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राष्ट्रपति ट्रंप की हत्या के लिए ईरान में फतवा, जानिए कितना रखा है इनाम

4 करोड़ डॉलर से अधिक का इनाम : 'अल्लाह के दुश्मनों' की मौत के लिए ईरानी मुल्ला इकट्ठा कर रहे हैं चंदा

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राम यादव

, मंगलवार, 15 जुलाई 2025 (08:30 IST)
Fatwa against Trump in Iran: फ़तवा इस्लाम में एक ऐसा शक्तिशाली मज़हबी फ़रमान है, जिसे उच्च पदस्थ मौलवियों द्वारा जारी किया जाता है। पिछले जून महीने की ईरान-इसराइल लड़ाई में अमेरिकी हस्तक्षेप के बाद, ईरान में ऐसा ही एक फ़तवा जारी किया गया है। वह अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनाल्ड ट्रंप के भी ख़िलाफ़ है, क्योंकि उन्होंने ईरान के आध्यात्मिक नेता अयातोल्ला अली ख़ामेनेई को जान से मारने की धमकी दी थी।
 
फतवे में कहा गया है कि कि जो लोग अयातोल्ला ख़ामेनेई और उनके के आसपास की संरचनाओं को ख़तरा पैदा करते हैं, वे 'मोहरेब' यानी अल्लाह के दुश्मन हैं। इस घोषणा के बाद, अब फ़तवे तथा डोनाल्ड ट्रंप से जुड़े और भी घटनाक्रम सामने आ रहे हैं। इजराइली हमलों वाले ऑपरेशन 'राइजिंग लायन' और ईरानी परमाणु प्रतिष्ठानों पर अमेरिकी हमले के बाद, राष्ट्रपति ट्रंप की हत्या के लिए कथित तौर पर 4 करोड़ डॉलर से अधिक का घोषित इनाम, इंटरनेट पर ऑनलाइन दानों द्वारा भी जुटाया जा रहा है।
 
इसराइली प्रधानमंत्री भी निशाने पर : ईरान के एक अयातुल्ला, नासर मकारिम शिराज़ी द्वारा जारी और अन्य मौलवियों द्वारा समर्थित यह फ़तवा सीधे ट्रंप पर ही लक्षित नहीं है। परोक्ष रूप से उसे अमेरिकी राष्ट्रपति ही नहीं, इसराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के ख़िलाफ़ भी एक धमकी के रूप में देखा जा रहा है।
 
फ़तवा हालांकि स्वयं कोई क़ानून नहीं होता, लेकिन शरिया-आधारित क़ानूनी व्यवस्थाओं में वह अदालती फ़ैसलों को प्रभावित कर सकता है। फ़तवे को लेकर राय यह है कि जो मुसलमान इस आह्वान का पालन करते हैं, उन्हें जन्नत में जगह मिलती है। कई ईरानी सरकारी मीडिया संस्थानों ने भी इस फ़तवे को अपनी रिपोर्टों में प्रमुख स्थान दिया है।
 
इसराइल-ईरान युद्ध के प्रसंग में, ट्रंप ने घोषणा की थी कि अमेरिका जानता है कि ईरान के 'तथाकथित सर्वोच्च नेता कहां छिपे हैं।' ईरानियों की नज़र से यह कथन अयातोल्ला ख़ामेनेई के लिए मौत की धमकी के समान था। वैसे तो ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियन ने भी 7 जुलाई को कहा कि यह फतवा ईरान की सरकार का कोई आधिकारिक आदेश नहीं है। लेकिन, दुनिया यह भी जानती है कि ईरान में सर्वोच्च सत्ताधारी वहां का राष्ट्रपति नहीं, अयातोल्ला अली ख़ामेनेई जैसा कोई उच्च धर्माधिकारी होता है। 
 
4 करोड़ डॉलर एकत्रित हो चुके हैं : ईरान की एक वेबसाइट का कहना है कि फ़तवा 'अमेरिकी आतंकवाद' के खिलाफ निर्देशित है और अब तक 4 करोड़ डॉलर से भी अधिक की धनराशि एकत्रित भी हो चुकी है। इस दावे में कितनी सच्चाई है, कहा नहीं जा सकता। अमेरिकी पत्रिका 'न्यूज़वीक' का कहना है कि अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों ने राष्ट्रपति ट्रंप की सुरक्षा और अधिक बढ़ा दी है।
 
इतिहास का सबसे प्रसिद्ध फतवा, ईरान में भयंकर मारकाट के साथ राजशाही का रक्तरंजित अंत कर देने वाली 'इस्लामी क्रांति' के नेता अयातोल्ला रुहोल्ला खुमैनी द्वारा, भारतीय मूल के लेखक सलमान रुश्दी के खिलाफ 14 फ़रवरी, 1989 को जारी किया गया था। वे रुश्दी के उपन्यास 'द सैटेनिक वर्सेज' के कारण कुपित थे, हालांकि उन्होंने रुश्दी का यह उपन्यास संभवतः कभी पढ़ा तक नहीं था। फ़तवे में, दुनिया भर में जहां भी हो सके, वहां रुश्दी की हत्या कर देने का आह्वान किया गया था। 
 
सलमान रुश्दी के साथ तुलना : अमेरिकी पत्रिका 'न्यूज़वीक' की एक रिपोर्ट के अनुसार, ईरानी मुल्ला-मौलवियों द्वारा राष्ट्रपति ट्रंप को फ़तवे का निशाना बनाने की तुलना, सलमान रुश्दी के खिलाफ 1989 में जारी फ़तवे से की जा रही है, जिसके कारण उनकी हत्या के कई प्रयास हुए थे। 12 अगस्त, 2022 के दिन न्यूयॉर्क में रुश्दी के एक भाषण के समय, लेबनानी मूल के 24 साल के एक युवक ने चाकू से उन पर हमला कर दिया। घायल रुश्दी की जान तो बच गई, पर वे अपनी एक आंख खो बैठे। 
 
एक ऐसा ही क्रूर फ़तवा, बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन के खिलाफ उनके उपन्यास 'लज्जा' के बहाने से जारी किया गया। उन्हें अपनी जान बचाने के लिए 1994 में स्वीडन में शरण लेनी पड़ी। कुछ समय बर्लिन में भी रहने के बाद वे भारत चली गईं। लेकिन, भारत के उग्र इस्लामपंथियों के कारण वे भारत में भी सुरक्षित नहीं थीं। 2004 में एक भारतीय मौलवी ने उनका 'मुंह काला करने वाले को' 20 हज़ार रुपए इनाम के तौर पर देने की घोषणा की। 2007 में तो 'ऑल इंडिया इब्तेहाद कॉउन्सिल' ने उनका 'सिर तन से जुदा' कर देने वाले को 5 लाख रुपए देने का वादा किया। तस्लीमा नसरीन 2009 से संभवतः फ्रांस में रह रही हैं।
 
क्या होता है फ़तवा : फ़तवा वास्तव में मज़हबी या क़ानूनी मामलों पर किसी मुस्लिम विद्वान (मुफ़्ती, मौलवी) द्वारा जारी की गई एक इस्लामी क़ानूनी राय है। हालूांकि कोई फ़तवा अदालती फ़ैसले की तरह औपचारिक रूप से बाध्यकारी नहीं होता, लेकिन संबंधित व्यक्ति के लिए इसके परिणाम तब भी बहुत गंभीर हो सकते हैं, क्योंकि धर्मांध मुसलमान अक्सर इसे अपना एक पवित्र मज़हबी कर्तव्य मानते हैं। जिस व्यक्ति के ख़िलाफ़ कोई नकारात्मक फ़तवा जारी किया जाता है, उसके लिए इसका अर्थ अक्सर सामाजिक बहिष्कार, व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए ख़तरा और कई बार जीवन का अंत भी होता है। 

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