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इटली चुनाव, यूरोप में फ़ासीवाद के पुनरुत्थान का एक और प्रतीक

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राम यादव

यूरोप के देश बड़े गर्व से अपने आप को लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और मानवीयता के आदर्श नमूनों के तौर पर पेश करते हैं। राष्ट्रवाद को फ़ासीवाद जैसा एक विष और स्वयं को उससे मुक्त दूध का धुला बताते हैं। पर, इन देशों के चुनाव परिणाम कई बार इन दावों की धज्जियां उड़ाते दिखते हैं।
 
इटली का ताज़ा चुनाव परिणाम इस वर्ष के अब तक 4 महत्पूर्ण यूरोपीय चुनावों में इसी रुझान की पुष्टि करता है। ये चार देश हैं हंगरी, फ्रांस, स्वीडन और अब इटली। इटली में रविवार, 25 सितंबर को हुए चुनाव की मुख्य विजेता, 45 वर्षीय जॉर्जिया मेलोनी जब तक प्रधानमंत्री का पदभर संभालेंगी, तब तक 30 अक्टूबर बहुत निकट आ चुका होगा। यह तारीख़ इटली के इतिहास का एक बहुत ही कलंकित दिन है। हिटलर का घनिष्ठ मित्र रहा इटली का फ़ासीवादी तानाशाह बेनीतो मुसोलिनी, ठीक 100 पहले, 1922 के 30 अक्टूबर के दिन ही सत्तारूढ़ हुआ था।      
 
जॉर्जिया मेलोनी अपने युवा दिनों में मुसोलिनी की प्रबल प्रशंसक रही हैं। इटली की इस संभावित प्रधानमंत्री ने फ़िलहाल अपनी ज़बान पर कुछ लगाम ज़रूर लगा रखी है। अपने आप को 'कंज़र्वेटिव' कहने लगी हैं। पर कौन कह सकता है कि उनके दिल में मुसोलिनी के लिए अब आदर की जगह केवल निरादर है! तीन पार्टियों के जिस गठबंधन का वे नेतृत्व करेंगी, बिगड़ैल सांडों जैसे उनके दोनों सहयोगी अड़ियल नेता भी उनके लिए कुछ कम सिरदर्द नहीं बनेंगे। 
 
सभी इतालवियों के लिए काम करेंगी : चुनाव जीतने के बाद सभी नेता यही कहते हैं कि हम सबके भले के लिए काम करेंगे। जॉर्जिया मेलोनी ने भी कहा कि हमें इस राष्ट्र का नेतृत्व करने के लिए पुकारा गया है... तो हम सभी इतालवियों के लिए काम करेंगे। लक्ष्य होगा जनता को एक करना.... ताकि इतालवी अपने इतालवी होने पर गर्व कर सकें और गर्व के साथ अपना तिरंगा झंडा फ़हरा सकें। इटली के राष्ट्रध्वज में हरे और लाल रंग की दो सीधी पट्टियों के बीच सफ़ेद रंग की एक पट्टी होती है, इसीलिए उसे 'तिरंगा झंडा' कहा जाता है।
 
लगता है, भारत की तरह इटली में भी अराष्ट्रवादी होने को जनवादी और प्रगतिशील मानने वाले वे लोग, जो जनता जनार्दन से कट गए हैं, राष्ट्रीय झंडा फहरना पसंद नहीं करते। शायद इसलिए भी इतालवी जनता के एक वर्ग ने, तीन दशक बाद, इस बार एक ऐसे दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी गठबंधन को बहुमत दिया है, जो चाहता है कि राष्ट्रध्वज फ़हराना शर्म नहीं, गर्व का विषय होना चाहिए। 
 
सबसे कम मतदान अनुपात : इटली में बार-बार गठबंधन सरकारें ही बनती और गिरती रही हैं। मतदान के प्रति जनता का उत्साह भी उसी के अनुरूप उतार पर रहा है। इस बार के चुनाव में केवल 63.8 प्रतिशत मतदान इटली के इतिहास का सबसे कम अनुपात है। अब तक की सरकार में प्रमुख भागीदार रही समाजवादी झुकाव वाली डेमोक्रेटिक पार्टी को 20 प्रतिशत वोटों से ही संतोष करना पड़ा। जॉर्जिया मेलोनी की अपनी पार्टी 'फ़्रातेली दे इतालिया' (इटली के बंधुओं) को 26 प्रतिशत और तीन पार्टियों वाले उनके गठबंधन को कुल मिलाकर 44 प्रतिशत वोट मिले। बाक़ी 30 प्रतिशत वोट अन्य पार्टियों के बीच बंट गए।
 
जॉर्जिया मेलोनी के गठबंधन-साथी साथ ही उनके प्रतिस्पर्धी भी हैं। सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी हैं, 4 बार इटली के प्रधानमंत्री रहे 86 वर्षीय सिल्वीयो बेर्लुस्कोनी। जॉर्जिया मेलोनी 2008 में बेर्लुस्कोनी की सरकार में खेल मंत्री रह चुकी हैं। बेर्लुस्कोनी न केवल बहुत मालदार हैं, दिलफेंक भी कुछ कम नहीं रहे हैं। कर चोरी जैसे कई अपराधों के लिए दंडित भी रह चुके हैं। दूसरे हैं 49 वर्षीय मात्तेओ साल्वीनी, जो मौके के अनुसार गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर माने जाते हैं। उनकी पसंद यदि नहीं चली, तो वे भितरघात करने और किसी भी समय जॉर्जिया मेलोनी की सरकार को गिराने में कोई संकोच नहीं करेंगे। 
 
धाकड़ वक्ता हैं : बहुत बुलंद आवाज़ वाली जॉर्जिया मेलोनी एक धाकड़ वक्ता हैं। उनकी जय-जयकार करने वाले प्रायः वे लोग भी होते हैं, जो मुसोलिनी के भक्त कहे जा सकते हैं। मेलोनी की चुनावी रैलियों में वे हिटलर और मुसोलिनी वाले अंदाज़ में, तना हुआ दाहिना हाथ कंधे से तिरछा ऊपर उठा कर सैल्यूट करते हुए सब का अभिननंदन करते हैं। मुसोलिनी की हत्या के 77 वर्ष बाद भी उसके फ़ासीवाद के प्रति उनका मोह भंग नहीं हो पाया है। जर्मनी के हिटलर-भक्त नवनाज़ीवादियों का भी यही हाल है, हालांकि हिटलर की आत्महत्या को भी 77 वर्ष हो चुके हैं। 
 
जॉर्जिया मेलोनी लेकिन अब अपने आप को एक ऐसी आधुनिक उन्मुक्त महिला और मां के रूप में पेश करती हैं, जो मुसोलिनी-भक्ति को पीछे छोड़ चुकी है। जो अपने दोनों पैरों के साथ क़ानून के राज वाले लोकतांत्रिक देश इटली की भूमि पर खड़ी है। राजनीति में इसलिए आई है, ताकि देश को एक ऐसा नेतृत्व दे सके, जो पिछली अल्पजीवी सरकारें और उनके भ्रष्ट नेता न तो दे सके और न देने लायक थे।
 
कथनी और करनी में एकरूपता है : अपनी पार्टी 'फ़्रातेली दे इतालिया' (इटली के बंधुओं)  के बारे में मेलोनी ने हाल ही में कहा कि उसमें 'नस्लवादियों, नवनाज़ीवादियों और यहूदी-विरोधियों के लिए कोई जगह नहीं है।' फ़ासीवादियों का नाम उन्होंने नहीं लिया। मुसोलिनी के फ़ासीवाद के बारे में उनका कहना था कि उसे ''उस समय के ऐतिहासिक संदर्भ में रखकर देखा जाना चाहिए। आलोचक भी इस बात को मानते हैं कि उनकी कथनी और करनी में राजनीतिक एकरूपता होती है। अपने दोनों गठबंधन-सहयोगियों बेर्लुस्कोनी और साल्वीनी की तरह वे हर मत सर्वेक्षण के बाद बदल नहीं जातीं।
 
उदाहरण के लिए, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से पहले भी मेलोनी रूस के प्रति 'नाटो' की नीति की समर्थक थीं और अब भी हैं। जबकि बेर्लुस्कोनी और साल्वीनी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का बचाव करते हैं। प्रेक्षकों को लगता है कि मेलोनी के त्रिगुटे में देर-सवेर पहला टकराव पुतिन को लेकर ही होगा। तीनों के बीच किसी टकराव की संभावना यदि सबसे कम है, तो वह है यूरोपीय संघ को बुरा-भला कहने में। इटली यूरोपीय संघ की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, पर इटली वालों को लगता है उनके साथ हमेशा सौतेला बर्ताव होता है। (अगली कड़ी में पढ़िए मोदी और मेलोनी में क्या समानताएं हैं)
Edited by : Vrijendra Singh Jhala
 

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