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ईरानी मस्जिदों पर जर्मनी में छापेमारी

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राम यादव

, मंगलवार, 30 जुलाई 2024 (08:00 IST)
लोकसभा चुनावों के समय भारत में मुस्लिम धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर जर्मनी सहित पश्चिमी मीडिया में खूब आंसू बहाए जा रहे थे। अब वही मीडिया जर्मनी के हैम्बर्ग शहर के इस्लामिक सेंटर पर प्रतिबंध और उससे जुड़ी देशभर में कई मस्जिदों पर हुई छापेमारी को लेकर दोगली तालियां पीट रहा है।  
 
जर्मनी के गृह मंत्रालय ने 24 जुलाई को हैम्बर्ग में स्थित 'ईरानी इस्लामिक सेंटर (IZH)' पर प्रतिबंध लगा दिया। उसी दिन ब्लू मस्जिद के नाम से प्रसिद्ध, हैम्बर्ग की ईरानी मस्जिद सहित जर्मनी के कुल 8 राज्यों की ऐसी मस्जिदों एवं अन्य सुविधाओं पर पुलिस ने छापे मारे, जिनके हैम्बर्ग के 'ईरानी इस्लामिक सेंटर (IZH)' के साथ निकट संबंध बताए जाते हैं। देशभर में कुल मिलाकर 53 मस्जिदों, सभा-सम्मेलन की जगहों और आवासों की छानबीन हुई और भारी मात्रा में विभिन्न प्रकार की सामग्रियां और संपत्तियां ज़ब्त की गईं।
 
कहने की आवश्यकता नहीं कि इसी तरह की कोई छापेमारी और सामग्रियों की ज़ब्ती यदि भारत में हुई होती, तो पूरा इस्लामी जगत ही नहीं, अपने आप को 'सेक्युलर' कहने वाला पूरा पश्चिमी जगत भी आसमान सिर पर उठा लेता। 24 जुलाई को जर्मनी में जो कुछ हुआ, उस पर अपना विरोध प्रकट करने के लिए ईरान के विदेश मंत्रालय ने तेहरान में कार्यरत जर्मन राजदूत को बुलाकर प्रतिवाद किया।
 
24 जुलाई के दिन जर्मन पुलिस, सुबह 6 बजे ही भारी संख्य में हैम्बर्ग के 'ईरानी इस्लामिक सेंटर (IZH)' पर टूट पड़ी। पुलिसकर्मियों ने मुंह पर नकाब लगा रखी थी, ताकि उन्हें पहचाना न जा सके। वे अपने वाहनों से कूदे और सेंटर के परिसर पर धावा बोल दिया। भारी मशीनों की सहायता से तोडफोड़ करते हुए वे परिसर के भीतर बनी मस्जिद एवं अन्य इमारतों में घुसे। वहां जो लोग थे, पुलिस की भारी संख्या देखते हुए उन्होंने कोई प्रतिरोध नहीं किया।
 
जर्मन गृह मंत्रालय का कहना है कि अकेले इसी छापे में भारी संख्या में कंप्यूटर आदि जैसे IT उपकरण, दो मोटर वाहन और कम से कम एक लाख यूरो (1 यूरो=90.57 रु.) के बराबर नकदी ज़ब्त की गई है। पुलिस को ऐसे बहुत से दस्तावेज़ भी मिले हैं, जो फ़िलस्तीनियों के हमास और लेबनान के हिज़्बोल्ला जैसे जर्मनी में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों के बारे में हैं। जो कुछ ज़ब्त किया गया है, वह इतना अधिक है कि उसे पूरी तरह छानने-बीनने और जानने-समझ में काफ़ी समय लगेगा।
 
अकेले हैम्बर्ग शहर में ही 30 जगहों पर तलशी हुई है। ऐसी ही तलाशियां देश के उन शहरों में भी हुई हैं, जहां छापे मेरे गए। संविधान रक्षा कार्यालय कहलाने वाली जर्मनी की आंतरिक गुप्तचर सेवा पिछले 30 वर्षों से हैम्बर्ग के 'ईरानी इस्लामिक सेंटर (IZH)' पर नज़र रखे हुए थी। उसका कहना है कि यह सेंटर ईरानी सरकार का यूरोपीय लंबा हाथ है। उसके निदेशक (डायरेक्टर) ईरान के सर्वोच्च धर्माधिकारी यानी 'अयातोल्ला' द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। इस कारण ईरानी शिया समाज पर इस सेंटर के निदेशक का रोबदाब बहुत व्यापक है, कहना है जर्मनी की आंतरिक गुप्तचर सेवा का। 
 
जर्मन गृह मंत्रालय के प्रतिबंध आदेश में कहा गया है कि 'ईरानी इस्लामिक सेंटर (IZH)' की गतिविधियां जर्मनी के संविधान से मेल नहीं खातीं। वह उग्र इस्लामी नीतियां प्रचारित करता है और यहूदी-विरोधी घृणा फैलाता है। सच्चाई यह भी है कि दो वर्ष पूर्व हिज़ाब नहीं पहनने के कारण ईरान में हुई एक महिला की मृत्यु के बाद ईरान में जो देशव्यापी प्रदर्शन हुए, उन्हें जिस निर्ममता से दबा दिया गया और अब इसराइल पर हमास के हमले के बाद जो विकट स्थिति पैदा हो गई है, उसके कारण जर्मन सरकार पर हर तरफ़ से यह दबाव भी पड़ रहा था कि 'ईरानी इस्लामिक सेंटर (IZH)' पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
 
जर्मनी की गृहमंत्री नैन्सी फ़ेज़र ने, बहुत देर से ही सही, इस प्रतिबंध के पक्ष में अपने निर्णय का औचित्य सिद्ध करते हुए कहा कि एक संस्था के रूप में, ईरानी इस्लामिक सेंटर, ईरान के क्रांतिकारी नेता की आक्रामकता का जर्मनी में सीधा प्रतिनिधि है और वह जर्मनी में इस्लामी क्रांति की विचारधारा फैलाता है। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि हम किसी मज़हब के विरुद्ध काम नहीं कर रहे हैं। हमारे प्रतिबंध से शिया मज़हब के शांतिपूर्ण परिपालन को कोई आंच नहीं पहुंचेगी।  
 
हैम्बर्ग शहर के मेयर ने एक पत्रकार सम्मेलन में कहा कि 'पिछले कुछ वर्षों से ब्लू मस्जिद की गतिविधियों और तेहरान की सरकार के साथ उसके संबंधों के बारे में संविधान रक्षा कार्यालय की रिपोर्टों को पढ़ना बहुत कष्टदायक हो गया था। उग्र इस्लामवाद और यहूदी विरोध के लिए एक उन्मुक्त, लोकतांत्रिक और स्वतंत्र हैंम्बर्ग में कोई जगह नहीं हो सकती... ईरान की मनुष्यों के प्रति घृणाभरी, ईरान से दूर की इस चौकी (मस्जिद) का आज से बंद हो जाना, इस्लामी अतिवाद के विरुद्ध वाकई एक कारगर क़दम कहलाएगा।
 
जर्मनी में लंबे समय से रह रहे कुछ इरानी जर्मन सरकार के इस क़दम की सराहना कर रहे हैं तो कुछ दूसरे उसकी निंदा-आलोचना भी। 'ईरानी इस्लामिक सेंटर (IZH)' की फ्रैंकफ़र्ट शाखा की इमाम अली मस्जिद भी बंद हो गई है। उसके दो हज़ार से अधिक सदस्यों ने 26 जुलाई को धरने के रूप में एक प्रदर्शन किया। उनका कहना था कि मस्जिद के बिना हम बेघर हो गए हैं। उनकी ओर से एक वकील ने कहा कि हम मस्जिद बंद होने के विरोध में फ्रैंकफ़र्ट के प्रशासनिक मामलों के न्यायालय में मुकदमा दायर करेंगे। हम तब तक सड़कों पर प्रदर्शन करते रहेंगे, जब तक हमारी मस्जिद हमारे लिए पुनः खोल नहीं दी जाती। 
 
जर्मनी ने एक साहसिक क़दम उठाया ज़रूर है, पर देखना है कि जर्मनी की तीन पार्टियों वाली गठबंधन सरकार, जो आपसी खींचतान से भी पूरी तरह मुक्त नहीं है, कब तक साहसिक बनी रह पाती है। जर्मनी की इस साहसिकता का यह भी अर्थ नहीं है कि आत्ममुग्ध जर्मन या पश्चिमी मीडिया, हर मौके-बेमौके कथित अल्पसंख्यकों के बहाने से भारत पर कीचड़ उछालना छोड़ देगा।

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