मॉस्को। सोवियत संघ के अंतिम नेता मिखाइल गोर्बाचेव का मंगलवार को निधन हो गया। वे 91 वर्ष के थे। गोर्बाचेव ने सोवियत संघ में कई सुधार करने की कोशिश की और इसी कड़ी में उन्होंने साम्यवाद के अंत, सोवियत संघ के विघटन और शीतयुद्ध की समाप्ति में अहम भूमिका निभाई। मॉस्को स्थित 'सेंट्रल क्लिनिकल हॉस्पिटल' ने एक बयान में बताया कि गोर्बाचेव का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। कोई अन्य जानकारी नहीं दी गई है।
गोर्बाचेव 7 साल से कम समय तक सत्ता में रहे लेकिन उन्होंने कई बड़े बदलाव शुरू किए। इन बदलावों ने जल्द ही उन्हें पीछे छोड़ दिया जिसके कारण अधिनायकवादी सोवियत संघ विघटित हो गया, पूर्वी यूरोपीय राष्ट्र रूसी प्रभुत्व से मुक्त हुए और दशकों से जारी पूर्व-पश्चिम परमाणु टकराव का अंत हुआ।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने गोर्बाचेव को 'उल्लेखनीय दृष्टिकोण वाला व्यक्ति' और एक 'दुर्लभ नेता' करार दिया जिनके पास यह देखने की कल्पनाशक्ति थी कि एक अलग भविष्य संभव है और जिनके पास उसे हासिल करने के लिए अपना पूरा करियर दांव पर लगा देने का साहस था।
बाइडन ने एक बयान में कहा कि इसके परिणामस्वरूप दुनिया पहले से अधिक सुरक्षित हुई तथा लाखों लोगों को और स्वतंत्रता मिली। एक राजनीतिक विश्लेषक एवं मॉस्को में अमेरिका के पूर्व राजदूत माइकल मैक्फॉल ने ट्वीट किया कि गोर्बाचेव ने इतिहास को जिस तरह से एक सकारात्मक दिशा दी है, वैसा करने वाला कोई अन्य व्यक्ति बमुश्किल ही नजर आता है।
गोर्बाचेव के वर्चस्व का पतन अपमानजनक था। उनके खिलाफ अगस्त 1991 में तख्तापलट के प्रयास से उनकी शक्ति निराशाजनक रूप से समाप्त हो गई। उनके कार्यकाल के आखिरी दिनों में एक के बाद एक गणतंत्रों ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित किया। उन्होंने 25 दिसंबर 1991 में इस्तीफा दे दिया। इसके 1 दिन बाद सोवियत संघ का विघटन हो गया।
इसके करीब 25 साल बाद गोर्बाचेव ने 'एसोसिएटेड प्रेस' (एपी) से कहा था कि उन्होंने सोवियत संघ को एकसाथ रखने की कोशिश के लिए व्यापक स्तर पर बल प्रयोग करने का विचार इसलिए नहीं किया, क्योंकि उन्हें परमाणु संपन्न देश में अराजकता फैसले की आशंका थी। उनके शासन के अंत में उनके पास इतनी शक्ति नहीं थी कि वे उस बवंडर को रोक पाएं जिसकी शुरुआत उन्होंने की थी।
इसके बावजूद गोर्बाचेव 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में सर्वाधिक प्रभावशाली राजनीतिक हस्ती थे। गोर्बाचेव ने कार्यालय छोड़ने के कुछ समय बाद 1992 में 'एपी' से कहा था कि मैं खुद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखता हूं जिसने देश, यूरोप और दुनिया के लिए आवश्यक सुधार शुरू किए।
गोर्बाचेव को शीतयुद्ध समाप्त करने में उनकी भूमिका के लिए 1990 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें दुनिया के सभी हिस्सों से प्रशंसा और पुरस्कार मिले, लेकिन उनके देश में उन्हें व्यापक स्तर पर निंदा झेलनी पड़ी। रूसियों ने 1991 में सोवियत संघ के विघटन के लिए उन्हें दोषी ठहराया। एक समय महाशक्ति रहा सोवियत संघ 15 अलग-अलग देशों में विभाजित हो गया। गोर्बाचेव के सहयोगियों ने उन्हें छोड़ दिया और देश के संकटों के लिए उन्हें 'बलि का बकरा' बना दिया।
उन्होंने 1996 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा और उन्हें मजाक का पात्र बनना पड़ा। उन्हें मात्र 1 प्रतिशत मत मिले। उन्होंने 1997 में अपने परमार्थ संगठन के लिए पैसे कमाने की खातिर पिज़्ज़ा हट के लिए एक टीवी विज्ञापन बनाया। गोर्बाचेव सोवियत प्रणाली को कभी खत्म नहीं करना चाहते थे बल्कि वे इसमें सुधार करना चाहते थे।
मिखाइल सर्गेयेविच गोर्बाचेव का जन्म 1 मार्च 1931 को दक्षिणी रूस के प्रिवोलनोये गांव में हुआ था। उन्होंने देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय 'मॉस्को स्टेट' से पढ़ाई की, जहां उनकी राइसा मैक्सीमोवना तितोरेंको से मुलाकात हुई जिनसे उन्होंने बाद में विवाह किया। इसी दौरान वे कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए।(भाषा)