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विक्रमसिंघे ने श्रीलंका के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली

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, रविवार, 16 दिसंबर 2018 (12:53 IST)
कोलंबो। यूनाइटेड नेशनल पार्टी के नेता रानिल विक्रमसिंघे ने रविवार को श्रीलंका के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इसके साथ ही देश में 51 दिनों से चल रहा सत्ता संघर्ष समाप्त हो गया। राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने यहां राष्ट्रपति सचिवालय में एक सादे समारोह में 69 वर्षीय विक्रमसिंघे को पद की शपथ दिलाई।
 
सिरिसेना ने विवादास्पद कदम उठाते हुए 26 अक्टूबर को विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया था और उनके स्थान पर महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था जिससे इस द्वीपीय देश में संवैधानिक संकट पैदा हो गया था। यूएनपी नेता ने अपनी बर्खास्तगी को गैरकानूनी बताते हुए पद छोड़ने से इंकार कर दिया था।
 
उनकी यह नियुक्ति तब हुई है, जब महिंदा राजपक्षे ने शनिवार को इस्तीफा दे दिया जिससे विक्रमसिंघे के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया। सिरिसेना ने विक्रमसिंघे को हटाकर राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनाया था। राजपक्षे ने उच्चतम न्यायालय के 2 अहम फैसलों के बाद शनिवार को इस्तीफा दे दिया था।
 
पद ग्रहण करने के बाद विक्रमसिंघे ने कहा कि आज (रविवार) की जीत न केवल मेरी जीत या यूएनपी की जीत है बल्कि यह श्रीलंका के लोकतांत्रिक संस्थानों और नागरिकों की स्वायत्तता की जीत है। मैं उन सभी लोगों को धन्यवाद देता हूं, जो संविधान की रक्षा में दृढ़ता के साथ खड़े रहे और लोकतंत्र की जीत सुनिश्चित की। विक्रमसिंघे को फिर से नियुक्त करने से इंकार करने वाले सिरिसेना उन्हें नियुक्ति पत्र सौंपते हुए मुस्कुरा रहे थे।
 
विक्रमसिंघे के रिकॉर्ड 5वीं बार शपथ ग्रहण करने के बाद उनके समर्थकों ने सड़कों पर जश्न मनाया। यूएनपी के सहायक नेता रवि करुणानायके ने कहा कि कैबिनेट चयन के लिए शनिवार को वार्ता हुई और रविवार को और विचार-विमर्श होगा। कैबिनेट सदस्यों के 30 तक सीमित होने की उम्मीद है और उसमें श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) के कुछ सदस्य शामिल किए जा सकते हैं जिन्होंने विक्रमसिंघे को समर्थन की पेशकश की थी।
 
इससे पहले विक्रमसिंघे की पार्टी ने कहा कि वह राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के साथ काम करने के लिए तैयार है जिन्हें उनकी सरकार के खिलाफ कुछ समूहों ने गुमराह किया था। यूएनपी के उपनेता सजित प्रेमदास ने कहा कि उन्हें इस बात की हैरानी नहीं है कि राष्ट्रपति विक्रमसिंघे को फिर से प्रधानमंत्री बनाने पर राजी हो गए जबकि पहले वे इस बात अड़े थे कि वह उन्हें नियुक्त नहीं करेंगे।
 
'कोलंबो गजट' ने प्रेमदास के हवाले से कहा कि यह राष्ट्रपति के असली चरित्र को दिखाता है। प्रेमदास ने कहा कि यूनिटी सरकार के विरोधी कुछ समूहों ने राष्ट्रपति को गुमराह किया था और इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रपति ने विक्रमसिंघे को हटा दिया था, लेकिन अब सच सामने आ गया है। पार्टी सरकार में सिरिसेना के साथ दोबारा काम करने के लिए तैयार है।
 
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री के तौर पर राजपक्षे की नियुक्ति के बाद उन्हें 225 सदस्यीय संसद में बहुमत हासिल करना था लेकिन वे विफल रहे। इसके बाद सिरिसेना ने संसद भंग कर दी और 5 जनवरी को चुनाव कराने की घोषणा की।
 
हालांकि उच्चतम न्यायालय ने उनका फैसला पलट दिया और चुनाव की तैयारियों को रोक दिया। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को सर्वसम्मति से फैसला दिया कि सिरिसेना द्वारा संसद भंग करना गैरकानूनी था, साथ ही न्यायालय ने शुक्रवार को राजपक्षे (73) को प्रधानमंत्री का कार्यभार संभालने से रोकने वाले अदालत के आदेश पर रोक लगाने से भी इंकार कर दिया था। ज्यादातर देशों ने राजपक्षे सरकार को मान्यता नहीं दी थी। (भाषा)

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