मेलबर्न। दुनियाभर में कोयले पर निर्भर देशों को बुरी तरह से एक-दूसरे से जुड़ी 2 चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें एक चुनौती है आर्थिक समृद्धि तथा राजनीतिक समर्थन को बनाए रखना जबकि दूसरी चुनौती ग्रह को गर्म होने से रोकने के लिए कोयले के इस्तेमाल को कम करना है।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का कहना है कि जीवाश्म ईंधन के जरिए अक्षय ऊर्जा में तेजी से परिवर्तन अपरिहार्य है, लेकिन यह दुनिया के लिए 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए पर्याप्त तेजी से यह परिवर्तन नहीं हो रहा है। ऐसा करने के लिए कोयले से बिजली उत्पादन में नए निवेश को रोकने की जरूरत है। साथ ही मौजूदा कोयला उद्योगों को चरणबद्ध तरीके से तेज गति से समाप्त करने की आवश्यकता है।
हालांकि इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि कोयले के इस्तेमाल को खत्म करने का परिणाम आर्थिक संकट या बिजली की कमी नहीं होना चाहिए, लेकिन दूसरी ओर यह बात स्पष्ट है कि कोयले का इस्तेमाल नहीं रोकने से जलवायु और उसके बाद आर्थिक त्रासदी पेश आ सकती है।
शोधकर्ताओं ने व्यवस्थित रूप से उन राष्ट्रों की नीतियों की अच्छी तरह से समीक्षा की है, जो कोयले के इस्तेमाल को खत्म करने के मार्ग पर हैं। इसके अलावा जो देश इस पर काम कर रहे हैं, शोधकर्ता उन्हें मार्गदर्शन भी मुहैया करा रहे हैं। इन देशों के लिए शोधकर्ताओं के पास एक ही मूल मंत्र है कि सक्रिय रहें, सहयोग करें और बाधाओं को तोड़ें।
तेजी और व्यवस्थित तरीके से कोयले का इस्तेमाल खत्म करने वाली सरकारों ने आमतौर पर मांग और आपूर्ति समर्थित नीतियों के एक सक्रिय, सहयोगी और अच्छी तरह से समन्वित योजना बनाई है। प्रमुख मांग-समर्थित नीति में कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र, ऊर्जा की खपत को कम करना, ऊर्जा दक्षता में सुधार करना, अक्षय ऊर्जा के तेजी से विस्तार के लिए मजबूत वित्तपोषण और बुनियादी ढांचा प्रदान करना है।
आपूर्ति-समर्थित नीतियां जैसे सब्सिडी को खत्म करना, प्रत्यक्ष विनियमन, कराधान और निर्यात लाइसेंसिंग के माध्यम से कोयला उद्योग को बंद करना भी महत्वपूर्ण है। वायु गुणवत्ता, स्वास्थ्य और पर्यावरणीय परिणामों पर कोयले के नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के लिए नियामक कार्रवाइयां अक्सर महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसी तरह मिशन-उन्मुख उद्योग नीतियां भी आर्थिक नवीनीकरण और रोजगार सृजन को चलाती हैं।
अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्पेन और कनाडा जैसे कोयले के इस्तेमाल को खत्म करने वाले देशों की पहुंच अपेक्षाकृत सस्ते विकल्पों तक है और वे कोयले पर निर्भर क्षेत्रों में श्रमिकों और समुदायों के लिए नई ऊर्जा अवसंरचना और समर्थन का वित्त पोषण करने में सक्षम हैं।
दूसरी ओर चीन, भारत और बांग्लादेश जैसे कोयले पर निर्भर देशों को भी तेजी से बढ़ती ऊर्जा मांग का प्रबंधन करने की जरूरत है। वे अक्षय ऊर्जा के वित्त पोषण और क्षेत्रीय समुदायों का समर्थन करने में बजटीय चुनौतियों का सामना करते हैं।
ऑस्ट्रेलिया, कोलंबिया और इंडोनेशिया सहित कोयला निर्यातक देशों को भी निर्यात आय के वैकल्पिक स्रोत पैदा करने में कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि हरित इस्पात और हरित हाइड्रोजन जैसे नए कम उत्सर्जन निर्यात उद्योगों में कम लागत वाली नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल की संभावना के बढ़ते प्रमाण हैं।