पश्चिम के अन्य देशों की तरह जर्मनी में भी हर तरह के यौन अपराध बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं। इन्हीं दिनों एक बार फिर ऐसे कई लोगों की धर-पकड़ हुई है, जिन्होंने स्कूली बच्चों ही नहीं, नवजात शिशुओं तक के साथ यौन दुराचार की पाशविक बर्बरता में कोई कसर नहीं छोड़ी!
वेर्मेल्सकिर्शन जर्मनी का एक छोटा-सा शहर है। पचिमी जर्मनी के सबसे बड़े शहर कोलोन से केवल 40 किलोमीटर दूर है। जनसंख्या है 35 हज़ार। एक हरा-भरा, शांत और सुन्दर शहर। कभी किसी चर्चा में नहीं रहा। लेकिन, कुछ दिनों से यह शहर जर्मनी में ही नहीं, जर्मनी से बाहर भी जर्मनों के लिए शर्म का कारण बन गया है।
शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021 का दिन था। कोलोन से आए पुलिस के एक विशेष कमांडो दस्ते ने वेर्मेल्सकिर्शन के एक बंगलेनुमा घर पर छापा मारा। मार्कुस आर. नाम का 44 साल का एक व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ वहां रहता था। दोनों के कोई बच्चे नहीं थे। अड़ोसी-पड़ोसी मार्कुस को एक मिलनसार भलेमानुस के तौर पर जानते थे। समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसा क्या हो गया कि पुलिस के एक विशेष कमांडो दस्ते ने उसके घर को घेर लिया है?
कंप्यूटर और इंटरनेट वाले 'साइबर अपराधों' की विशेष जानकारी रखने वाले इस कमांडो दस्ते ने, घात लगाकर ठीक ऐसे क्षण में उसके घर पर छापा मारा, जब मार्कुस का कंप्यूटर चालू था। कंप्यूटर पर बच्चों के साथ यौनदुराचार की तस्वीरें चल रही थीं। छापामार दस्ते ने उस के कंप्यूटर सहित कई हार्ड डिस्कें और डेटा संचय की जो भी चीजें हो सकती थीं, उन सब को ज़ब्त कर लिया।
32 टेराबाइट डेटा : ज़ब्त सामग्री में संचित डेटा इतना बड़ा है कि कंप्यूटर और पोर्नोग्रफ़िक अपराधों की जांच-परख करने वाली कोलोन पुलिस की 35 लोगों वाली एक विशेष टीम, पूरे 18 दिनों तक, इन ज़ब्त सामग्रियों की आरंभिक जांच करने और उन्हें कॉपी करने में व्यस्त रही। टीम ने पाया कि मार्कुस आर. ने डेटा-संग्रह के 230 अलग-अलग माध्यमों पर, दुधमुंहे शिशुओं से लेकर किशोरवय बच्चों तक के साथ, एक से एक वीभत्स यौनदुराचार के 32 टेराबाइट के बराबर वीडियो और फ़ोटो जमा कर रखे थे।
1 टेराबाइट 1 लाख मेगाबाइट के और 1 मेगाबाइट 1 हज़ार किलोबाइट के बराबर होता है। अकेले एक हार्ड डिस्क पर 35 लाख फ़ोटो और 15 लाख वीडियो थे। वीडियो और फ़ोटुओं की संख्या इतनी बड़ी है कि सभी वीडियो और फ़ोटो अभी तक देखे नहीं जा सके हैं। केवल 10 प्रतिशत डेटा अब तक जांचा जा सका है। वे न केवल अत्यंत वीभत्स और घिनौने हैं, पशुता की हद तक बर्बरता से भरे हैं। उन्हें देखने और जांचने वालों का सिर भन्नाने लगता है। कोलोन के पुलिस-प्रमुख फ़ाल्क श्नाबल ने 30 मई को मीडिया से कहा : 'छोटे-छोटे बच्चों की ऐसी तड़प और पीड़ा, उनकी भयाक्रांत चीखों के प्रति ऐसी भावशून्य उदासीनता, निर्मम क्रूरता की ऐसी पराकाष्ठा को न तो मैंने कभी जाना-सुना था और न मैं कभी इसकी कल्पना कर पाया।' स्पष्ट है मार्कुस को गिरफ्तार कर लिया गया है और पूछताछ के लिए इस समय वह न्यायिक हिरासत में है।
खुद ही फ़ोटो लेते और वीडियो बनाते थे : मार्कुस आर. और उसके संगी-साथी, कम से कम 2005 से, बालक-बालिकाओं दोनों के साथ बहुत ही घिनौने क़िस्म के यौन-बलात्कार करते थे। अपने कुकर्मों के खुद ही फ़ोटो लेते और वीडियो बनाते थे। 'स्काइप' और 'क्यूटॉक्स' पर या फिर 'डार्कनेट' पर 'चैट' के माध्यम से वे उनके बारे में आपस में बातचीत करते और उनका आदान-प्रदान करते थे, उन्हें बेचते-ख़रीदते थे। इन फ़ोटो और वीडियो के आधार पर अब तक 33 ऐसे बच्चों की पहचान की जा सकी है, जिनके साथ गंभीर यौन दुराचार हुए हैं। दो-तिहाई बालक हैं और एक-तिहाई बालिकाएं। जांच पूरी हो जाने के बाद असली संख्या कई गुना अधिक हो सकती है।
दुराचार के समय बच्चों की आयु एक महीने से लेकर 14 साल के बीच थी। जो बच्चे अब वयस्क हो गए हैं, उन्हें पुलिस से ही पहली बार पता चला कि उनके साथ कैसा दुष्कर्म हुआ है। मई 2022 का अंत आने तक पुलिस ने मार्कुस आर. के चैट ग्रुप के 73 अन्य संदिग्धों की भी सूची बना ली थी। यह सूची भी अभी और लंबी हो सकती है।
जर्मनी में परिवार केवल माता-पिता और बच्चों तक ही सीमित होते हैं। बड़े-बूढ़े यदि हुए भी, तो या तो वे कहीं और रह रहे होते हैं या फिर वृद्धावस्था आश्रमों में रहते हैं। नौकरी-पेशा वाले माता-पिता को इस कारण कई बार किसी ऐसी महिला या पुरुष की ज़रूरत पड़ती है, जो कुछ घंटे उन के घर में रहकर उनके बच्चों की देखभाल करे। अंग्रेज़ी में इसे 'बेबी सिटिंग' कहते हैं। मार्कुस ने इसी को अपने यौन दुराचार की रणनीति बनाया।
छोटे बच्चों की दमघुटने तक की नौबत : अब तक की जांच में पुलिस ने पाया है कि मार्कुस आर. कोलोन शहर और उसके आस-पास के इलाकों में, 2005 से 2019 तक, अपने आप को एक 'बेबी सिटर' के तौर पर पेश किया करता था। देखभाल करने के बहाने से कम से कम 12 छोटे बच्चों को अपनी कामवासना का शिकार बनाया। कम से कम 6 बच्चे तीन साल से भी कम के थे। बलात्कारी उत्पीड़न के उसके तौर-तरीके इतने नीच, हिंसक और लगभग जानलेवा होते थे कि कुछ बहुत छोटे बच्चों की दम घुटने से मृत्यु होने तक की भी नौबत आ गई होनी चाहिये। आश्चर्य की बात है कि किसी भी माता-पिता को इसका या तो पता नहीं चला या उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया।
मुख्य अभियुक्त मार्कुस आर. कई अन्य लोगों के अलावा, 28 साल के बर्लिन के एक सह-अभियुक्त को परामर्श भी दिया करता था कि बच्चों के साथ ऐसा क्रूर बलात्कार कैसे करना चाहिए कि किसी को पता न चले। ज़्यौंके जी. नाम का यह दूसरा व्यक्ति भी कंप्यूट की सहायता से साइबर अपराध करने का माहिर है। किसी शारीरिक-मानसिक बाधा वाले बच्चों के साथ निर्मम बलात्कार दोनों का ख़ास शौक रहा है। इसका भंडाफोड़ तब हुआ, जब ज़्यौंके जी. को एक बार अस्तपाल में भर्ती होना पड़ा। वहां उसके मोबाइल फ़ोन में बच्चों के साथ घिनौने यौन दुराचार की फ़ाइलें मिलीं। इसकी ख़बर मिलते ही बर्लिन की पुलिस ने पिछले वर्ष 4 अगस्त को उसे धरदबोचा।
पकड़े जाने से पहले ज़्यौंके जी. भी 'बेबी सिटर' बनकर छोटे बच्चों का यौन-उत्पीड़न किया करता था। एक विज्ञापन-साइट पर लिखा कि उसे 'किंडरगार्टन की आयु वाले बच्चे संभालने का अच्छा अनुभव है।' वह ऐसे परिवारों की मदद करना चाहता है, 'जो निश्चिंत पारिवारिक जीवन चाहते हैं।' बच्चों की देखभाल के लिए उसने केवल 5 यूरो प्रतिघंटे की मांग की। यह जर्मनी में प्रचलित प्रतिघंटे के न्यूनतम पारिश्रमिक या वेतन के आधे के बराबर था। कई माता-पिता उसके जाल में फंस गए।
मोबाइल फ़ोन ने पोल खोली : यही नहीं, विकलांग बच्चों वाले परिवारों की सहायता के लिए बनी बर्लिन की एक एजेंसी और बाल कल्याण विभाग के वहां के दो सरकारी कार्यालयों को भी ज़्यौंके ने अपनी 'सेवाएं' दीं। किसी को उस पर शक नहीं हुआ। एकाध छोटे-मोटे अपराधों के कारण वह पकड़ा भी गया, पर अस्पताल में उसके मोबाइल फ़ोन ने यदि उसकी पोल न खोली होती, तो वह शायद आज भी बच्चों के साथ यौन दुराचार कर रहा होता। उसे कुछ ही समय पहले 7 महीने के एक दुधमुंहे बच्चे से लेकर 8 साल तक के 26 बालकों के साथ यौन दुराचार करने के आरोप में 12 साल जेल की सज़ा सुनाई गई है।
पुलिस अभी पूरी तरह पता नहीं लगा पाई है कि छोटे-छोटे बच्चों के साथ क्रूर बलात्कार के रसिकों का चैट-ग्रुप कितना बड़ा है। जर्मनी के 'निजता की गोपनीयता' संबंधी क़ानून पुलिस के आड़े आ रहे हैं। अनुमान है कि इस नीचता के दूसरे रसिक भी बच्चों की सस्ती देखभाल के ऑनलाइन विज्ञापनों द्वारा माता-पिता को धोखा देते रहे होंगे। सबसे अविश्सनीय सच तो यह है कि कुछ ऐसे चेहरों की पहचान भी हुई है, जो स्वयं किसी पीड़ित बच्चे के सगे या सौतेले पिता, भाई या पड़ोसी हैं। एक व्यक्ति तो पीड़ित बच्चे का परदादा निकला! किसी समाज का इससे बड़ा अधःपतन भला और क्या हो सकता है! पिताओं द्वारा अपने ही बच्चों के साथ यौन दुराचार का यह कोई पहला उदाहरण भी नहीं है और न ही जर्मन समाज इस तरह की घटनाओं के कारण बहुत उद्वेलित होता है। कोई धरने-प्रदर्शन नहीं होते।
जहां तक इस चैट-ग्रुप के सरगना, वेर्मेल्सकिर्शन के मार्कुस आर. का प्रश्न है, वह दिसंबर 2021 में अपनी गिरफ्तारी तक जर्मनी की बहुराष्ट्रीय रासायनिक कन्सर्न 'बायर एजी' का एक 'आईटी एक्सपर्ट' था। उसके कुकर्मों की जांच अभी चल रही है। अपने चैट में वह दूसरों को एक से बढ़कर एक जो क्रूर सलाहें दिया करता था, वे लिखने लायक नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि अकल्पनीय दुष्टता और नीचता की जर्मनी में यह पहली घटना है।
दो और ऐसे ही बड़े कांड : राइन नदी वाले 'नॉर्थ राइन वेस्टफ़ालिया' नाम के जर्मनी के जिस राज्य में यह भंडोफोड़ हुआ है, उसी राज्य में दो और ऐसे ही बड़े कांड हो चुके हैं। एक था 'ल्युश्दे' नाम के एक छोटे-से शहर में कैम्पिंग करने की जगह पर 2008 से 2018 तक चला गोरखधंधा, जिसकी जानकारी मीडिया को जनवरी 2019 में दी गई। वहां 4 से 13 साल तक की 28 लड़कियों और 6 लड़कों के साथ एक हज़ार से अधिक बार निर्मम बलात्कार किए गए और उनके वीडियो आदि बना कर बेचे गए। वहां भी बाप-बेटी जैसे पवित्र रिश्तों की परवाह नहीं की गई। हद तो यह हुई कि एक मां भी, अपने पति द्वारा दोनों की साझी बेटी के साथ बलात्कार में हाथ बंटाया करती थी! केवल दो अभियुक्तों को 12 और 13 साल जेल की सज़ा सुनाई गई।
दूसरा मामला कोलोन शहर से ही सटे हुए 'बेर्गिश ग्लाडबाख़' नाम के शहर का है। अक्टूबर 2019 में वहां एक घर पर छापा मार कर की गई तलाशी के दौरान बच्चों को लेकर बनी 12,000 वीडियो फ़िल्मों और 1,30,000 फ़ोटुओं का भंडार मिला। जून 2020 तक पुलिस को 30,000 ऐसे सुराग मिले, जिनके तार बच्चों के पोर्नोग्रफ़िक वीडियो से ही नहीं, उनके साथ भयंकर यौन दुराचार से भी जुड़ते थे।
पहली गिरफ्तारी होने तक 350 जांचकर्ता इन वीभत्स वीडियो और फ़ोटुओं को देखकर पीड़ितों और दोषियों की पहचान करने और उनका पता लगाने में व्यस्त रहे। उन्होंने पाया कि यह मामला बलात्कार और उसके व्यापार का एक ऐसा उदाहरण है, जो जर्मनी के भीतर ही नहीं, जर्मनी के बाहर तक फैला हुआ था। अक्टूबर 2021 तक 65 बच्चों को यह घृणित कारोबार करने वालों के चंगुल से छुड़ाया गया। 80 लोगों के विरुद्ध जांच-पड़ताल हुई।10 के विरुद्ध मुकदमा चला और केवल तीन को सज़ा मिली। उनमें से एक को अपनी ही बेटी के साथ 60 बार यौनदुराचार करने और उनकी फ़िल्में बनाने का दोषी पाया गया। उसे 12 साल जेल की सज़ा हुई। सज़ा पाने वाला एक दूसरा दोषी ऑस्ट्रिया का नागरिक था। उसने भी अपनी ही बेटी का य़ौनशोषण किया था।
जर्मनी में प्रतिदिन 49 बच्चे होते हैं यौन हिंसा के शिकार : धन-संपत्ति की दृष्टि से जर्मनी एक खुशहाल देश हो सकता है, पर यौन-नैतिकता की दृष्टि से उसके नागरिक पामाल होते जा रहे हैं। हाथकंगन को आरसी क्या! जर्मनी की वर्तमान गृहमंत्री नैन्सी फ़ेज़र ने, देश के अपराध कार्यालय के आंकड़ों के आधार पर, गत 29 मई को कहा कि 2021 में जर्मनी में प्रतिदिन औसतन 49 बच्चों को यौनहिंसा का शिकार बनाया गया। दूसरे शब्दों में, हर दो मिनट पर देश में कहीं न कहीं, किसी न किसी बच्चे के साथ यौन दुराचार होता है। ये आंकड़े घटने के बदले बढ़ते ही जा रहे हैं। सारे मामले पुलिस तक पहुंचते भी नहीं। सभी अपराधी या तो पकड़ में नहीं आते या न्यायालय में उनका अपराध पूरी तरह सिद्ध नहीं हो पाता। 12 साल से अधिक की सज़ा नहीं दी जा सकती। मृत्युदंड नाम की तो अब कोई सज़ा है ही नहीं।
सच यह भी है कि बच्चों और लड़कियों-महिलाओं के साथ बलात्कार जैसे यौन-अपराध जर्मनी ही नहीं, पूरे यूरोपीय संघ में, बल्कि पूरे पश्चिमी जगत में हर दिन के साथ विकराल रूप धारण करते जा रहे हैं। जर्मनी सहित पश्चिमी जगत का वह मुखर मीडिया, जो दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को हुए 'निर्भया बलात्कार' प्रकरण के बाद से भारत को 'बलात्कारियों का देश' बताने और 'सड़े-गले हिंदू धर्म' के 'पितृसत्तात्मक चरित्र' को उसके लिए ज़िम्मेदार ठहराने लगा था, अपने यहां की उससे भी वीभत्स और विराट आयामों वाली घटनाओं की प्रायः खानापूरी करके ही अपने दायित्व की इतिश्री मान लेता है।
भारत के प्रति दुर्भावना की अति : भारत में होने वाली बलात्कार की जघन्य घटनाओं को पश्चिमी मीडिया में अब भी बड़े चाव से खूब उछाला जाता है। पर यह नहीं पूछा जाता कि पश्चिमी देशों का अपना समाज पतन की किस गर्त में गिर रहा है। इसका एक सबसे अच्छा उदाहरण लंदन स्थित थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन का 26 जून 2018 को प्रकाशित वैश्विक सर्वे है, जिसमें में भारत को महिलाओं के लिए 'दुनिया का सबसे ख़तरनाक देश' घोषित किया गया था। उस सर्वे में युद्ध, गृहयुद्ध या अराजकता की मार खा रहे अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, सोमालिया या यमन जैसे देशों को, जहां महिलाओं तो क्या, किसी की भी जान सुरक्षित नहीं थी और न आज तक है, महिलाओं के लिए भारत की अपेक्षा अधिक सुरक्षित घोषित किया गया था।
भारत के प्रति दुर्भावना की अति तो यह थी कि लंदन के थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने 4 महीने पहले, 23 फ़रवरी 2018 को, उसी लंदन से प्रकाशित होने वाले ब्रिटिश दैनिक दि इंडिपेंडेंट की वेबसाइट पर यह समाचार नहीं देखाः लंदन ने एक ही साल में बलात्कार के मामलों को 20 प्रतिशत बढ़ते देखा, पर पुलिस स्वीकार करती है कि वह इसका कारण समझ नहीं पा रही है। इस समाचार के अनुसार, 81 लाख36 हज़ार की जनसंख्या वाले लंदन के मेयर के अधीनस्थ पुलिस और अपराध कार्यालय (एमओपीएसी) ने 2017 में बलात्कार के 7,613 मामले दर्ज किए। 12 महीने पहले यह आंकड़ा 6,392 था।
दूसरे शब्दों में, दिल्ली या मुम्बई की अपेक्षा आधी से भी कम जनसंख्या वाले अकेले लंदन शहर में, 2017 में हर दिन, यानी 24 घंटो में, कम से कम 21 बलात्कार हो रहे थे! कह सकते हैं कि लंदन में लगभग हर घंटे एक बलात्कार होता है। दूसरी ओर, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के सर्वे का ही कहना था कि भारत में –– यानी उस समय एक अरब 33 करोड़ की जनसंख्या वाले पूरे भारत में –– 2016 में बलात्कार के हर घंटे औसतन चार मामले दर्ज किए जा रहे थे। 81 लाख की जनसंख्या वाले लंदन में हर घंटे औसतन एक बलात्कार और एक अरब 33 करोड़ जनसंख्य वाले भारत में हर घंटे औसतन यदि चार बलात्कार हो रहे थे, तो महिलाओं का जीवन भारत में अधिक सुरक्षित सिद्ध हुआ या लंदन में?
दि इंडिपेंडेंट ने लिखा, अकेले इंग्लैंड और वेल्स प्रदेश के बारे में हुए एक सर्वे के आधार पर अनुमान लगाया गया कि मार्च 2017 से पहले के 12 महीनों में वहां 5 लाख 10 हजार महिलाओं और एक लाख 38 हजार पुरुषों को गंभीर क़िस्म के यौन दुराचार झेलने पड़े। हर छह में से पांच पीड़ितों (83 प्रतिशत) ने पुलिस के पास शिकायत नहीं की, क्योंकि उन्हें डर था कि केस-मुकदमा लंबा चलेगा और अदालत में अपनी बात प्रमाणित कर पाना उनके लिए और अधिक पीड़ादायक होगा। सवा आठ करोड़ की जनसंख्या वाले जर्मनी में 2017 में हर दिन औसतन 30 बलात्कार हो रहे थे और हर सप्ताह औसतन तीन महिलाओं की बलात्कारी हत्या हो रही थी। भारत में स्थिति चाहे जितनी बुरी हो, धन-धान्य से परिपूर्ण पश्चिमी देशों की अपेक्षा फिर भी बेहतर है। (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। वेबदुनिया इसकी जिम्मेदारी नहीं लेती)