रिलेशनशिप को लेकर पूरी दुनिया में अब नए-नए कॉन्सेप्ट आने लगे हैं। लीव-इन में रहना, अपनी मर्जी से पार्टनर चुनना और बगैर शादी किए बच्चे पैदा करना। इन सारे मुद्दों पर दुनिया के नौजवान अब नए सिरे से सोच रहे हैं। यानी रिश्तों को लेकर लोगों में खुलापन आ रहा है, लेकिन इंडोनेशिया जैसे देश में ऐसा नहीं है। बल्की इस तरह खुलेपन पर सजा भी मिल सकती है।
इंडोनेशिया में एक ऐसा ही मामला सामने आया है। जिसमें शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने पर एक कपल को सजा दी गई। वो भी सरेआम।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इंडोनेशिया के आचे प्रांत में बेसार जिले में स्थित एक मस्जिद के बाहर इस जोड़े को कोड़े मारे गए। दोनों को सार्वजनिक रूप से 100-100 कोड़े मारे गए। इस सजा में इस्लामी कानून का हवाला दिया गया।
उनका गुनाह सिर्फ इतनाभर था कि उन्होंने अपनी शादी के पहले शारीरिक संबंध बनाए थे। दोनों को एक मस्जिद के सामने बैठाकर यह सजा दी गई। कोड़े मारे जाने के दौरान लड़का दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाया और बेहोश हो गया। जिसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया है।
इस तरह की सजा आमतौर पर कई लोगों के सामने दी जाती है जिससे दूसरे लोगों को भी सबक मिले, ऐसे में सजा के दौरान लोगों को बुलाया जाता है लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते कम ही लोग इस घटना को देखने के लिए पहुंचे। स्थानीय लोगों ने मीडिया को बताया कि ऐसे मामले वहां आम है इसलिए कोई खास दिलचस्पी नहीं है देखने में। इसके साथ ही संक्रमण की वजह से भी लोग नहीं आए।
उल्लेखनीय है कि इंडोनेशिया के आचे प्रांत में इस्लामी कानून शरिया लागू है। जिसके तहत शादी से पहले संबंध करना दंडनीय अपराध है। स्थानीय अधिकारियों ने बताया कि सजा से पहले इस जोड़े के शरीर के तापमान को चेक किया गया और बकायदा मास्क पहनाकर कोड़े लगाए गए।
बेसार जिला कोर्ट के सरकारी अभियोजक कार्यालय में सामान्य अपराध प्रभाग के प्रमुख अगुस केलाना पुत्रा ने मीडिया को इस बारे में बताया कि इस युवा जोड़े ने इस्लामी कानून का उल्लंघन किया था इसलिए इन्हें 100-100 कोड़े लगाए गए हैं। इसके अलावा एक और आदमी को होटल में एक लड़की के साथ पकड़े जाने के बाद 40 कोड़े लगाए गए। हालांकि लड़की को कम उम्र के कारण छोड़ दिया गया।
किन नियमों के उल्लंघन पर सजा
आचे प्रांत में इस्लामिक कानून के अनुसार, शराब पीने, संबंध, होमो होने और जुआ खेलने के दोषी को कोड़े मारने की सजा दी जाती है। इस कानून को इंडोनेशियाई सरकार ने 2005 में लागू किया था। हालांकि मानवाधिकार संस्थाओ ने इस कानून का शुरू से ही विरोध करते हुए अमानवीय करार दिया है। लेकिन अब तक इस कानून में कोई बदलाव नहीं आया है।