कैटोविस। बढ़ते समुद्री जल स्तर और विनाशकारी अकाल जैसे संकट के खतरे का सामना कर रहे देश सोमवार को पोलैंड में होने वाले संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में अमीर देशों से जलवायु परिवर्तन के खतरे से निबटने के लिए अपनी हिस्सेदारी देने की गुहार लगाएंगे।
सीओपी24 वार्ता में होंडुरास, नाइजीरिया और बांग्लादेश के राष्ट्रपति के शरीक होने की संभावना है। ये देश इन खतरों का सामना कर रहे हैं। इस दौरान उन वादों पर भी बात होगी जिन पर 2015 में पेरिस जलवायु समझौते में सहमति बनी थी।
मेजबान पोलैंड खुद कोयले से प्राप्त होने वाली ऊर्जा पर बहुत ज्यादा निर्भर है। वह जीवाश्म ईंधन छोड़ने के लिए उचित व्यवस्था के अपने एजेंडा पर जोर देगा और आलोचकों का कहना है कि यह उसे दशकों तक प्रदूषण फैलाने की मंजूरी देने जैसा होगा। पेरिस समझौते में देश वैश्विक तापमान में वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने या संभव हो तो 1.5 डिग्री के भीतर रखने पर एकमत हुए थे।
करीब 200 देशों के प्रतिनिधि दो हफ्ते तक इस बात पर चर्चा करेंगे कि व्यावहारिक रूप से इन लक्ष्यों को कैसे प्राप्त किया जा सकता है। यहां धन एक बड़ा विवाद बना हुआ है। संरा की जलवायु पर विशेषज्ञ समिति का कहना है कि सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को पाने की आशा तभी की जा सकती है जब जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन को वर्ष 2030 तक आधा कर दिया जाए।