वाशिंगटन। अमेरिका में एक संघीय जिला अदालत के न्यायाधीश ने मंगलवार को कहा कि ट्रंप प्रशासन 6जुलाई के अपने आदेश को रद्द करने के लिए राजी हो गया है जिसमें उन अंतरराष्ट्रीय छात्रों के देश में रहने पर अस्थायी रोक लगाई गई थी, जो कॉलेज या विश्वविद्यालय जाकर पढ़ाई नहीं कर रहे हैं।
इस आदेश के खिलाफ देशभर में आक्रोश और बड़ी संख्या में शैक्षणिक संस्थानों द्वारा मुकदमा दायर किए जाने के बाद ट्रंप प्रशासन ने यह आदेश पलट दिया है।
प्रतिष्ठित हार्वर्ड विश्वविद्यालय और मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) समेत कई शैक्षणिक संस्थानों ने होमलैंड सुरक्षा विभाग (डीएचएस) और अमेरिकी आव्रजन एवं सीमा शुल्क प्रवर्तन (आईसीई) को उस आदेश को लागू करने से रोकने का अनुरोध किया, जिसमें केवल ऑनलाइन कक्षाएं ले रहे अंतरराष्ट्रीय छात्रों के देश में रहने पर रोक लगाने की बात की गई थी।
17 राज्यों के साथ ही प्रमुख आईटी कंपनियों ने भी बनाया दबाव : मैसाच्युसेट्स में अमेरिकी संघीय अदालत में इस मुकदमे के समर्थन में 17 राज्य और डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया के साथ ही गूगल, फेसबुक और माइक्रोसॉफ्ट जैसी शीर्ष अमेरिकी आईटी कंपनियां भी आ गई।
बोस्टन में संघीय जिला न्यायाधीश एलिसन बरॉघ ने कहा, 'मुझे पक्षकारों ने सूचित किया है कि उन्होंने एक फैसला किया है। वे यथास्थिति बहाल करेंगे।'
10 लाख से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय छात्रों को राहत: यह घोषणा अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए राहत लेकर आई है, जिनमें भारत के छात्र भी शामिल हैं। अकादमिक वर्ष 2018-19 में अमेरिका में 10 लाख से अधिक अंतरराष्ट्रीय छात्र रह रहे थे। स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम (एसईवीपी) के अनुसार जनवरी में अमेरिका के विभिन्न अकादमिक संस्थानों में 1,94,556 भारतीय छात्र पंजीकृत थे।
न्यायाधीश बरॉघ ने कहा कि यह नीति देशभर में लागू होगी। सांसद ब्रैड स्नीडर ने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय छात्रों और कॉलेजों के लिए बड़ी जीत है।
कई सांसदों ने गत सप्ताह ट्रंप प्रशासन को पत्र लिख कर अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर अपने आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया था। (भाषा)