- महिलाओं के लिए सबसे पहली गर्भ निरोधक गोली 18 अगस्त 1960 के दिन अमेरिका में बिकनी शुरू हुई थी।
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प्रजनन प्रक्रिया के दौरान लगभग 8 से 10 करोड़ शुक्राणु स्त्री के डिम्बाणु तक पहुंचने के लिए दौड़ लगाते हैं।
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शुक्राणुओं की नलिका को चैनल SLO3 नाम दिया गया है।
महिलाओं के लिए सबसे पहली गर्भ निरोधक गोली 18 अगस्त 1960 के दिन अमेरिका में बिकनी शुरू हुई थी। पिछले 6 दशकों से इस प्रकार की कई गोलियां दुनियाभर में उपलब्ध हैं, लेकिन पुरुषों के लिए कोई कारगर गर्भ निरोधक गोली बनाने के अब तक के सारे प्रयास वांछित परिणाम दे नहीं पाए। तब भी, शोधकर्ता निराश नहीं हैं।
पुरुषों के लिए कोई गर्भ निरोधक गोली या दवा निश्चित रूप से ऐसी होनी चाहिए, जो उनके शुक्राणुओं को इस तरह निष्क्रिय बना दे कि वे स्त्री की प्रजनन प्रणाली के डिम्बाणुओं को निषेचित (फ़र्टिलाइज़) न कर पाएं। डिम्बाणु (ओवम) निषेचित नहीं होगा, तो गर्भधारण के लिए कोई भ्रूण (एम्ब्रियो) भी नहीं बनेगा।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि मानव प्रजनन प्रक्रिया के दौरान लगभग 8 से 10 करोड़ शुक्राणु स्त्री के डिम्बाणु तक पहुंचने के लिए दौड़ लगाते हैं। डिम्बाणु से उनका मिलन अधिकतर डिम्बवाहिका (फैलोपियन ट्यूब) में होता है। वे डिम्बाणु तक का रास्ता तभी तय कर सकते हैं, जब इसके समर्थ हों। विशेष रूप से अंतिम कुछ मिलीमीटर दूरी को वे कैसे तय करते हैं, यह लंबे समय तक स्पष्ट नहीं था।
इस प्रश्न का उत्तर चूहों से मिला। शोधकों ने कुछ साल पूर्व पाया कि चूहों के शुक्राणुओं वाली कोशिकाओं में पिचकारी जैसी एक ऐसी बहुत पतली नलिका (चैनल) होती है, जिसके द्वारा वे पोटेशियम के अति सूक्ष्म अयनों को पीछे की तरफ पंप करते हैं। इससे उन्हें आगे की तरफ़ बढ़ने की गति मिलती है। डिम्ब तक सबसे पहले पहुंचने वाला शुक्राणु ही उसके साथ एकाकार होकर उसे निषेचित करता है।
अतीत में सही उपकरण नहीं थे : शुक्राणुओं की इस नलिका को चैनल SLO3 नाम दिया गया है। यह चैनल मानव शुक्राणुओं में भी पाया जाता है। जर्मनी के म्युन्स्टर विश्वविद्यालय के अस्पताल में इस दिशा में शोध कार्य कर रहे प्रजनन विशेषज्ञों का कहना है कि मानव शुक्राणुओं में भी SLO3 चैनल होने का यही अर्थ है कि मानव शुक्राणु भी स्त्री के डिम्बाणु तक पहुंचने के लिए इस चैनल का उसी तरह उपयोग करते हैं, जिस तरह चूहों के शुक्राणु करते हैं।
मानव शुक्राणुओं की इस क्षमता का अतीत में पता इसलिए नहीं लग पाया, क्योंकि तब इसे जानने के लिए सही उपकरण नहीं थे। एक अमेरिकी शोध टीम ने इस बीच इसकी पुष्टि की है कि मानव शुक्राणु भी SLO3 चैनल का पोटेशियम अयनों के लिए पिचकारी की तरह उपयोग करते हुए स्त्री के डिम्बाणु तक पहुंचने की कोशिश करते हैं।
अपने प्रयोगों की सत्यता की पुष्टि के लिए अमेरिकी शोधकों ने एक ऐसे रासायनिक एजेंट की खोज की, जिसकी सहायता से उन्होंने SLO3 चैनल को अवरुद्ध कर देखा कि तब क्या होता है। उन्होंने पाया कि तब शुक्राणुओं की SLO3 चैनल से पोटेशियम अयनों का उत्सर्जन बंद हो गया। वे डिम्बाणु तक पहुंचने के समर्थ नहीं रहे।
शुक्राणु को पंगु बनाना होगा : जर्मनी के म्युन्स्टर विश्वविद्यालय अस्पताल के शोधकर्ता, अमेरिकी शोधकों की खोज को बहुत उत्साहवर्धक मानते हैं। उनका कहना है कि अब देखना यह है कि क्या पुरुष शुक्राणुओं की SLO3 चैनल को आधार बनाकर कोई ऐसी दवा या गोली बनाई जा सकती है, जो इन शुक्राणुओं को स्त्री डिम्बाणु निषेचित करने के पूरी तरह असमर्थ बना सके।
निषेचन की यथासंभव शत-प्रतिशत अक्षमता बहुत ज़रूरी है, क्योंकि ऐसा न होने पर स्त्री के गर्भधारण की कुछ न कुछ संभावना बनी रहेगी। पुरुषों के लिए ऐसी किसी गर्भरोधक या निरोधक दवा अथवा गोली के लिए लाइसेंस मिलने की शर्तें भी इसी कारण बहुत कठोर होंगी। ऐसी कोई गोली या दवा बनाने के प्रयास पहले भी हुए हैं, पर वे चले नहीं।
जर्मनी के ही म्युनिक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर्तुअर मेयरहोफर का मत है कि पुरुषों की शुक्राणु कोशिकाओं के बारे में नए ज्ञान के आधार पर उनके लिए गर्भ निरोधक बनाने का एक नया प्रयास किया जाना चाहिए। SLO3 चैनल केवल शुक्राणुओं में होते हैं। अतः शुक्राणुओं के लिए बना निरोधक पदार्थ स्त्री के डिम्बाणु का केवल निषेचन नहीं कर पाएगा, न कि डिम्बाणु या स्त्री के शरीर के साथ कोई हानिकारक रासायनिक क्रिया करेगा।
प्रोफेसर मेयरहोफर इसे एक बहुत अच्छा तरीका मानते हैं। तब भी प्रयोगशाला की परखनली से बाज़ार तक पहुंची किसी दवा या गोली के बनने में अभी समय लगेगा। साथ ही यह भी देखना होगा कि 8 से 10 करोड़ शुक्राणुओं को निष्क्रिय बनाने वाला पदार्थ कहीं पुरुषों के पुरुषत्व को ही निष्क्रिय न बनाने लगे।