कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं और अगर आप इस कहावत को सच मानते हैं तो आपके लिए यह जानना जरूरी होगा कि सबरीना गोंजालेज पेस्तरस्की मात्र 23 वर्ष की हैं और वे अपनी उपलब्धियों से अल्बर्ट आइंस्टीन की बराबरी करती हैं। जब वे मात्र 14 वर्ष की थीं तो अपने सिंगल इंजन वाले प्लेन की एयरक्रॉफ्ट वर्दी का प्रमाणपत्र पाने के लिए विश्वप्रसिद्ध एमआईटी (मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) कैम्पस में घूम रही थीं। विदित हो कि इस सिंगल इंजन वाले विमान को खुद उन्होंने बनाया था। उन्होंने खुद अपने प्रयासों से इस विमान को उड़ाया भी था। उस समय कैम्पस में मौजूद लोगों के लिए वे कौतूहल का विषय थीं।
तब से नौ वर्ष बीत चुके हैं और सबरीना एमआईटी से ग्रेजुएशन करने के बाद हार्वर्ड से पीएच-डी कर रही हैं। फिजिक्स की इस विद्यार्थी की उम्र मात्र 23 वर्ष है। पेस्तरस्की का सारा जोर क्वांटम ग्रेविटी को समझने पर है और वे क्वाटंम मैकेनिक्स के संदर्भ में गुरुत्वाकर्षण (ग्रेविटी) की व्याख्या करती हैं। उनकी रुचि ब्लैक होल्स और स्पेसटाइम को समझने में भी है। आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि उन्हें नासा के वैज्ञानिक जानते हैं और उनके लिए जेफ बेजोस और ब्ल्यू ओरिजिन जैसी कंपनियां और लोग रोजगार का एक स्थायी प्रस्ताव लिए तैयार रहते हैं। सबरीना कई मामलों में असाधारण हैं लेकिन वे अमेरिका में बढ़ रही ऐसी प्रवृति की अगुआ हैं जिसके तहत देश में लड़कियों में फिजिक्स पढ़ने की ललक बढ़ रही है।
वर्ष 2015 के दौरान फिजिक्स में ग्रेजुएशन करने वाले छात्रों की संख्या 8081 थी और इसी वर्ष 2015 में फिजिक्स में शोध करने वालों की संख्या 1860 थी। फिजिक्स और एस्ट्रोनॉमी में पढ़ने वालों की संख्या कम ही है और अभी भी महिला विद्यार्थियों को तरह-तरह की मुसीबतों से जूझना पड़ता है। लेकिन वे असाधारण महिला वैज्ञानिक और आधुनिक फिजिक्स की जन्मदाता मैरी एस. क्यूरी की परम्परा को आगे बढ़ाने वाली हैं जिन्होंने विज्ञान के इतिहास में पहला नोबेल पुरस्कार जीता था। मैरी, पैरिस यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट हासिल करने वाली पहली यूरोपीय महिला थीं। उन्होंने ही सबसे पहले विकिरण शब्द, विचार को जन्म दिया था।
बाद में, मैरी क्यूरी, सौरबोन यूनिवर्सिटी पैरिस की पहली महिला लेक्चरर और प्रोफेसर बनीं। उन्होंने दुनिया में लोगों की प्राकृतिक जगत की समझ का पूरी तरह से कायाकल्प किया। उनकी तुलना में कम प्रसिद्ध वैज्ञानिकों जैसे एडा लवलैस ने चार्ल्स बैबैज के 'एनालिटिकल इंजिन' के गणना करने की मशीन पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए एक ऐसी एल्गोरिथम विकसित की जिसकी मदद से बर्नोली नंबर्स की गणना करने के अनुक्रम का मार्ग प्रशस्त हुआ। इसे कई तरह से प्रयोग में लाया जा सकता था।