Sawan posters

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

'फ्री स्पीच' पर इस्लामी कट्‍टरता का असर

Advertiesment
हमें फॉलो करें Free speech
यूरोप और अमेरिका में शिक्षा की महान उपलब्धियों में से एक है कि इनमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (फ्री स्पीच) और तर्कसम्मत आलोचना को लोकतांत्रिक अधिकारों में गिना जाता है। इसे लोकतंत्र की बुनियादी जरूरतें माना जाता है। दुनिया में कोर्ट्‍स, संसद इन्हीं आधारों पर बनी हैं और इसके बिना विद्वानों, लेखकों, पत्रकारों और वकीलों की कल्पना नहीं की जा सकती है। अमेरिका के संविधान में इसे फर्स्ट अमेंडमेंट के तौर पर स्वीकार किया जाता है।  
 
अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता के बिना बोलने या लिखने की कल्पना नहीं की जा सकती है और इसके बिना हममें से कोई भी एक धर्म, एक विचारधारा, एक राजनीतिक दल, कानून या किसी शैक्षिक विचारों की आलोचना नहीं कर सकते हैं। एक मुक्त समाज में सभी लोगों को अपने विचारों को लिखने, बोलने और बिना किसी डर, भय या दंड के प्रकाशित प्रचारित करने की स्वतंत्रता होती है। इसके ठीक विपरीत बंद समाजों का स्वभाव पूरी तरह से सर्व सत्तावादी, निरंकुश होता है जो कि कहते हैं कि जो वे सोचते, जानते, समझते हैं, वही एकमात्र सत्य है। 
 
ऐसे देशों, स्‍थानों और जगहों पर नागरिकों को यह अधिकार नहीं होता है कि वे सरकार के विचारों को चुनौती दें। ज्यादातर इस्लामी देशों, राज्यों की सत्ता अतीत और वर्तमान में धर्म आधारित है और धार्मिक पुस्तकों में जो लिखा है, उसका न तो आप विरोध कर सकते हैं, और न ही ईश्वरीय कानूनों में फेरबदल की बात कर सकते हैं। इस्लामी समाजों में सभी कुछ धार्मिक पुस्तकों में लिखा है और आपको इससे ज्यादा जानने, समझने की जरूरत भी नहीं है। इसलिए आज यूरोप और अमेरिका में वाक् स्वतंत्रता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मु्‍ख्य खतरा कट्‍टर इस्लामी सेंसरशिप और पश्चिमी देशों की पॉलिटिकल करेक्टनेस से है। या इन दोनों के मिश्रण से है।
 
पश्चिमी देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सर्वसम्मति का आधार माना जाता है और इस कारण से हमें किसी भी राजनीतिक दल, व्यवस्था, या किसी वाद या फिर लोकतंत्र की ही आलोचना करने का अधिकार हासिल है, लेकिन इसके नाम पर घृणा को बढ़ावा देने बातों या हिंसा की वकालत को पसंद नहीं किया जाता है। इसी अधिकार के चलते हम किसी भी धर्म या कल्ट से जुड़े विचारों का आलोचना करने की स्वतंत्रता है। दुनिया के बाकी सभी धर्मों की आलोचना करने के लिए आप स्वतंत्र हैं, लेकिन इस्लाम आपको ऐसी कोई स्वतंत्रता नहीं देता। दुनिया में ब्रिटेन की नेशनल सेक्यूलर सोसायटी जैसी संस्थाएं हैं जोकि 1866 से लोगों और सरकारों को सलाह देती आ रही है। 
 
हालांकि इसने इस्लाम के मामले में भी ऐसा करना चाहा, लेकिन इसे बहुत कम सफलता मिली है। लेकिन आज भी बहुत सारी इस्लामी संस्थाएं ऐसी हैं जो कि इस बात के प्रयासों में लगी रहती हैं कि कोई भी इस्लाम की एक धर्म, राजनीतिक व्यवस्था या विचारधारा के तौर आलोचना न कर सके। वास्तव में 57 मुस्लिम देशों के संगठन, ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) वर्षों और दशकों से इस बात के प्रयास करती रही हैं कि इस्लाम को लेकर बिना किसी दंड, डर या भय के कोई सवाल नहीं खड़े कर सके। 
 
यह ऐसी संस्था है जो कि इस्लाम को एक ऐसी रिंग फेंस या बाड़ लगाने में सफल हुई है जो कि इस्लाम को किसी भी प्रकार की आलोचना से परे बनाने का काम कर रही है। हमें हिंदुओं, ईसाइयों, पारसियों, यहूदियों, डेमोक्रेटस, लिबरल्स, महिलाओं, गे या अन्य किसी की भी अत्यधिक हिंसक भाषा में आलोचना करने की छूट है। आप किसी भी धर्म को बुरा साबित कर सकते हैं, बता सकते हैं या किसी भी धर्म के प्रति असम्मान प्रकट कर सकते हैं लेकिन अगर आपने इस्लाम की आलोचना करने का साहस किया तो तुरंत ही ऐसे किसी भी महिला या पुरुष को इस्लाम और मुस्लिमों से नफरत करने वाला या इसकी राजनीतिक ताकत से चिढ़ने वाला करार दिया जाता है।              
 
ओआईसी ने वर्षों से सारी दुनिया में यह अभियान चला रखा है कि इस्लाम को एक मात्र ऐसे धर्म, ऐसी राजनीतिक व्यवस्था या एक ऐसी विचारधारा के तौर पर स्थापित कर दिया जाए जिसको लेकर दुनिया में कहीं भी, कोई भी सवाल न उठा सके। लेकिन यह इस बात का अधिकार चाहती है कि इसे हिन्दुओं, ईसाइयों, यहूदियों, किसी भी प्रकार की शासन व्यवस्था, सरकार, महिला या पुरुष का कितनी भी हिंसक भाषा में आलोचना करने का हक मिले। अगर कोई ऐसा करने का साहस करता है तो वह इस्लाम, मुस्लिम विरोधी ठहरा दिया जाता है।
 
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जैसे नेता पूरी तरह से झूठ कहते हैं कि 'इस्लाम शांति का धर्म है। इस्लाम की सबसे बड़ी, पवित्र पुस्तक, कुरान, में जिहाद ने नाम पर हिंसा करने की छूट दी जाती है लेकिन एक राजनीतिक तिकड़मबाजी के तहत इसे नकार दिया जाता है। कुरान, शरिया कानूनों, परम्पराओं (हदीसों) और समूचे इस्लामी इतिहास के दौरान इसे राजनीतिक या अन्य कारणों नकारा जाता है लेकिन राजनीतिज्ञों की ओर से मात्र इसलिए नहीं किया जाता है क्योंकि इससे मुस्लिम नाराज हो सकते हैं और छोटी सी बात को लेकर वे कितनी भयानक हिंसा कर सकते हैं, इस बात का मात्र अंदाजा ही लगाया जा सकता है। 
 
पेन (पोएट्स, एसेइस्ट्‍स एंड नावेलिस्ट्‍स) से जुड़े और खुद मौत के फतवे का सामना कर चुके लेखक सलमान रश्दी ने पेन सदस्यों को पुरस्कार देने पर आपत्ति करने वाले सदस्यों से कहा था कि ' अगर पेन एक मुक्त अभिव्यक्ति की संस्था है और यह उन लोगों की रक्षा नहीं कर पाती है जिन्हें मात्र कार्टून बनाने पर मार डाला गया तो ऐसी संस्था का कोई औचित्य नहीं है। मैं सोचता हूं कि कोई भी ऐसे लोगों के पीछे न आए।' कुछ पेन सदस्यों ने शार्ली एब्दो के 12 सदस्यों की हत्या जिहादियों द्वारा करने के बावजूद पत्रिका को मुक्त अभिव्यक्ति के लिए पुरस्कार देने पर एतराज किया था।
 
ओआईसी के सदस्यों ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से एक प्रस्ताव पास कराने में सफलता पाई जिसमें 'धर्म की आलोचना को एक अपराध' करार दिया जाता है जबकि ओआईसी सदस्यों को यह बात भलीभांति पता है कि अपने धर्म के बारे में 'स्वतंत्र अभिव्यक्ति'  को रोकने के अधिकार का इस्तेमाल केवल मुस्लिम ही करने वाले हैं।
 
पिछले वर्ष अमेरिकी कांग्रेस ने हाउस रिजोल्यूशन 569 पारित किया था जिसका मूल उद्देश्य ही हेट स्पीच को रोकना है। इस कानून में तीन बार मुस्लिमों की सुरक्षा का तीन बार जिक्र दिया गया है, लेकिन इसमें अन्य किसी धर्म को लेकर कोई बात नहीं की गई है।
 
हम जानते हैं कि एक उपन्यास, कार्टून्स, कुछ फिल्मों, राजनीतिक भाषणों और कुछेक ब्लॉग्स से लोगों पर कोड़े बरसाए गए, उन्हें जेल में डाल दिया गया, प्रताडि़त किया गया, हत्या कर दी गई और हत्या करने की धमकियां दी गईं। सार्वजनिक क्षेत्र में जिस तरह से बहुत अभद्र मुस्लिम विरोधी टिप्पणियां ऑनलाइन हैं लेकिन मुस्लिम संवेदनशीलता इतनी कमजोर है कि मुहम्मद, उनके अनुयायियों, कुरान, विभिन्न सिद्धांतों, इस्लामी इतिहास के पहलुओं और कुछ मुस्लिमों के व्यवहार को इस्लाम और मुस्लिम विरोधी कहा जाता है। 12 जून को अमेरिका के ऑरलैंडो शहर में एक समलैंगिक क्लब में दर्जनों लोगों की हत्या कर दी गई लेकिन राष्ट्रपति ओबामा इसे ' हिंसा और आतंक का कार्य' तो बताया लेकिन इसे 'इस्लामी आतंकवाद' या 'इस्लामी हिंसा' कहने से परहेज किया। दुनिया के अन्य दूसरे नेताओं की तरह से वे कहते रहे कि 'इस्लाम तो शांति का धर्म' है। 
 
इस्लाम, मुहम्मद, कुरान या इस्लाम के किसी भी प्रतीक को लेकर समझे गए असम्मान, बेइज्जती के नाम पर हत्याओं, धमकियों, हिंसा की सूची बहुत लम्बी है। किसी भी मुस्लिम संगठन की हल्की-सी शिकायत पर मुस्लिम संगठन उस पर बैन लगा देते हैं, उसका प्रकाशन रोक देते हैं, महिलाओं, पुरुषों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाता है। जिन लोगों ने इस्लाम का सच्चाई और ईमानदारी से प्रदर्शित किया, उन्हें भी मुकदमों, जुर्मानों, सजाओं का सामना करना पड़ा। एक डैनिश लेखक,  लार्स हेजगार्ड, पर उनके रहने के अज्ञात स्थान पर भी प्राणघातक हमला किया गया। एक अन्य डैनिश कार्टूनिस्ट कुर्त वेस्टरगार्ड पर कुल्हाडी से हमला किया गया था। हमले में वे बच गए और अब तक सुरक्षा एजेंसियों की सतत निगरानी में रह रहे हैं। 
 
ऑस्ट्रिया की एक महिला नेत्री सूसन विंटर ने मुहम्मद की लिखित जीवनी के आधार पर एक बात क्या कही, उन पर 24 हजार यूरो (31 हजार डॉलर) का जुर्माना लगाया गया और तीन महीने की निलंबित सजा सुनाई गई। पूर्व ऑस्ट्रियाई राजनयिक और अध्यापक एलिजाबेथ सैबेटिख-वूल्फ पर 2011 में 'धार्मिक विश्वासों को ठेस पहुंचाने पर जुर्माना' किया गया, सजा सुनाई गई। जबकि उन्होंने वही बात कही थी जो कि प्रकाशित इस्लामी किताबों में थी। सलमान रश्दी के खिलाफ मौत का फतवा, डैनिश काटूनिस्ट पर मुहम्मद का चित्र बनाने पर हमले और शार्ली एब्दो के कार्यालय पर 7 जनवरी, 2015 को किया गया नरसंहार को सभी जानते हैं।
 
पश्चिम ने थर्ड राइख के अधिनायकवादी शासन को सहन किया और सोवियत रूस में भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जिंदा रही लेकिन अब खतरा 1.6 अरब लोगों के समूह से है जो कि संरा और अन्य वैश्विक संस्थाओं को भी बंधक बना सकता है। रश्दी की किताब के बाद कितनी किताबों को जलाया, प्रकाशन से रोका गया, टीवी डॉक्यूमेंट्रीज नहीं दिखाई जा सकीं, फिल्में नहीं बन सकीं क्योंकि इस्लामी कानून और सिद्धांतों के फतवों का सामना कर अपनी मौत को दावत देने का दुस्साहस भी शायद लोगों में हो।  
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

ब्रिटेन बाहर आया तो रूस का खतरा