकरण, सरकार प्रायोजित आतंकवाद और विश्व संस्था में सुधार जैसे अहम मुद्दों पर बेहद प्रभावी तरीके से भारत का रुख स्पष्ट किया था।
 
वर्ष 1977 से 2003 तक बतौर विदेश मंत्री एवं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सात बार संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) को संबोधित किया।
 
अपनी वाकपटुता के लिये मशहूर वाजपेयी ने वर्ष 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार में बतौर विदेश मंत्री पहली बार यूएनजीए के 32वें सत्र को संबोधित किया था।
 
अपने संबोधन में उन्होंने कहा, 'संयुक्त राष्ट्र में मैं नया हूं, लेकिन भारत नहीं। हालांकि इस संगठन के साथ मैं इसके आरंभ से ही बेहद सक्रिय रूप में जुड़ा हूं।'
 
वाजपेयी ने इस ऐतिहासिक संबोधन में कहा, 'एक ऐसा शख्स जो अपने देश में दो दशक और उससे अधिक समय तक सांसद रहा, लेकिन पहली बार राष्ट्रों की इस सभा में हिस्सा लेकर अपने अंदर विशेष अनुभूति महसूस कर रहा हूं।'
 
यह पहली बार था जब किसी भारतीय नेता ने यूएनजीए में अपना भाषण हिन्दी में दिया था क्योंकि वैश्विक मंच पर प्रमुख भाषा होने के कारण अन्य भारतीय नेता अंग्रेजी भाषा का चयन करते थे। 
 
कहा जाता है कि वाजपेयी धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलते थे, लेकिन संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण के लिये उस वक्त हिन्दी के चयन के पीछे उनका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय पटल पर हिन्दी को उभारना था।
 
उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन के विषय को छुआ और कहा कि भारत शांति, गुटनिरपेक्षता एवं सभी देशों के साथ मित्रता के लिए बहुत दृढ़ता के साथ खड़ा है।
 
वाजपेयी ने कहा, 'वसुधैव कुटुम्बकम की परिकल्पना बहुत पुरानी है। भारत में सदा से हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है। भारत में हम सभी वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा में विश्वास रखते हैं।'
 
अपने भाषण में उन्होंने कहा कि भारत पाकिस्तान के साथ संबंधों के सामान्यीकरण की प्रक्रिया को मजबूत करने की उम्मीद कर रहा है, न केवल स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए, बल्कि लाभकारी द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए।
 
वर्ष 1978 में वाजपेयी एक बार फिर बतौर विदेश मंत्री यूएनजीए गये और वहां उन्होंने परमाणु निरस्त्रीकरण का मुद्दा उठाया।
 
वर्ष 1998 में वाजपेयी ने बतौर प्रधानमंत्री यूएनजीए को संबोधित किया और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से न्यूयार्क में मुलाकात की। उन्होंने कहा, 'भारत ने यह दिखाया है कि लोकतंत्र की जड़ें एक विकासशील देश में स्थापित हो सकती हैं।'
 
वर्ष 2000 में वाजपेयी संयुक्त राष्ट्र के सहस्त्राब्दी शिखर सम्मेलन को संबोधित करने के लिए यूएनजीए गए। वहां उन्होंने आतंकवाद, परमाणु युद्ध के खतरे और भारत के परमाणु कार्यक्रम के बारे में बात की।
 
वर्ष 2001 में उन्होंने एक बार फिर यूएनजीए के 56वें सत्र को संबोधित किया और कुछ देशों द्वारा आतंकवाद को प्रायोजित करने की नीति के बारे में बात की। यह सत्र 9/11 हमले के बाद हुआ था।
 
वर्ष 2002 में यूएनजीए के 57वें सत्र में अपने संबोधन में वाजपेयी ने एक बार फिर सरकार प्रायोजित आतंकवाद एवं दक्षिण एशिया में परमाणु धमकी का मुद्दा उठाया।
 
वर्ष 2003 में वाजपेयी ने यूएनजीए में अपना अंतिम भाषण दिया था। यूएनजीए के 58वें सत्र के संबोधन में वाजपेयी ने इराक का उदाहरण देकर विश्वसंस्था की आलोचना करते हुए कहा था, 'संयुक्त राष्ट्र विवादों को रोकने या उनके समाधान में हमेशा से सफल नहीं रहा है।' (भाषा) 

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