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एक विवादित अभियान, समर्थन भी और विरोध भी...

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, शनिवार, 25 मार्च 2017 (12:24 IST)
सारी दुनिया में आज की पीढ़ी के लिए 'फ्री द निप्पल अभियान' एक विवादास्पद विषय है, लेकिन यह ऐसा विषय है जो कि सारी दुनिया में चर्चित है और  इसे लेकर दुनिया की आधी आबादी इसका विरोध करती है या फिर इसका समर्थन। 'फ्री द निप्पल अभियान' की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार यह सारी  दुनिया की महिलाओं का समानता के लिए अभियान है और वे इसके जरिए पुरुषों की तुलना में 'समानता, सशक्तीकरण और स्वतंत्रता' चाहती हैं।
 
बेहतर होगा कि हम इस समानता के युग के अभियान के बारे में थोड़ा जान लें। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की जज रूथ बेदर जिंसबर्ग ने लिखा कि द्वितीय  विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद लिखे गए प्रत्येक संविधान में एक प्रावधान होता है कि पुरुष और महिला समान महत्व के नागरिक हैं। लेकिन हमारे  संविधान में ऐसा नहीं है क्योंकि महिलाओं को वोट देने का अधिकार 1920 के बाद मिला। इसी तरह अमेरिकी संविधान में समानता का अधिकार संशोधन  के जनक एलिस पॉल ने 1923 से इस तरह के संशोधन के प्रावधान को पास कराने के प्रयास किए जिसके तहत महिला और पुरुष को सभी स्तरों पर  समानता की गारंटी दी गई हो।
 
50 वर्ष लंबी लड़ाई के बाद महिला अधिकारों को दिलाने का यह कानूनी प्रयास वर्ष 1982 में रोनाल्ड रीगन के कार्यकाल में पराजित हुआ था। तब से  समान अधिकार संशोधन की मांग की जा रही है, जिसमें इस बात की गारंटी दी जाए कि संघीय ढांचे के अंतर्गत महिला-पुरुष को समान अधिकार दिया  जाए। तब से अमेरिकी महिलाओं की मांग है कि उन्हें भी पुरुषों की भांति स्वच्छंदतापूर्वक घूमने-फिरने का अधिकार दिया जाए।      
 
इस मुद्दे पर बहुत बहस होती है कि जिसमें इस अभियान की समर्थक महिलाओं का कहना है कि महिलाओं के निप्पल का प्रदर्शन, पुरुषों के निप्पल्स के  प्रदर्शन से अलग नहीं समझा जाना चाहिए। पर इस अभियान के विरोधियों का कहना है कि पुरुषों का शरीर महिलाओं के शरीर से अलग है इसलिए अगर  उनके साथ भेदभाव किया जाता है तो यह गलत नहीं है। इस अभियान की समर्थक महिलाओं का कहना है कि यह सभी मनुष्यों की वैश्विक स्तर पर  बराबरी (समानता), महिला सशक्तीकरण और स्वतंत्रता' के लिए परिवर्तन चाहती हैं। इसकी समर्थक महिलाओं का कहना है कि यह दुनिया भर में लैंगिक  समानता की दिशा में कदम है। यह स्त्रियों के वक्षों का प्रदर्शन नहीं है वरन यह इस बात पर आधारित है कि अगर सार्वजनिक रूप से या मीडिया में पुरुषों  का निप्पल दिखाना उचित है तो यह महिलाओं के लिए ऐसा क्यों नहीं है? हालांकि महिलाओं की यह मांग न्यू यॉर्क शहर में काफी हद तक पूरी कर दी  गई है।  
 
समर्थन में तर्क : उनका कहना है कि समाज की इस अंतर्निहित लैंगिक असमानता के कारण महिलाओं को बहुत मुश्किलों और परेशानियों को झेलना पड़ता  है। सड़क या कार्यस्थल पर उन्हें एक आकर्षक वस्तु समझा जाता है और बारह-तेरह वर्ष की बच्चियों को भी सड़कों पर परेशान किया जाता है। अगर  महिलाओं के शरीर का प्रदर्शन कम सेक्सी और अधिक ‍न‍िरपेक्ष रवैया अपनाया जाता तो महिलाओं को अपने शरीर के कारण इतनी अधिक मुसीबतें नहीं  उठानी पड़ती। उनका कहना है इसलिए महिलाओं के साथ समानता का व्यवहार होना चाहिए। इसी अभियान का नतीजा है कि अमेरिका के न्यू यॉर्क शहर में  महिलाएं टॉपलेस घूम सकती हैं।     
 
विरोध में तर्क : महिलाओं की इस मांग का विरोध करने वाले पुरुषों (और कुछ महिलाओं) का भी मानना है कि महिलाओं के वक्षों का निप्पल ऐसा भाग है  जिसका सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शन स्वीकार्य नहीं है। इसके अलावा अभियान की समर्थक महिलाओं का इस बात से भी विरोध है कि महिलाओं के निप्पल्स  को छिपे (कवर्ड) होना चाहिए। इस बात का विरोध इस गलत धारणा पर आधारित है कि महिलाओं और पुरुषों का शरीर पूरी तरह समान होता है। इसे  आप सरकारों, विधायकों के विरुद्ध लड़ाई के तौर पर नहीं समझा जा सकता है और इसे सेंसरशिप के खिलाफ युद्ध समझा जाता है।
 
आप ऐसा क्यों मानते हैं कि निप्पल्स को स्वतंत्र होना या स्वतंत्र नहीं होना चाहिए?
पक्ष में तर्क : यह नहीं कहा जा रहा है कि महिलाएं जब अपने सहकर्मियों के साथ लंच करने जाएं या डेंटिस्ट से इलाज कराने जाएं तो अपना टॉप उपर  कर लें। इस अभियान का जोर इस बात को लेकर है कि महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर विशेषाधिकार मिलने चाहिए, उन्हें भी बीच पर टॉपलेस सनबाथ  की स्वतंत्रता होनी चाहिए। सोशल मीडिया पर निप्पल्स की तस्वीरें पोस्ट करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। कभी-कभी यथास्थिति वाद को बदलने की जरूरत  होती है और केवल किसी पोस्ट को मात्र इसलिए नहीं हटाया जाना चाहिए क्योंकि यह मात्र एक महिला का शरीर है। आज भी बहुत से देशों में सार्वजनिक  स्थलों पर महिलाएं अपने छोटे बच्चों को स्तनपान नहीं करा पाती हैं।
 
विपक्ष में तर्क : इस आंदोलन से जुड़े बहुत सारे प्रसिद्ध लोग हैं लेकिन वे लोग भी कट्‍टर नग्नतावादी नहीं हैं और ऐसे लोग भी क्षणिक या कम समय के  लिए प्रदर्शन में विश्वास करते हैं। ऐसे लोग आपसे यह नहीं कह सकते कि आप 'फ्री द निप्पल' के साथ-साथ अपना मेकअप और वेस्ट शेपर्स भी बेच दें।  यह प्रगतिशीलता नहीं है और यह युवा लड़कियों के लिए रोल मॉडल नहीं हो सकते है। अगर कुछ है तो यह हम लोगों को पुरातन युग की ओर ले जाना  चाहते हैं। यह स्पष्ट है कि ऐसा अभियान गलत लोगों द्वारा चलाया जा रहा है। वास्तविकता यह है कि पुरुष और महिलाओं के शरीर  अलग होते हैं और  इन्हें अलग ही समझा जाना चाहिए।
 
इस मामले में एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आप निप्पल और कामुकता में किस तरह का संबंध देखते हैं?  
पक्ष में तर्क : आंदोलन का यह कहना नहीं है कि एक महिला के निप्पल्स कामुक नहीं होना चाहिए, ठीक उसी तरह से जिस तरह से एक पुरुष के निप्पल  कामुक नहीं बताए जा सकते हैं। आंदोलन का यह कहना है कि एक महिला के निप्पल को अंतरर्निहित तौर पर कामुक नहीं देखे जाना चाहिए क्योंकि वे  एक महिला के शरीर पर मौजूद हैं।
 
विपक्ष में तर्क : महिलाओं के निप्पल्स अंदरूनी तौर पर कामुक होते हैं क्योंकि वे एक महिला के शरीर पर होते हैं। हमारा दिमाग भी इसी तरह से सोचता  है और महिलाएं भी सदियों से अपने निप्पल्स को ढंककर रखती आई हैं क्योंकि इनका किसी को भी दिखाया जाना बहुत ही अंतरंगता की निशानी माना  जाता है। चीजें बदलती हैं और विचारों में बदलाव आता है लेकिन अगर आप सोचते हैं कि महिलाओं के बक्षों को पूरी तरह से डिसेक्सुअलाइज किया जा  सकता है तो इसमें बहुत समय लगेगा।  
 
इस अभियान के पक्ष में और विपक्ष में सबसे बड़ा दोषपूर्ण तर्क क्या हैं?
पक्ष में तर्क : अभियान के खिलाफ तर्क का सबसे दोषपूर्ण भाग यह है कि यह वास्तव में अकेला  नहीं है। दुनिया के लोग सबसे अच्छी बात यह कह  सकते हैं कि यह एक नियम है और यह एक यथा स्थिति वाद है। सोचिए अगर लोग महिलाओं के वोट देने के अधिकार के बारे में सवाल उठाए जाते तो  क्या होता? चिकित्सा के तौर पर अफीम के उपयोग को गलत ठहराते तो क्या होता? कभी-कभी यथा स्थिति को भी बदलना होता है लेकिन इसका यह अर्थ  नहीं है कि फ्री द निप्पल आज की महिलाओं के सामने सबसे बड़ा मुद्दा है। वास्तव में, स्थिति इससे अलग है। समान वेतन का अधिकार, प्रजातीय भेदभाव,  घरेलू हिंसा, यौन प्रताड़ना और गर्भपात कराने का अधिकार ऐसे मुद्दे हैं जोकि ज्यादा जरूरी और ध्यान देने योग्य हैं। लेकिन ऐसा कौन है जोकि आपसे  कहता हो कि एक समय पर आप एक से अधिक मुद्दों पर विरोध नहीं कर सकते हैं?
 
विपक्ष में तर्क :  हम अक्सर यह सुनते हैं कि फलां हस्ती ने किसी मुद्दे पर अपनी राय रखने के लिए एक उत्तेजक, खतरनाक फोटोशूट कराया है। अपने  विरोधियों को गाली देना बहुत भारी संवेदनहीनता है। फिलहाल फ्री द निप्पल अभियान आपकी पसंद, नापसंद का विषय है जिसके चलते हस्तियां या प्रसिद्ध  व्यक्ति अपने कपड़े उतार देते हैं, ऐसा करने से इन लोगों के बारे में छापने वाली पत्रिकाओं की बिक्री बढ़ती है और इससे कुछ लोग पैसा बनाते हैं। अगर  टेरी रिचर्डसन निप्पल से मुक्ति के किसी अभियान के तहत किसी फोटो शूट के दौरान किसी युवा महिला को टॉपलेस होने को राजी कर लेती हैं तो इसे  गलत कारणों से उठाया गया कदम माना जाना चाहिए। वास्तव में, महिलाओं को ताकतवर नहीं बनाया जा रहा है वरन उनका गलत इस्तेमाल किया जा  रहा है।
 
सवाल उठाया जाता है कि पुरुषों के निप्पल मुक्त रहते हैं तो महिलाओं के निप्पल्स को क्यों बंधन में रखा जाता है?
पक्ष में तर्क : बहुत सारे देशों में महिलाओं का सार्वजनिक तौर पर टॉपलेस होने को लेकर कानून स्पष्ट नहीं हैं और ऐसे मामलों केस दर केस फैसले लिए  जाते हैं। इससे यह आम राय बन गई है कि सार्वजनिक तौर पर टॉपलेस होना किन्हीं कारणों से गलत है। लेकिन यह धारणा निरंतर तौर पर बदल रही है।  उदाहरण के लिए, वर्ष 2005 में फीनिक्स फीली को न्यूयॉर्क में टॉपलेस होने पर गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन कोर्ट में यह सिद्ध हुआ कि कानून का  दुरुपयोग किया गया था क्योंकि न्यूयॉर्क में महिलाओं का टॉपलेस घूमना 15 वर्षों से वैध था। समूचे यूरोप के बहुत सारे समुद्रतटों पर महिलाओं का टॉपलेस  होना आम बात है। यह समय की बात है कि दुनिया के अन्य इलाकों में भी यह आम बात हो जाएगी। 
 
विपक्ष में तर्क : महिलाओं के निप्पल्स उनके वक्षों के ऊपर होते हैं। इसीलिए इनको सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित किया जाना अस्वीकार्य माना जाता है।  इस अभियान के तहत महिलाओं के निप्पल्स को पुरुषों के निप्पल्स के नाम पर छिपाना एक विचारोत्तेजक बात हो सकती है लेकिन इस बात से इनकार  नहीं किया जा सकता है कि महिलाओं और पुरुषों के शरीर भिन्न होते हैं। यही कारण है कि दोनों को अलग-अलग तरीके से समझा जाता है।
 
क्या समाज कभी भी इस बात पर सहमत हो सकता है कि निप्पल को किस तरह से देखा जाना चाहिए?
पक्ष में तर्क : एक निप्पल को किसी एक चीज या दूसरी चीज के नाम से देखे जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह संदर्भ पर निर्भर करता है। जैविक तौर  पर कहें तो महिलाओं के वक्ष मुख्य रूप से उनके बच्चों को दूध पिलाने के काम आते है। वे यौन क्रियाओं के कारक भी हो सकते हैं तो इसी तरह से वे  शरीर ने अन्य हिस्सों की तरह एक हिस्सा हो सकते हैं। फ्री द निप्पल अभियान के समर्थक तर्क देते हैं कि यह वक्ष का ऐसा हिस्सा है जिसे समाज को  पार पाना होगा और इसे बंधनों से मुक्त करना होगा। हमें इस बात पर सहमत होने की जरूरत नहीं है कि महिलाओं के निप्पल भी पुरुषों के निप्पल के  समान होते हैं।
 
विपक्ष में तर्क: हालांकि चीजें हमेशा एक जैसी नहीं रहती हैं लेकिन इस बात पर भी शंका है कि प्रत्येक व्यक्ति इस तर्क को स्वीकार करेगा। अभियान के समर्थकों का मानना है कि वक्ष का यह एकमात्र हिस्सा ऐसा है जिसे समाज को स्वीकार करना होगा और इसे मुक्त रहने की अनुमति देना होगा। अभियान के खिलाफ तर्क देने वालों का कहना है कि आम शालीनता के मामले में वक्षों की निप्पल लड़ाई का अंतिम क्षेत्र है जिसे समाज को इसके मुक्त होने की अंतिम लड़ाई है।
 
निप्पल को मुक्त करने के क्या परिणाम होंगे?
समर्थन में तर्क : फिर एक बार कहा जा सकता है कि फ्री द निप्पल अभियान किसी भी मौके पर नग्न होने का बहाना नहीं है। अगर महिलाओं के वक्षों और निप्पल को पुरुषों के निप्पल के समान समझा जाता तब शायद बहुत थोड़ी सी महिलाओं से कहा जाता कि वे सार्वजनिक रूप से स्तनपान न कराएं और बहुत थोड़ी संख्या में महिलाएं अपने शरीर को लेकर शर्मिंदगी का अनुभव करतीं।
 
विपक्ष में तर्क : क्या यह बात विचित्र नहीं है कि पुरुषों को नंगे बदन सार्वजनिक रूप से घूमने की छूट होती है लेकिन महिलाओं के लिए ऐसा नहीं है। फिर भी महिलाएं इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं होंगी कि उनके बच्चे ऐसी दुनिया में बड़े हों जहां महिलाएं टॉपलेस घूमती हों। यह बात अन्य बहुत सी बातों की तरह से समझी गई है। ब्रिटेन में सेक्स के लिए सहमति देने की उम्र 16 वर्ष है तो लगभग 16 वर्ष की उम्र तक इस सामाजिक विश्वास की सामूहिक चेतना का हिस्सा बन जाती है और यही बात तय करती है कि हम किन बातों को सही या गलत मानते हैं।
 
आप समझ सकते हैं कि 'फ्री द निप्पल अभियान' के पक्ष और विपक्ष में तर्क कहां तक मजबूत हैं।
एक ओर जहां आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि पुरुषों के शरीर महिलाओं के शरीर से भिन्न होते हैं। जबकि लैंगिक समानता की लड़ाई की दृष्टि से यह एक अनिवार्य कदम माना जा सकता है लेकिन हमें इन तर्कों के बीच कहीं न कहीं सहमति के लिए बीच का रास्ता निकालना होगा। आपका इस विषय में क्या कहना है, हमें अपनी राय से अवगत कराएं।   

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