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डोनाल्ड ट्रंप ने किया समझौते का विरोध, कहा इससे भारत-चीन को फायदा

हमें फॉलो करें डोनाल्ड ट्रंप ने किया समझौते का विरोध, कहा इससे भारत-चीन को फायदा
, शुक्रवार, 2 जून 2017 (17:07 IST)
पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को पीछे हटाने के ट्रंप के फैसले के विरोध में कई देश सामने आ गए हैं। फ्रांस, जर्मनी और इटनी ने संयुक्त बयान जारी कर कहा कि पेरिस जलवायु समझौते पर फिर से बातचीत नहीं की जा सकती। वहीं नीदरलैंड ने इसे अमेरिका के लिए ऐतिहासिक भूल बताया है। कनाडाई  प्रधानमंत्री ने ट्रंप से बात कर फैसले पर निराशा जताई है।
 
समझौते की पृष्ठभूमि और आधार 
दिसंबर 2015 में वैश्विक पर्यावरण को सुरक्षित बनाए रखने के लिए पेरिस में एक विस्तृत समझौते का समर्थन किया गया था। दिसंबर 2015 में ही कई दिनों की गहन बातचीत के बाद पेरिस जलवायु समझौते की नींव रखी गई थी। 195 देश इसके लिए राजी हो चुके हैं और भारत ने 2016 में इसके लिए हामी भरी थी। भारत से पहले 61 देश इस समझौते के लिए राजी हो चुके थे जो कि करीब 48 प्रतिशत कार्बन का उत्सर्जन करते हैं। लेकिन इस पर देश आगे बढ़ें, अमेरिका ने घोषणा कर दी है कि वे ऐसे समझौते से बाहर हो जाएंगे।
 
समझौते का लक्ष्य
पेरिस जलवायु समझौते में इस बात के लिए लक्ष्य तय किए गया थे कि सभी 195 देशों का कहना था कि इस समझौते के अंतर्गत इस शताब्दी के अंत तक वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने की हर संभव कोशिश की जाएगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि 2 डिग्री से ऊपर जाने पर समुद्र का स्तर बढ़ने लगेगा। मौसम में भयंकर बदलाव देखने को मिलेगा और पानी और खाने की किल्लत भी पड़ सकती है। हालांकि, उन लोगों की भी कमी नहीं है जो कहते हैं कि दो डिग्री के लक्ष्य से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।
 
दो डिग्री के लक्ष्य को तय करके कहा गया कि इस स्थिति तक जल्द से जल्द पहुंचने के लिए इस तक पहुंचने का कोई साफ रास्ता नहीं तय किया गया। यह पता ही नहीं था कि सदस्य देशों को इसके लिए करना क्या होगा? अगर यूएस की बात करें तो उसे 2025 तक कार्बन उत्सर्जन को 26 से 28 प्रतिशत तक कम करना होगा। ट्रंप की ताजा पॉलिसी में ऐसा होना असंभव माना जाता है। तय हुआ है कि 2020 में सभी देश बताएंगे कि उन्होंने अब तक क्या-क्या कदम उठाएं हैं? इसको तोड़ने पर क्या सजा मिलेगी यह भी साफ नहीं है।
 
विकासशील देशों की मदद
ऐसा कहा जाता है कि अमीर देश ज्यादा ईंधन का उत्सर्जन करके अमीर बने हैं और अब समझौते के जरिए पिछड़े देशों को ऐसे ईंधन का उपयोग करने से रोका जा रहा है। इससे कई देशों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे में अमेरिका जैसे अमीर देशों को कहा गया कि वह 2020 तक पिछड़े देशों की मदद के लिए वे हर साल 100 बिलियन डॉलर भेजते रहें। साथ ही यह रकम वक्त के हिसाब से बढ़ाई भी जा सकती है। हालांकि, यह भी एक सुझाव के तौर पर है ऐसा करना जरूर नहीं है।
 
लेकिन इससे पहले कि इस समझौते से मिले परिणामों को लेकर कोई निष्कर्ष निकाला जाता अमेरिकी राष्ट्रपति ने पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को अलग कर लिया। ट्रंप ने यूएस को पेरिस समझौते से अलग करते हुए कहा, ‘हमारे नागरिकों के संरक्षण के अपने गंभीर कर्तव्यों को पूरा करने के लिए अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते से हट जाएगा…हम उससे हट रहे हैं और फिर से बातचीत शुरू करेंगे।’ ट्रंप ने कहा कि वह चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन को लेकर पेरिस समझौते में अमेरिकी हितों के लिए एक उचित समझौता हो।
 
पेरिस जलवायु समझौता पर ट्रंप का कहना है कि इस डील से बस भारत-चीन का फायदा होगा और अमेरिका प्रभावित होगा। इसलिए एशिया के विकासशील देशों की खातिर अमेरिकी हितों को दांव पर नहीं लगाया जा सकता है। इस कारण से उनका देश अलग हो रहा है। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को न केवल पेरिस जलवायु समझौते से अलग कर लिया, वरन इस तरह ग्लोबल वॉर्मिंग से मुकाबले में अंतरराष्ट्रीय प्रयासों से भी अमेरिका अलग हो गया।
 
ट्रंप का कहना था कि वह चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन को लेकर पेरिस समझौते में अमेरिकी हितों के लिए एक उचित समझौता हो। ट्रंप ने यह भी दावा किया कि वर्तमान समझौते से केवल भारत और चीन के हितों को फायदा होता है। ट्रंप ने ग्रीन हाउस गैसों के पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने की घोषणा करते हुए कहा कि इस समझौते में भारत और चीन जैसे देशों को अनुचित लाभ मिला है।  
 
ट्रंप के इस फैसले की अंतरराष्ट्रीय नेताओं, कारोबारी समूहों और कार्यकर्ताओं ने तीखी आलोचना की है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने यह फैसला इसलिए लिया क्योंकि यह समझौता अमेरिका के लिए अनुचित है और इससे कारोबार तथा रोजगार पर बुरा असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि भारत को पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी करने के लिए अरबों डॉलर मिलेंगे। चीन के साथ वह आने वाले कुछ वर्षों में कोयले से संचालित बिजली संयंत्रों को दोगुना कर लेगा और अमेरिका पर वित्तीय बढ़त हासिल कर लेगा। 
 
पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने से अमेरिका दो देशों सीरिया और निकारागुआ की श्रेणी में शामिल हो गया है जिन्होंने 195 देशों की सहमति वाले इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए। ट्रंप के एलान के कुछ ही देर बाद फ्रांस, जर्मनी और इटली की ओर से एक संयुक्त बयान आया जिसमें कहा गया कि पेरिस जलवायु समझौते 'अपरिवर्तनीय' है और इस पर दोबारा चर्चा नहीं होगी। करीब 200 देशों के साथ 2015 में पेरिस में पर्यावरण संरक्षण को लेकर बेहद अहम समझौता हुआ था। भारत, चीन, कनाडा और यूरोपीय संघ ने पेरिस समझौते के तहत किए गए वादे पर टिके रहने की बात कही है।
 
इस परिवर्तन से नाराज अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते से अमेरिका को अलग करने के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले की निंदा की है। उन्होंने ट्रंप की आलोचना करते हुए आगाह किया कि समझौते का पालन न कर अमेरिका भविष्य की पीढ़ियों के भविष्य को खारिज करेगा। वहीं यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष ज्यां क्लॉड जंकेर ने ट्रंप के कदम को एक ‘गंभीर गलत फैसला’ करार दिया है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कदम नहीं उठाना नैतिक अपराध होगा। 
 
ट्रम्प ने व्हाइट हाउस रोज गार्डन से दिए अपने संबोधन में घोषणा की कि अमेरिका 195 देशों के खराब समझौते का क्रियान्वयन तत्काल रोकेगा। उन्होंने कहा, मेरी समझ में मैं ऐसे समझौते का समर्थन नहीं कर सकता जो अमेरिका को सजा देता है। यह समझौता हमारे देश पर भारी वित्तीय एवं आर्थिक बोझ पैदा करता है।
 
ट्रंप ने इस समझौते को ऐसा संधि पत्र करार दिया जो अमेरिका को पहले नहीं रखता और आर्थिक प्रतिद्वंद्वियों भारत, चीन एवं यूरोप के लिए लाभकारी है। उन्होंने कहा, मुझे पिट्सबर्ग का प्रतिनिधित्व करने के लिए निर्वाचित किया गया है ना कि पेरिस का, मैं नहीं चाहता कि अन्य नेता और अन्य देश अब हम पर और हँसे। अब वे ऐसा नहीं कर पाएंगे। 
 
उल्लेखनीय है कि ट्रंप ने यह नहीं बताया कि इस समझौते से अमेरिका के अलग होने की प्रक्रिया औपचारिक रूप से कब और कैसे शुरू होगी? उन्होंने एक समय यह संकेत दिया कि फिर से वार्ता हो सकती है। ट्रंप ने कहा, हम इससे बाहर हो रहे हैं लेकिन फिर से बातचीत शुरू करेंगे और हम देखेंगे कि क्या हम एक ऐसा समझौता कर सकते हैं जो उचित हो? अगर हम कर सकें तो यह अच्छा होगा और अगर नहीं कर सके तो भी कोई बात नहीं। 
 
ट्रंप के इस विचार को यूरोप के उसके गुस्साए सहयोगियों समेत कई देशों ने खारिज कर दिया। फ्रांस, जर्मनी और इटली ने एक संयुक्त बयान में कहा, 'समझौते पर फिर से वार्ता नहीं हो सकती। अमेरिका, चीन के बाद ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाला विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। इसलिए ट्रंप के इस फैसले से उत्सर्जन कम करने एवं वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के प्रयासों पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
 
इस फैसले के बारे में बात करने के लिए ट्रंप ने जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल, फ्रांस के राष्ट्रपति एमैन्युएल मैक्रोन और ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा मे एवं कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन त्रुदो को फोन किया। लेकिन अमेरिका के परंपरागत सहयोगियों ने ट्रंप के फैसले की अप्रत्याशित तरीके से ऐसे समय में निंदा की जब नए राष्ट्रपति के चयन के बाद से इन संबंधों में पहले ही तनाव पैदा हो गया है।

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