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पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर, क्यों नहीं मदद कर रहा है चीन?

हमें फॉलो करें पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर, क्यों नहीं मदद कर रहा है चीन?

DW

, सोमवार, 6 फ़रवरी 2023 (18:15 IST)
-रिपोर्ट: विवेक कुमार (रॉयटर्स)
 
पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर है। लेकिन वही चीन जिसने श्रीलंका की बड़ी आर्थिक मदद की है, पाकिस्तान के लिए वैसा उत्साहित नहीं है। क्यों? पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा है कि उन्हें आर्थिक राहत पैकेज पाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ऐसी-ऐसी शर्तों को मानना पड़ेगा जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
 
पिछले हफ्ते ही आईएमएफ का एक प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान गया था और दोनों पक्षों के बीच राहत पैकेज को लेकर बातचीत हो रही है। गहरे आर्थिक संकट में फंसे पाकिस्तान के पास मामूली विदेशी मुद्रा भंडार बचा है और वह आईएमएफ से राहत पैकेज की मांग कर रहा है। इस धन को पाने के लिए पाकिस्तान को आईएमएफ की बेहद सख्त शर्तों को मानना होगा जिनमें खर्च कम करने के लिए कड़ी पाबंदियों से लेकर सब्सिडी खत्म करने जैसे कई अलोकप्रिय कदम शामिल होंगे।
 
अक्टूबर में पाकिस्तान में आम चुनाव होने हैं इसलिए टैक्स बढ़ाने और सब्सिडी खत्म करने जैसे ये कदम सरकार के गले की फांस बन गए हैं। अगर वे इन्हें मानते हैं तो लोग नाराज होंगे और नहीं मानते हैं तो करोड़ों लोग गरीबी और भुखमरी का शिकार होंगे।
 
शरीफ ने इन शर्तों के बारे में शुक्रवार को कहा कि मैं बारीकियों में नहीं जाऊंगा लेकिन इतना कहूंगा कि हमारी आर्थिक चुनौतियों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आईएमएफ की जिन शर्तों को हमें मानना होगा, वे भी सोच से परे हैं। लेकिन हमें वे माननी ही होंगी।
 
कैसी है पाकिस्तान की हालत?
 
पिछले हफ्ते पाकिस्तान के पास सिर्फ 3.1 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा था। विशेषज्ञों के मुताबिक यह धन पाकिस्तान के 3 हफ्ते के आयात के लिए ही काफी होगा, क्योंकि पाकिस्तानी रुपया, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ऐतिहासिक रूप से न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है।
 
दुनिया की 5वीं सबसे अधिक आबादी वाले देश पाकिस्तान की हालत यह हो गई है कि अब वह लेटर ऑफ क्रेडिट जारी नहीं कर पा रहा है। सिर्फ दवाओं और खाने की बेहद जरूरी चीजों के लिए लेटर ऑफ क्रेडिट जारी किए जा रहे हैं यानी यह वादा किया जा रहा है कि 'भुगतान कर दिया जाएगा।' आयात किए गए सामान से भरे हजारों कंटेनर कराची बंदरगाह पर पड़े हैं, क्योंकि देश के पास उन्हें खरीदने के लिए धन नहीं है।
 
महंगाई 48 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर है और लोगों की हालत ऐसी है कि वे जरूरी चीजें भी नहीं खरीद पा रहे हैं। इस्लामाबाद में एक गृहिणी समीना भट्टी कहती हैं कि गरीब लोगों के लिए तो जिंदा रहना मुश्किल हो जाएगा। पेट्रोल इतना महंगा हो गया है। वे लोग क्या करेंगे? एक दिहाड़ी मजदूर तो अपने घर का किराया नहीं दे पा रहा है।
 
क्या हैं आईएमएफ की शर्तें?
 
पिछले हफ्ते पाकिस्तान की यात्रा पर पहुंची आईएमएफ की टीम ने पाकिस्तान सरकार के सामने राहत पैकेज के लिए जो शर्तें रखी हैं, उनमें खर्चों में भारी कटौती की मांग शामिल है। आईएमएफ के मुताबिक पाकिस्तान 900 अरब डॉलर का बजट घाटा झेल रहा है जिसे लेकर आईएमएफ को सबसे ज्यादा आपत्ति है। 900 अरब डॉलर उसकी जीडीपी का लगभग 1 प्रतिशत बनता है।
 
'जियो न्यूज' ने खबर दी है कि आईएमएफ चाहता है कि पाकिस्तान अपने यहां जीएसटी की दरें 1 फीसदी बढ़ाकर 18 कर दे या फिर पेट्रोलियम उत्पादों पर 17 फीसदी जीएसटी लगाए। अन्य शर्तों में बिजली और गैस पर सब्सिडी खत्म करना भी शामिल है। साथ ही देश के अमीरों पर बाढ़-टैक्स, बैंकिंग सेक्टर में मुनाफे पर 41 फीसदी टैक्स, सिगरेट और सॉफ्ट ड्रिंक पर टैक्स 13 से बढ़ाकर 17 फीसदी करने, हवाई यात्राओं, संपत्ति खरीदने और विदेशों से लग्जरी आयात पर टैक्स बढ़ाने जैसी शर्तें शामिल हैं।
 
चीन क्यों नहीं कर रहा मदद?
 
इस वक्त अंतरराष्ट्रीय हलकों में एक सवाल पूछा जा रहा है कि जिस चीन को पाकिस्तान लगातार अपना दोस्त बताता आया है, वह उसकी मदद क्यों नहीं कर रहा है? अमेरिका के 'द विल्सन सेंटर' में साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर माइकल कुगलमान पूछते हैं कि चीन ने श्रीलंका को 2 साल की कर्ज राहत दी थी तो वह पाकिस्तान की मदद के लिए आगे क्यों नहीं आ रहा है, जबकि अमेरिका ने भी पाकिस्तान से कहा है कि चीन से मदद मांगे।
 
ट्विटर पर कुगलमान ने लिखा कि एक वजह यह हो सकती है कि श्रीलंका के कुल कर्ज का 52 प्रतिशत हिस्सा चीनी है। पाकिस्तान पर चीन का कर्ज काफी कम है, करीब 30 फीसदी। साथ ही, चीन का मकसद भारत के मुकाबले खड़ा होना भी है जिसने हाल ही में श्रीलंका के लिए आईएमएफ को वित्तीय गारंटी दी है।
 
वैसे पाकिस्तान ने कहा है कि चीन उसे 9 अरब डॉलर की मदद देगा लेकिन ऐसा कब और कैसे होगा, यह स्पष्ट नहीं है। कुगलमान का कयास है कि चीन और पाकिस्तान के रिश्तों में पिछले कुछ समय में ठंडक बढ़ी है जिसका नतीजा चीन की बेरुखी हो सकती है।

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