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चीन का पाकिस्तान को खुला समर्थन, पाक-चीन की 'फौलादी दोस्ती' से भारत को चुनौती

चीन ने पाकिस्तान के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता दोहराई है

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, मंगलवार, 6 मई 2025 (16:07 IST)
China Pak alliance is a new challenge for India: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव ने एक बार फिर दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक तस्वीर को उजागर किया है। इस संकट के बीच, चीन ने अपने ‘फौलादी भाई’ पाकिस्तान के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता दोहराई है। चीनी राजदूत जियांग जैदोंग ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से मुलाकात में इस्लामाबाद को ‘दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता’ के लिए पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया। यह बयान न केवल चीन-पाकिस्तान की गहरी रणनीतिक साझेदारी को रेखांकित करता है, बल्कि भारत के लिए नई चुनौतियां भी प्रस्तुत करता है। 
 
चीन का पाकिस्तान को समर्थन केवल द्विपक्षीय नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन का हिस्सा है। दक्षिण एशिया में भारत की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए पाकिस्तान चीन का सबसे भरोसेमंद मोहरा है। संयुक्त राष्ट्र और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों पर दोनों देश एक-दूसरे का साथ देते हैं। कश्मीर मुद्दे पर चीन का पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा होना भारत की कूटनीतिक चुनौतियों को बढ़ाता है।
 
वैश्विक स्तर पर, BRI और अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति के बीच टकराव में पाकिस्तान चीन का रणनीतिक हथियार है। पहलगाम हमले के बाद, जहां रूस और अमेरिका ने भारत का साथ दिया, चीन का पाकिस्तान के पक्ष में खुलकर आना इस भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण को और गहरा करता है।
 
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: माओ से सीपैक
चीन और पाकिस्तान का रिश्ता 21 मई, 1951 को औपचारिक रूप से शुरू हुआ, लेकिन इसकी जड़ें 1949 में माओ त्से तुंग के कम्युनिस्ट चीन की स्थापना तक जाती हैं। जब पश्चिमी देश ताइवान को ही ‘वैध चीन’ मानते थे, पाकिस्तान ने बीजिंग को मान्यता देकर दोस्ती की नींव रखी। 1963 का सीमा समझौता, जिसमें शक्सगाम घाटी जैसे विवादित क्षेत्रों पर सहमति बनी, ने इस रिश्ते को और पुख्ता किया। 1980 और 1990 के दशक में रक्षा, व्यापार और बुनियादी ढांचे में सहयोग ने इसे नई ऊंचाइयां दीं और 1996 की ‘व्यापक सहयोगी साझेदारी’ ने इसे औपचारिक ढांचा प्रदान किया।
 
आज, यह साझेदारी केवल कागजी नहीं, बल्कि सैन्य और आर्थिक स्तर पर एक रणनीतिक गठजोड़ है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), जो 62 अरब डॉलर की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा है, इस रिश्ते का सबसे चमकदार प्रतीक है। यह गलियारा न केवल व्यापारिक मार्ग है, बल्कि भारत को घेरने की चीन की रणनीति का हथियार भी है।
 
सैन्य सहयोग : पाकिस्तान की ताकत में चीन की हिस्सेदारी
चीन और पाकिस्तान के बीच सैन्य सहयोग दशकों पुराना है, लेकिन हाल के वर्षों में इसने नई ऊंचाइयां छुई हैं। चीन ने पाकिस्तान को J-10C लड़ाकू विमान, HQ-9 वायु रक्षा प्रणाली और अन्य उन्नत हथियार प्रदान किए हैं। J-10C, जो 2022 में पाकिस्तानी वायुसेना में शामिल हुआ, एक बहु-भूमिका वाला फाइटर जेट है, जो भारत के राफेल जैसे विमानों के लिए चुनौती पेश कर सकता है। 
 
पाकिस्तानी रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ के हालिया दावे में उन्होंने कहा कि 29-30 अप्रैल की रात नियंत्रण रेखा (LoC) के पास पाकिस्तानी सेना ने भारतीय वायुसेना के चार राफेल विमानों को इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग के जरिए पीछे हटने के लिए मजबूर किया। यदि यह दावा सत्य है, तो यह न केवल पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य क्षमता को दर्शाता है, बल्कि इसके पीछे चीन की तकनीकी सहायता की भूमिका को भी रेखांकित करता है। 
 
पाकिस्तान की 'क्विड प्रो क्वो प्लस' नीति, जिसमें भारत के किसी भी हमले का तीव्र और असीमित जवाब देने की रणनीति शामिल है, चीन के समर्थन के बिना अधूरी है। चीन की सैन्य सहायता न केवल पाकिस्तान की रक्षा क्षमता को मजबूत करती है, बल्कि भारत के खिलाफ एक रणनीतिक संतुलन भी बनाए रखती है।
 
आर्थिक और भू-राजनीतिक हित : सीपैक और ग्वादर, भारत के लिए आर्थिक घेराबंदी
CPEC चीन और पाकिस्तान के लिए एक रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक है। यह गलियारा चीन को मध्य पूर्व, अफ्रीका और यूरोप तक सुरक्षित और छोटा व्यापार मार्ग देता है, जिससे मलक्का जलडमरूमध्य पर उसकी निर्भरता कम होती है। दूसरी ओर, पाकिस्तान की टूटी-फूटी अर्थव्यवस्था को सड़कों, रेल, ऊर्जा संयंत्रों और औद्योगिक क्षेत्रों में निवेश से नई जान मिली है। हाल ही में, चीन ने बलूचिस्तान में 1 अरब डॉलर की मेडिकल सिटी की योजना की घोषणा की, जो इस गठजोड़ की गहराई को दर्शाती है।
 
ग्वादर बंदरगाह इस गलियारे का ताज है। अरब सागर में स्थित यह बंदरगाह न केवल व्यापारिक केंद्र है, बल्कि हिंद महासागर में चीन की नौसैनिक ताकत का प्रतीक है। ग्वादर एयरपोर्ट, फ्री ज़ोन और एक्सप्रेसवे के विकास से चीन को मध्य एशिया और पश्चिम एशिया से जोड़ने में मदद मिलेगी। यह भारत के चाबहार बंदरगाह और समुद्री हितों के लिए सीधी चुनौती है। ग्वादर के जरिए चीन भारत को आर्थिक और रणनीतिक रूप से घेरने की कोशिश कर रहा है।
 
क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव : चीन का पाकिस्तान को समर्थन केवल द्विपक्षीय नहीं, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति संतुलन का हिस्सा है। दक्षिण एशिया में भारत की बढ़ती ताकत को संतुलित करने के लिए पाकिस्तान चीन का सबसे विश्वसनीय साझेदार है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर, जैसे संयुक्त राष्ट्र और शंघाई सहयोग संगठन (SCO), दोनों देश एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। उदाहरण के लिए, कश्मीर मुद्दे पर चीन ने कई बार पाकिस्तान का साथ दिया है, जिससे भारत की कूटनीतिक चुनौतियां बढ़ी हैं।
 
वैश्विक स्तर पर, चीन की BRI और अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा में पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण मोहरा है। पहलगाम हमले के बाद, जहां रूस और अमेरिका ने भारत का समर्थन किया, चीन का पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा होना इस भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण को और गहरा करता है।
 
भारत के सामने चुनौतियां : क्या है रास्ता?
चीन-पाकिस्तान का यह ‘फौलादी’ गठजोड़ भारत के लिए त्रिआयामी खतरा है :
  • सैन्य मोर्चा : पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य ताकत और चीन की तकनीकी सहायता भारत की रक्षा रणनीति को जटिल बनाती है।
  • आर्थिक मोर्चा : CPEC और ग्वादर भारत के चाबहार बंदरगाह और क्षेत्रीय व्यापारिक महत्वाकांक्षाओं को चुनौती देते हैं।
  • कूटनीतिक मोर्चा : अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन-पाकिस्तान की एकजुटता भारत के हितों को नुकसान पहुंचाती है।
 
भारत को इस दोहरे खतरे से निपटने के लिए तुरंत कदम उठाने होंगे :
  • सैन्य सशक्तीकरण : इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, साइबर सुरक्षा और स्वदेशी हथियारों में निवेश को बढ़ाना होगा।
  • आर्थिक रणनीति : चाबहार बंदरगाह और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) को तेजी से विकसित करना होगा।
  • कूटनीतिक गठजोड़ : रूस, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे साझेदारों के साथ क्वाड और अन्य मंचों पर सहयोग को गहरा करना होगा।
भारत को इस स्थिति से निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी। सैन्य स्तर पर, अपनी रक्षा क्षमता को और मजबूत करना, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और साइबर सुरक्षा में निवेश, आवश्यक है। आर्थिक स्तर पर, चाबहार बंदरगाह और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) को तेजी से विकसित करना होगा। कूटनीतिक स्तर पर, रूस, अमेरिका और अन्य साझेदारों के साथ गठजोड़ को और गहरा करना होगा। (इस आलेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्रोतों पर आधारित है)

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