dipawali

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर खतरनाक झड़पें, दर्जनों की मौत

Advertiesment
हमें फॉलो करें Pakistan Afghanistan skirmish

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, सोमवार, 13 अक्टूबर 2025 (14:30 IST)
Pakistan Afghanistan skirmish: दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक स्थिरता के लिए एक नया खतरा उभर रहा है, जब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच डूरंड रेखा पर रविवार रात चली लंबी गोलीबारी ने दोनों देशों के बीच संबंधों को सबसे निचले स्तर पर पहुंचा दिया। तालिबान के 2021 में काबुल पर कब्जे के बाद यह सबसे भीषण सीमा संघर्ष है, जिसमें दोनों पक्षों ने दर्जनों लड़ाकों की मौत की पुष्टि की है। यह घटना न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा को प्रभावित कर रही है, बल्कि पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता और अफगानिस्तान की उभरती विदेश नीति को भी उजागर कर रही है।
 
पाकिस्तानी सेना के अनुसार, इस्लामाबाद की ओर से 23 सैनिक की मौत हुई, जबकि तालिबान ने अपनी ओर से नौ लड़ाकों की मौत की बात स्वीकार की। हालांकि, दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ अतिरंजित हताहतों के दावे किए हैं—पाकिस्तान का कहना है कि उसने 200 से अधिक अफगान तालिबान और उनके सहयोगी लड़ाकों को मार गिराया, वहीं काबुल ने 58 पाकिस्तानी सैनिकों के मारे जाने का दावा किया है। 
 
तनाव की जड़ें : आतंकवाद और डूरंड रेखा का विवाद यह झड़पें पाकिस्तान द्वारा तालिबान से आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग के बाद हुईं। इस्लामाबाद का आरोप है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे समूह अफगानिस्तान की सीमावर्ती पनाहगाहों से पाकिस्तान में हमले तेज कर रहे हैं। 2021 में सत्ता हासिल करने के बाद तालिबान ने इन आरोपों का खारिज करते हुए कहा कि उनकी धरती पर कोई पाकिस्तानी आतंकवादी सक्रिय नहीं हैं। यह विवाद डूरंड रेखा—1893 में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में खींची गई 2600 किलोमीटर लंबी विवादित सीमा के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसे अफगानिस्तान कभी मान्यता नहीं देता।
 
भू-राजनीतिक दृष्टि से देखें तो यह संघर्ष पाकिस्तान की 'डिप्थ डिफेंस' रणनीति को चुनौती देता है, जहां अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता के बाद पाकिस्तान की उम्मीदें धूमिल हो गईं, क्योंकि काबुल अब क्षेत्रीय शक्तियों — जैसे भारत और ईरान — के साथ निकटता बढ़ा रहा है। गुरुवार को तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा इसका स्पष्ट उदाहरण है, जिसके बाद नई दिल्ली ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की घोषणा की। पाकिस्तान के लिए यह एक कूटनीतिक झटका है, क्योंकि भारत उसका ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्वी है और अफगानिस्तान में उसकी बढ़ती पैठ इस्लामाबाद की चिंताओं को और गहरा रही है।
 
घटनाक्रम : हवाई हमलों से शुरू हुई गोलीबारी 
संघर्ष की शुरुआत गुरुवार को हुई, जब पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारियों और तालिबान के स्रोतों के अनुसार, इस्लामाबाद ने काबुल और पूर्वी अफगानिस्तान के एक बाजार पर हवाई हमले किए। पाकिस्तान ने इन हमलों को आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया, लेकिन तालिबान ने इन्हें 'आक्रामकता' करार देते हुए जवाबी कार्रवाई की। शनिवार देर रात अफगान सैनिकों ने पाकिस्तानी सीमा चौकियों पर गोलीबारी शुरू की, जिसका पाकिस्तान ने तोपखाने और बंदूकों से जवाब दिया। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की चौकियों को नष्ट करने के दावे किए। पाकिस्तानी अधिकारियों ने वीडियो फुटेज साझा किए, जिसमें अफगान चौकियों पर हमले का दृश्य दिखाया गया।
 
रविवार सुबह तक मुख्य गोलीबारी थम गई, लेकिन पाकिस्तान के कुर्रम जिले में रुक-रुक कर संघर्ष जारी रहा, जैसा कि स्थानीय अधिकारियों और निवासियों ने बताया। इस बीच, काबुल ने कतर और सऊदी अरब के हस्तक्षेप के बाद हमले रोकने की घोषणा की। दोनों खाड़ी देशों ने चिंता व्यक्त करते हुए मध्यस्थता की पेशकश की, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
 
तालिबान प्रशासन के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने रविवार को बयान जारी कर कहा कि अफगानिस्तान के किसी भी हिस्से में किसी भी तरह का कोई खतरा नहीं है। इस्लामी अमीरात और अफगानिस्तान के लोग अपनी भूमि की रक्षा करेंगे और इस रक्षा में दृढ़ और प्रतिबद्ध रहेंगे। वहीं, पाकिस्तानी अधिकारियों ने सीमा पार बंद करने का ऐलान किया— तोरखम, चमन, खारलाची, अंगूर अड्डा और गुलाम खान जैसे प्रमुख क्रॉसिंग्स अब बंद हैं। इससे व्यापार और मानवीय सहायता प्रभावित हो सकती है, जो पहले से ही संकटग्रस्त अफगान अर्थव्यवस्था को और नुकसान पहुंचाएगी।
 
क्षेत्रीय युद्ध का खतरा? : भू-राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह संघर्ष केवल सीमा विवाद तक सीमित नहीं रहेगा। पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता—टीटीपी के बढ़ते हमलों से—और तालिबान की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं इसे जटिल बनाती हैं। भारत की अफगानिस्तान में बढ़ती भूमिका पाकिस्तान को 'दोहरी निगरानी' की स्थिति में धकेल सकती है, जबकि चीन और अमेरिका जैसे वैश्विक खिलाड़ी इस पर नजर रखे हुए हैं। यदि डिप्लोमेसी विफल रही, तो यह दक्षिण एशिया में एक नई अस्थिरता की लहर पैदा कर सकता है। काबुल और इस्लामाबाद को तत्काल बातचीत की जरूरत है, खासकर डूरंड रेखा जैसे ऐतिहासिक मुद्दों पर। अन्यथा, यह संघर्ष न केवल दोनों देशों की जनता को प्रभावित करेगा, बल्कि पूरे क्षेत्र की शांति को खतरे में डाल देगा।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

14 साल के वैभव सूर्यवंशी बने बिहार रणजी टीम के उपकप्तान