बीजिंग। चीन के सरकारी मीडिया ने गुरुवार को कहा कि अगर भारत दलाई लामा को अरुणाचल प्रदेश की यात्रा करने की अनुमति देकर घटिया खेल खेलता है तो चीन को भी ईंट का जवाब पत्थर से देने में हिचकना नहीं चाहिए।
दो अंग्रेजी अखबारों- 'चाइना डेली' और 'ग्लोबल टाइम्स' ने भारत के गृह राज्यमंत्री किरण रिजीजू के बयान के बाद भारत पर तीखा हमला बोला है। रिजीजू ने कहा था कि अरुणाचल प्रदेश, जिसे चीन दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है, वह भारत का अभिन्न हिस्सा है।
रिजीजू की टिप्पणियों पर विरोध जताते हुए इन अखबारों ने कहा कि भारत दलाई लामा का इस्तेमाल चीन के खिलाफ एक रणनीतिक औजार के रूप में कर रहा है। वह ऐसा इसलिए कर रहा है, क्योंकि चीन ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता और जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध के खिलाफ वीटो जैसे मजबूत अधिकार का इस्तेमाल किया है।
'चाइना डेली' ने अपने संपादकीय में कहा कि नई दिल्ली ने न सिर्फ 14वें दलाई लामा को दक्षिणी तिब्बत में आने की इजाजत दी बल्कि तिब्बती आजादी के आध्यात्मिक नेता को भारत के गृह मामलों के कनिष्ठ मंत्री ने एक सैर भी करवाई। दक्षिणी तिब्बत भारत द्वारा अवैध ढंग से कब्जाया गया ऐतिहासिक चीनी क्षेत्र है और भारत उसे 'अरुणाचल प्रदेश' कहता है। संपादकीय में कहा गया कि बीजिंग के लिए यह दोहरा अपमान है।
संपादकीय में कहा गया, 'बीजिंग के कूटनीतिक अभिवेदनों से एक पंक्ति लेकर रिजीजू खुद को मासूम समझ सकते हैं लेकिन उन्होंने यहां एक मूल अंतर को नजरअंदाज कर दिया कि ताइवान और चीन के किसी भी अन्य हिस्से की तरह, तिब्बत चीनी क्षेत्र का हिस्सा है फिर चाहे नयी दिल्ली इसपर सहमत हो या न हो।'
इसमें कहा गया, 'दूसरी ओर, दक्षिणी तिब्बत को उनके (रिजीजू के) देश के पूर्व औपनिवेशिक स्वामी ने चीन के अंदरूनी तनाव का फायदा उठाते हुए चुरा लिया था। यदि रिजीजू को दक्षिणी तिब्बत की स्थिति को लेकर कोई सवाल हो तो वह ऐतिहासिक अभिलेखागारों से संपर्क कर सकते हैं।'
इसमें कहा गया, 'न तो मैकमोहन रेखा को और न ही मौजूदा अरूणाचल प्रदेश को चीन का समर्थन प्राप्त है। इसी रेखा के जरिए भारत दक्षिणी तिब्बत पर अपने असल नियंत्रण को उचित ठहराता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस क्षेत्र पर भारत का कब्जा कानूनी तौर पर असमर्थनीय है। इसलिए इसका इस्तेमाल एक लाभ के तौर पर करना न सिर्फ अनुचित है बल्कि अवैध भी है।'
इसमें कहा गया, 'ऐतिहासिक विवाद के बावजूद चीन-भारत सीमा क्षेत्र हाल में अमूमन शांत ही रहा है। खासकर तब जबकि बीजिंग और नयी दिल्ली ने सीमा वार्ताओं के बारे में गंभीर होना शुरू कर दिया है।' (भाषा)