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ब्रिटेन में महंगाई-दर ने 40 साल के रिकॉर्ड तोड़े, अमेरिका समेत सभी देशों का हाल-बेहाल

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राम यादव

, शुक्रवार, 20 मई 2022 (12:05 IST)
इस समय दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश होगा, जहां मंहगाई का रोना नहीं रोया जा रहा है। अमेरिका हो या इंग्लैंड, जर्मनी हो या जापान, मंहगाई की मार से सभी देशों के लोग बेहाल हैं।
 
राहुल गांधी एक ऐसी विशिष्ट पारिवारिक परंपरा के प्रतिनिधि हैं, जिसकी चार पीढ़ियों के हर सदस्य ने ब्रिटेन में पढ़ाई की है। शायद वे ब्रिटिश नागरिक भी हैं। नागरिक नहीं भी हों, तब भी वहां आते-जाते रहते ही हैं। उन्हीं की तरह ट्वीट करते रहने वाले उनके यार-दोस्त भी वहां होंगे ही। 18 मई को यह दावा करने से पहले कि मंहगाई और बेरोज़गारी के मामले में भारत का हाल श्री लंका जैसा हो गया है। लोगों का ध्यान भटकाने से तथ्य नहीं बदलते, उन्हें तथ्यपरक रहने के लिए उसी दिन का ब्रिटेन का कोई अख़बार देख लेना या वहां के अपने यार-दोस्तों से पूछ लेना चाहिए था कि बर्तानिया महान में मंहगाई का क्या हाल है?
 
उसी दिन ब्रिटेन में मंहगाई के नए आंकड़े प्रकाशित हुए थे। उनसे पता चलता है कि ब्रिटेन में उपभोक्ता की़मतों में वृद्धि की औसत दर, पिछले चार दशकों की वृद्धि दरों की तुलना में इस समय सबसे अधिक है। वहां के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ओएनएस ने बताया की, पिछले साल के अप्रैल महीने की अपेक्षा इस साल के अप्रैल में मुद्रास्फीति, यानी मंहगाई दर, बढ़कर नौ प्रतिशत हो गई।
 
ब्रिटेन में रिकॉर्ड मंहगाई दरें दर्ज करने की परंपरा 1997 में शुरू हुई थी। पिछली गणनाओं के आधार पर ओएनएस के सांख्यिकीविद और भी पीछे गए और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि 40 वर्ष पूर्व, 1982 के आसपास, मुद्रास्फीति की दर सबसे अधिक रही होगी। पिछले मार्च माह वह 7 प्रतिशत थी। एक ही महीने 2 प्रतिशत और बढ़ गई।
 
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मंहगाई की इस बहुत ही ऊंची दर से चिंतित ब्रिटेन की विदेशमंत्री लिज़ ट्रस ने स्काई न्यूज टीवी चैनल से कहा कि कीमतें मुख्य रूप से अधिक महंगी बिजली, अधिक महंगी गैस और पेट्रोल जैसे ईंधनों के कारण तेज़ी से बढ़ी हैं। किराने की वस्तुएं भी काफ़ी मंहगी हो गई हैं। हम एक बहुत ही कठिन आर्थिक स्थिति में हैं।
 
उनका भी मानना था कि इस असाधारण मंहगाई के पीछे अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम मुख्य कारण है। इशारा कोरोना वायरस के कारण दो वर्षों से चल रही वैश्विक महामारी और अब रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला कर देने से फैली अफ़रातफ़री की तरफ था। दोनों का वैश्विक स्तर पर आज की अर्थव्यवस्था और रोज़गार पर भारी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
 
एक सर्वे के अनुसार, मंगाई की मार से ब्रिटेन की जनता इस तरह कराहने लगी है कि हर तीन में से दो ब्रिटेनवासी पैसे बचाने के लिए सर्दियों में घर को गरम रखने की हीटिंग बंद रखने लगे। एक चौथाई से अधिक उत्तरदाताओं ने यह तक कहा कि पैसे की तंगी के कारण उन्होंने कई बार खाना भी नहीं खाया।
 
कोविड़-19 महामारी शुरू होने के बाद से बैंक ऑफ इंग्लैंड ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने वाला पहला प्रमुख केंद्रीय बैंक बन गया है। वह पहले ही चार बार ब्याज दरें बढ़ा चुका है। भारत के रिज़र्व बैंक जैसा ब्रिटेन का यह केंद्रीय बैंक इस बीच ब्याज दरों में वृद्धि के द्वारा आसमान छूती मंहगाई-दर से लड़ने का प्रयास कर रहा है। मई की शुरुआत में, बैंक ऑफ इंग्लैंड ने, केवल छह महीनों में चौथी बार, प्रमुख ब्याज दर (प्राइम रेट) बढ़ाकर 1.0 प्रतिशत कर दी, जो 2009 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद की उसकी उच्चतम ब्याजदर है। इस दर पर वह व्यावसायिक बैंकों को धन देता है।
 
तब भी, ब्रिटेन का आर्थिक भविष्य फ़िलहाल धूमिल ही दिख रहा है: इस वर्ष के दौरान मंहगाई बढ़ कर 10 प्रतिशत पर पहुंच जाने और अर्थव्यवस्था के मंदी की चपेट में आने की संभावना है। आने वाले वर्ष के लिए, ब्रिटेन के मुद्रानीति नियामक, आर्थिक गतिविधियों के सिकुड़ने और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2024 में स्थिर होने की संभावना देख रहे हैं।

यूरोपीय केंद्रीय बैंक और अमेरिका का फ़ेडरल रिज़र्व बैंक भी अपनें यहां तेज़ी से बढ़ रही मंहगाई दरों पर लगाम लगाने के लिए अपनी ब्याज दरें बढ़ाने लगे हैं। बाज़ार-प्रेक्षकों का अनुमान है कि अमेरिका के फ़ेडरल रिज़र्व की ब्याज दर, इस वर्ष का अंत आने तक, इस समय के 1 प्रतिशत से बढ़ कर 2.75 प्रतिशत या 3 प्रतिशत हो सकती है।
 
यूरोपीय संघ की सबसे तगड़ी अर्थव्यवस्था वाले जर्मनी में भी मंहगाई दर 7 प्रतिशत को पार कर गई है। बिजली, डीज़ल-पेट्रोल और प्राकृतिक गैस के बुरी तरह मंहगा हो जाने से सब कुछ मंहगा होता गया है। कोई अंत फ़िलहाल दिख नहीं रहा है। जब दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियां भी इस समय मंहगाई और बेरोज़गारी से निपट नहीं पा रही हों, तो भारत से किसी चमत्कार की आशा नहीं की जा सकती।
 
भारत इस दुनिया से बाहर या ऊपर नहीं है। उसकी स्थिति तब भी अपने पास-पड़ोस ही नहीं, बहुत से समुद्रपारीय देशों से भी कहीं बेहतर है। कोई देश जनसंख्या की दृष्टि से जितना बड़ा होता है, उतनी ही अधिक समस्याओं से भी घिरा रहता है। लोकतंत्र होने के नाते भारत, चीन या उत्तर कोरिया की तरह सबको एक ही डंडे से हांक नहीं सकता।

जो विपक्षी नेता भविष्य में भारत के भाग्यविधाता बनना चाहते हैं, उन्हें भी यथार्थ के धरातल पर रह कर अपनी बात कहनी चाहिये। उनके पास भी कोई ऐसी जादुई छड़ी न तो है और न होगी कि उनके आते ही सारी समस्याएं छूमंतर हो जाएं। राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी ने ही भारत पर सबसे अधित समय तक राज किया है। आज की बहुत-सी समस्याएं क्या कांग्रेस-काल की ही विरासत नहीं हैं!

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