धरती पर लौटे सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर, अब क्या है चुनौतियां?
नासा की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर तथा रूसी अंतरिक्ष यात्री अलेक्सांद्र गोरबुनोव बुधवार को स्पेसएक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान से पृथ्वी पर लौट आए।
Sunita Williams Returns : नासा की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर तथा रूसी अंतरिक्ष यात्री अलेक्सांद्र गोरबुनोव बुधवार को स्पेसएक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान से पृथ्वी पर लौट आए। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के अंदर अंतरिक्ष यात्रियों को हवा में तैरते देखना भले ही मजेदार लगता हो, लेकिन वहां गुरुत्वाकर्षण नहीं होने का असर धरती पर लौटने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों पर लंबे समय तक रहता है और उन्हें मतली, चक्कर आने, बात करने और चलने में दिक्कत जैसी चुनौतियों से जूझना पड़ता है।
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विल्मोर और विलियम्स बोइंग के नए स्टारलाइनर यान से पिछले साल 5 जून को केप कैनवेरल से रवाना हुए थे। वे दोनों 8 दिन के मिशन के लिए ही गए थे, लेकिन अंतरिक्ष यान से हीलियम के रिसाव और वेग में कमी के कारण ये लगभग नौ माह से अंतरिक्ष स्टेशन में फंसे हुए थे।
विभिन्न अंतरिक्ष मिशन के तहत यात्रा कर चुके कई अंतरिक्ष यात्रियों ने पृथ्वी पर लौटने के बाद चलने में कठिनाई, देखने में दिक्कत, चक्कर आने तथा बेबी फीट नामक स्थिति जैसी चुनौतियों का सामना करने की बात कही है। बेबी फीट का तात्पर्य है कि अंतरिक्ष यात्रियों के तलवों की त्वचा का मोटा हिस्सा निकल जाता है और उनके तलवे बच्चे की तरह मुलायम हो जाते हैं।
ह्यूस्टन स्थित बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन ने अंतरिक्ष में शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में कहा कि जब अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर वापस लौटते हैं तो उन्हें पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार तुरंत फिर से ढलना पड़ता है। उन्हें खड़े होने, अपनी दृष्टि को स्थिर करने, चलने और मुड़ने में समस्या हो सकती है। पृथ्वी पर लौटने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को उनकी बेहतरी के लिए पृथ्वी पर लौटने के तुरंत बाद अक्सर एक कुर्सी पर बिठाया जाता है। अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर जीवन के अनुसार स्वयं को फिर से ढालने में कई सप्ताह लगते हैं।
जापानी अंतरिक्ष एजेंसी जेएएक्सए ने कहा कि अंतरिक्ष में कम गुरुत्वाकर्षण के कारण वेस्टिबुलर अंगों से प्राप्त होने वाली जानकारी में बदलाव आता है। ऐसा माना जाता है कि इससे मस्तिष्क भ्रमित हो जाता है और स्पेस सिकनेस (अंतरिक्ष में यात्रा करने वाले कई लोगों को होने वाली स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत) हो जाती है। जब आप पृथ्वी पर वापस आते हैं, तो आप पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभावों का फिर से अनुभव करते हैं और इस प्रकार कभी-कभी ग्रैविटी सिकनेस हो जाती है, जिसके लक्षण स्पेस सिकनेस जैसे ही होते हैं।
पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण रक्त और अन्य शारीरिक तरल पदार्थों को शरीर के निचले हिस्से की ओर खींचता है, लेकिन अंतरिक्ष में भारहीनता के कारण अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर में ये तरल पदार्थ शरीर के ऊपरी हिस्सों में जमा हो जाते हैं और इसी कारण वे फूले हुए नजर आते हैं।
जेएएक्सए ने कहा कि पृथ्वी पर लौटने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को खड़े होने पर अक्सर चक्कर आते हैं। इस स्थिति को ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन कहा जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण अंतरिक्ष की तुलना में अधिक मजबूत होता है और हृदय से सिर तक रक्त पहुंचना अधिक कठिन होता है।
गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण हड्डियों के घनत्व में काफी और अक्सर अपूरणीय कमी आती है। नासा के अनुसार, अगर अंतरिक्ष यात्री इस कमी को दूर करने के लिए सावधानी नहीं बरतते हैं, तो वजन सहन करने वाली हड्डियों का घनत्व अंतरिक्ष में हर महीने करीब एक प्रतिशत कम हो जाता है। इस समस्या से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक सख्त व्यायाम व्यवस्था है।
नासा ने कहा कि अंतरिक्ष यात्रियों को शून्य गुरुत्वाकर्षण के कारण हड्डियों और मांसपेशियों को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए ट्रेडमिल या स्थिर साइकिल का उपयोग करके प्रतिदिन दो घंटे व्यायाम करना आवश्यक है। यह व्यायाम नहीं करने पर अंतरिक्ष यात्री महीनों तक अंतरिक्ष में तैरने के बाद पृथ्वी पर लौटने के बाद चलने या खड़े होने में असमर्थ रहेंगे।
कनाडाई अंतरिक्ष यात्री क्रिस हैडफील्ड ने बताया कि उन्हें अंतरिक्ष में जीभ के भारहीन होने के कारण 2013 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से लौटते पर बात करते समय दिक्कत हुई। हैडफील्ड ने कहा कि पृथ्वी पर लौटने के तुरंत बाद मैं अपने होठों और जीभ का वजन महसूस कर सकता था और मुझे अपनी बातचीत का तरीका बदलना पड़ा। मुझे एहसास ही नहीं हुआ था कि मुझे भारहीन जीभ से बात करने की आदत हो गई थी। रोग प्रतिरोधी क्षमता कमजोर हो जाने के कारण पृथ्वी पर लौटने पर अंतरिक्ष यात्रियों को संक्रमण और बीमारी का खतरा भी अधिक रहता है। (भाषा)
edited by : Nrapendra Gupta