लॉक डाउन के दौरान सोशल मीडिया पर ही पूरा घर-बंद देश उमड़ पड़ा... क्योंकि बाकि बचे हुए तो जीने मरने, अपने देश-गांव की मिटटी में लौटने की, जान की परवाह किए बिना, भूखे-प्यासे अपने परिवारों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। देश इन्हीं दो वर्गों में बंट गया। साथ ही एक वो हिस्सा जो संक्रमित हो चुका है कोरोना से, उसकी अपनी एक अलग दुनिया है।
आज सर्वशक्तिमान कौन है? जो बनाता है, बिगाड़ता है, जोड़ता है, तोड़ता है, मिलाता है, बिछुड़ाता है, दोस्त और दुश्मन भी बना देता है। आपकी जिंदगी में कई मनमानियां भी ये पूरी करता है। अलादीन का चिराग है। सारे सपने घर बैठे ही पूरे कर सकता है। और तो और सरकारें बना देता है, सरकारें गिरा देता है।ये वो बला है जो न कराए वो थोड़ा है।रातों रात स्टार बना दे, क्षण भर में मुंह काला करा दे। नाम बना दे-बदनाम कर दे...अब भी याद आया कि नहीं????
अरे भाई वही सरल सा तो जवाब है- सोशल मीडिया।
कोरोना ग्रासितों की दुनिया भी इससे आबाद है, उनका भी यही सोशल मीडिया सहारा बना हुआ है। यदि उनके पास इसकी सुविधा है तो।
अनहोनी को होनी कर दे, होनी को अनहोनी ऐसी शक्ति से संपन्न, दिल की गिरह खोल दो, चुप न बैठो मतलब पूरी भड़ास निकालने का साधन, ये सोशल मीडिया का जादू है मितवा जिसमें अपने प्यारे हबी, शोना, बाबू, बेबी, से, जो दिल ना कह सका वो भी इसी पर ढेर सारे किस्सी/पप्पी, दिलों के और भी उपलब्ध इमोजिस के साथ इठलाते बलखाते फोटो, विडिओ, रोमांटिक गानों के साथ दिली तमन्ना पूरी करने का श्रेष्ठ माध्यम बना हुआ है ये आपकी मुट्ठी में भींचा हुआ यंत्र। तो बस अब खाली, चौबीसों घंटे घर में बैठा इंसान क्या करे ?
अब रोज परिवार कोरोना उत्सव मनाने लगे। पकवान/ व्यंजन बनने लगे। उनकी बाकायदा थाली/प्लेटें सजाई जातीं और पोस्ट की जातीं। महिलाएं सुंदर-सुंदर कपड़े पहनतीं तैयार होतीं, साड़ी चेलेंज निभातीं। त्यौहारों पर, जन्मदिन-शादी की सालगिरह पर घरों में ही कार्यक्रम/पार्टियां होतीं। जो उपलब्ध होता उसी में आनंद लेते और आज भी ले ही रहे हैं।
अब इन सभी गतिविधियों ने आनंद तो दिया पर इसका फिर एक वर्ग ने घोर विरोध किया।। इनका कहना था कि देश ऐसी आपदा से घिरा हुआ है, लोग भूखे मर रहे, हैं और इन्हें ऐसी भरी हुई व्यंजनों की थाली पोस्ट करते लज्जा नहीं आ रही … और भर्त्सना कर-कर के ऊधम मचा दी। एक गुट तैयार हुआ शुरू हुई टांग खिंचाई।
देश गया...राष्ट्र-भक्ति गई बस उसने पोस्ट डाली का युद्ध बिगुल बज गया। कमेन्ट बॉक्स भर गए, लाइक और इमोजी की बाढ़ आ गई। कोसने-दुलराने का, पक्ष-विपक्ष, कटाक्ष-व्यंग का घमासान हो चला। आह-वाह और कराह हो गई भाई।।।
अब कुछ ने दूर दराज लोगों बसे अपने परिजनों में गीत-गजल, नृत्य-मनोरंजन और भी कुछ खेलों के ताजातरीन तरीके आजमाए। अपनी उपलब्धियां, सृजन-कार्य, सेवा- सहयोग कार्य सभी का विवरण फिर से उसमें पोस्ट किया। पुनः दो वर्गों में सोशलिये बंटे और फिर से कुश्ती शुरू। ज्ञान-गंगा बहना शुरू।
ऐसे समय ये शोभा देता है ? विपत्ति काल है। जरा तो शर्म करें। यहां हम पुरुषों का मुद्दा छोड़ देते हैं।
केवल महिलाओं की बात करते हैं। इन हरकतों ने कईयों के बीच झगडे करवा दिए, दूसरों की वाल पर जा कर रोईं। एक दूसरे की बुराई की, भरपूर कोसा, उसको नीच, खुद को महान बताया। स्क्रीन शॉट ब्रह्मास्त्र की तरह चले। रिश्ते बिगड़े, इज्जत उतरी, पंगे हुए। इन सबमें केवल और केवल आपकी छवि बिगड़ी, बिना कारण तनाव हुआ, समय बिगड़ा, संबंध खराब हुए सो अलग।
सबसे पहले यह समझिए की ये एक छद्म दुनिया है। इससे कोई पुरस्कार नहीं मिलने वाला। पर आश्चर्य यह है कि यही विरोधी गुट खुद की किसी भी आत्मप्रशंसा का कोई मौका नहीं छोड़ रहा। खुद मियां मिट्ठू बने कोई बात नहीं, पर किसी दूसरे ने यदि कर दिया तो वो देश-द्रोही हो गया।
इस माया नगरी का यही जाल है। जो इसमें उलझता है उसे ये नगरी अपनी मिल्कियत लगने लगती है। यहां की दुनिया ने कई रिश्ते बना दिए, कई उजाड़ दिए। जानिए तो इसकी शुरुवात हुई कैसे ?
कहा जाता है सृष्टि का सारा ज्ञान शिव पार्वती के संवादों की वजह से उत्पन्न व प्रसारित हुआ है। अधिकांश ग्रंथों में इस बात का उल्लेख भी इस श्लोक में मिलता है कि कैलाश शिखरे रम्ये गौरी प्रच्छति शंकरम्।- गौरी प्रश्न पूछती हैं और महादेव उसका जवाब देते हैं। केवल उन दोनों के बीच हुआ संवाद उस समय के मीडिया अर्थात शिव के गणों के माध्यम से या सिद्ध ऋषियों की दिव्य दृष्टियों के माध्यम से संसार में फैलता है। तत्पश्चात प्राचीन काल में ऋषियों व गुरुकुलों के आचार्यों की स्मृति शक्ति ही सोशल मीडिया के रूप में काम करती थी।
हजारों ग्रन्थ और उनके करोड़ों श्लोक ऋषियों ने गुरुकुलों में बैठ कर अपनी स्मृति से ही बोल बोल कर शिष्यों को याद करवाए। कहा जाता है की सर्व प्रथम रामायण महादेव ने लिखी थी जिसमें सौ करोड़ श्लोक थे। राम रक्षा स्त्रोत में चरितं रघुनाथस्य शत कोटि प्रविस्तरं के रूप में इसका उल्लेख मिलता है। स्वाभाविक है इतने बड़े बड़े ग्रन्थ जब स्मृति से अगली पीढ़ी तक पहुंचते होंगे तो उसमें कुछ बातें घट या बढ़ जाया करतीं होंगी। कहा जाता है कि महाभारत का मूल नाम “जय” था और इसमें आठ हजार श्लोक थे। जो अब बढ़ते बढ़ते एक लाख हो गए।
इसी प्रकार वाल्मिकी रामायण के बारे में भी कुछ विद्वान् मानते हैं की वाल्मिकी ने श्री राम के राज तिलक के बाद का वर्णन नहीं किया है। जो वर्णन मिलता है वह किसी अन्य के द्वारा जोड़ा गया है।अर्थात उस समय भी सोशल मीडिया या कथाओं के मध्य से मूल प्रसंग, लेखकों के नाम में परिवर्तन कर दिए जाते थे। मजे की बात यह है कि इस प्रकार की गड़बड़ियों की जानकारी उस समय के विद्वानों को भी थी।
इसीलिए देव पूजन के बाद क्षमा प्रार्थना में आज भी कहा जाता है कि “ हे प्रभु यदि अज्ञान या विस्मृति या भ्रान्ति के कारण मैंने कुछ कम या अधिक कहा हो या कोई अक्षर मात्रा या स्वर अशुद्ध हो गया हो तो उसे क्षमा करो। अर्थात उस समय सूचना का उद्गम सदैव शुद्ध और प्रामाणिक माना जाता था। पर बाद में विकृति की संभावनाओं को स्वीकार कर लिया गया था। उस समय संस्कृति में विकृति का भय था। आज विकृति को और विकृत कर के हम संस्कृति सुधारने का प्रयास कर रहे हैं।
सूचना देते समय पासवर्ड या कोडवर्ड पहले भी चलते थे। जब अशोक वाटिका में माता जानकी को पवन पुत्र पर विश्वास नहीं हो रहा था तो उन्होंने राम दूत मैं मात जानकी ,सत्य शपथ करुणा निधान की इस वाक्य का प्रयोग किया था।इसमें करुणा निधान शब्द पूरी राम चरित मानस में बहुत सीमित स्थानों पर आया है। और वे स्थान केवल राम और सीता के नितांत व्यक्तिगत संवादों के समय के हैं। अर्थात् उस समय करुणा निधान शब्द पासवर्ड के रूप में प्रयोग किया गया था।
अब यही सब यहां भी है। सत्यता की परख और गलती की माफ़ी। पर हमारे बीच यही गायब हो चूका है। महिलाओं पर इसका गहरा असर हुआ है। ऐसा ही एक और पसंद किया जाने वाला सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म है वाट्स अप। व्यक्तिगत और समूहों में चलाये जाने वाला। इसमें भी खूब विवाद, कहा सुनी, तानाकशी चलती है। परिवार के ग्रुप तक में सदस्यों के ग्रुप बन जाते हैं।
शुभकामनाएं, बधाई तक के शब्दों का हिसाब-किताब होता है। किसी की प्रसिद्धि नागवार गुजरी तो मौन धर लो, किसी पर आशीर्वादों और तारीफों की बाढ़ ला दो। इनमे भी कुछ खास लोग सक्रिय होते हैं। खुद तो दूसरों की तारीफ़ करते नहीं खुद के लिए पलकें बिछाए बैठते हैं और इज्जत का प्रश्न बना लेते हैं। यही हाल उनका फेसबुक पर भी होता है। परिचित व परिवार जन बहिष्कार करते हैं, ये उनकी जलन निकालने का सर्वोत्तम मार्ग होता है। इसलिए आप बाकी से भी उम्मीद न रखें।
असल में इस सोशल मीडिया से आप केवल जरुरी जानकारी लेने-देने जितना संबंध रखें। इसका अर्थ ही सामाजिकता से जुड़ाव है न कि व्यक्तिगत। जैसे हाईटेंशन इलेक्ट्रिक लाईन घर के आगे से जा रही है तो क्या उसको आप पकड़ के देखेंगे कि करंट है या नहीं ? या बिजली से बचने के लिए एहतियात बरतेंगे ? इसमें एक अर्थिंग लाईन भी बाकी सावधानी के साथ देनी होती है।
राजनैतिक पोस्ट से बचने में ही भलाई होती है। इसकी कुर्सी के पाये साम, दाम, दण्ड, भेद होते हैं। हम “पबलिक{पब्लिक}” है जो कई बार कुछ नहीं जानती।
तो मित्रों इन सब मूर्खताओं से पीछा छुडाओ। सोशल मीडिया की ये टुच्ची हरकतें वास्तविक आनंद और असल मित्रों से आपको दूर करतीं हैं। अव्वल तो जो आपके साथ जीवित, साक्षात, परिजन हैं उनके साथ सुख भोगें। किसने आपको इन पर विश किया, लाईक किया, कमेन्ट किया छोड़ें। इनके चक्कर में आप उन्हें भी खो रहे हैं जो आपके अपने हैं, आपके प्यार को, आपको प्यार करने को तरस रहे हैं और आपकी ऊंगलियां इस निर्जीव मशीन को सहला रही है। इसी मशीन में छोटों ने जान दे रखी है…। और बड़ों की जान ले रखी है।आप समझें ये केवल रिश्तों को बनाने का साधन है साधक नहीं। इसके केवल फायदों के लिए इस्तेमाल में ही समझदारी है। वर्ना घर-समाज की बर्बादी है… केवल बर्बादी....