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दुनिया को इएमपी से है सर्वाधिक खतरा

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, शुक्रवार, 17 नवंबर 2017 (17:40 IST)
न्यू यॉर्क । इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स (इएमपी) किसी भी इलेक्ट्रोनिक डिवाइस से निकलने वाली तरंगें, ऊर्जा या फिर रेडिएशन है जो कि पास में मौजूद दूसरी किसी इलेक्ट्रोनिक डिवाइस को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। टीवी ऑन हो और उसके करीब फोन रखा हो और कॉल आए तो टीवी में जो डिस्टर्बेंस महसूस होता है। यह भी फोन की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स के चलते ही होता है। रेडियो-टीवी और स्मार्टफोन सभी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स के जरिए ऑपरेट होते हैं।
 
इएमपी हथियार
 
हर इलेक्ट्रोनिक डिवाइस से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स निकलती हैं जो किसी दूसरी डिवाइस को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ही इनका इस्तेमाल करके हथियार बनाने की रिसर्च कर काम होना शुरू हो गया था। सबसे पहले नाजी वैज्ञानिकों ने इस तरह के कई प्रयोग किए लेकिन वह ज्यादा सफल नहीं हो पाए।
 
शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना ने इएमपी गन बनाने की कई असफल कोशिशें कीं। कई तरह की गन्स बनाई जा चुकी हैं लेकिन वजन इनमें सबसे बड़ी समस्या रही है। हालांकि रेल गन इएमपी पर काम करने वाला सबसे सफल हथियार है। फिलहाल इटली और नीदरलैंड इस तरह के हथियारों को विकसित करने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। मोबाइल जैमर भी इएमपी तकनीक पर ही काम करते हैं।
 
असल में दुनिया को इएमपी हथियारों से उतना खतरा नहीं है जितना कि न्यूक्लियर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स से है। अगर एक खास तरीके से परमाणु बम को ब्लास्ट कराया जाए तो वह सामान्य हीट वेव और रेडिएशन से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है।
 
साल 1925 में अमेरिकी फिजिसिस्ट आर्थर एच कॉम्प्टन ने बताया कि न्यूक्लियर ब्लास्ट के दौरान भी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स निकलती हैं जो कि सामान्य से ज्यादा प्रभावी होती हैं। अप्रैल 1958 में सोवियत रूस के वैज्ञानिकों ने 1.7 किलोटन के परमाणु बम के जरिए इसे पहली बार टेस्ट करके देखा। 1962 में सोवियत ने प्रोजेक्ट-के में ऐसे कई टेस्ट किए। हालांकि इएमपी के जरिए जो हथियार विकसित किए गए हैं वे ज्यादातर नॉन-एक्सप्लोसिव ही हैं।
 
क्या कर सकती है न्यूक्लियर इएमपी ?

कॉम्प्टन इफेक्ट थियरी के मुताबिक अगर न्यूक्लियर बम को जमीन से 20 किलोमीटर या उससे ज्यादा ऊपर ब्लास्ट कराया जाए तो इससे तीन लेयर्स में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स निकलती हैं जो कि प्रभावित होने वाले दायरे में मौजूद हर इलेक्ट्रोनिक डिवाइस को तबाह कर देती है। चूंकि ब्लास्ट जमीन पर नहीं होता इसलिए हीट वेव भी हवा में ही पैदा होती है और इसके असर का दायरा पहले के मुकाबले 5 गुना ज्यादा हो जाता है।
 
क्या होगा ऐसे हमले में

उत्तर कोरिया और ईरान के परमाणु कार्यक्रमों को लेकर दुनिया भर में फैली चिंताओं के पीछे की असली वजह इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स इफेक्ट भी है। कम विकसित तकनीकों से ईरान और नॉर्थ कोरिया ने परमाणु बम बना तो लिए हैं लेकिन इन्हें इस्तेमाल करने लायक क्षमता इन देशों के पास मौजूद नहीं है इसलिए ये और भी खतरनाक साबित हो सकते हैं।
 
दुनिया के सबसे बड़े न्यूक्लियर बम जार का वजन 50 मीट्रिक टन है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इसे इएमपी हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाएगा तो इसका असर कम से कम दो महाद्वीपों तक दिखाई देगा। जहां तक इसकी पहुंच होगी वहां मौजूद इलेक्ट्रोनिक डिवाइस जैसे कार, हवाईजाहज, फोन, कंप्यूटर, फ्रिज, टीवी और यहां तक कि सारे बिजलीघर भी तहस-नहस हो जाएंगे। 
 
ऐसे में जवाबी हमले या बचाव कार्य तक के लिए कुछ भी कर पाना लगभग नामुमकिन होगा। ऐसे किसी हमले से उबरने में किसी देश को 20 से 30 साल का वक़्त लग जाएगा। ऐसी अफवाह है कि अमेरिका ने इएमपी तकनीक से लैस ड्रोन विमान भी विकसित कर लिया है।

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