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किसने उड़ाई यूरोपीय गैस पाइपलाइन, क्यों है यूक्रेन के लिए किरकिरी का कारण?

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राम यादव

जर्मनी की प्राकृतिक गैस की निरंतर बढ़ती हुई भूख तृप्त करने के लिए, बाल्टिक सागर के नीचे, रूस से लेकर जर्मनी तक दो दोहरी गैस पाइपलाइनें बिछाई गई हैं। पहली पाइपलाइन नॉर्ड स्ट्रीम1, एक दशक से कार्यरत थी। दूसरी, नॉर्ड स्ट्रीम2 बनकर तैयार थी, लेकिन उसके कार्यरत होने से पहले ही दोनों पाइपलाइनें यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की छाया में तोड़फोड़ की शिकार बन गईं। संदेह बढ़ते दिख रहे हैं कि उन्हें क्षति पहुंचाने वाले यूक्रेनी लोग थे।
 
उत्तरी यूरोप के बाल्टिक सागर के नीचे 70 से 80 मिटर की गहराई पर बिछाई गई नॉर्ड स्ट्रीम1, दोहरे समानांतर पाइपों वाली 1224 किलोमीटर लंबी गैस पाइपलाइन है। उसके निर्माण पर 7 अरब 40 करोड़ यूरो ख़र्च हुए हैं। वह नवंबर 2011 में बनकर तैयार हो गई थी और अक्टूबर 2012 से कर्यरत थी। (इस समय 1 यूरो 1.07 डॉलर या 87.56 रुपए के बराबर है।) नॉर्ड स्ट्रीम1 से सटी हुई नॉर्ड स्ट्रीम2 भी दोहरे समानांतर पाइपों की बनी है और 1230 किलोमीटर लंबी है। जून 2021 में बनकर तैयार हो गई। उसके निर्माण की लागत 9 अरब 50 करोड़ यूरो है। पर, उससे गैस की आपूर्ति कभी नहीं हो सकी।
 
अमेरिका नहीं चाहता था कि जर्मनी और उसके पडोसी देश, ऊर्जा की आपूर्ति के लिए रूस पर बहुत अधिक निर्भर हो जाएं। दोनों पाइपलइनों का निर्माण रूस की गासप्रोम सहित जर्मनी की कई बड़ी कंपनियों ने मिलकर किया है। 17 अरब यूरो के बराबर उनकी कुल लागत अब बेकार हो गई है।
 
यूक्रेन पर आक्रमण ने अमेरिका को सही सिद्ध कर दिया : इससे पहले कि जर्मनी, अमेरिका की आपत्तियों को दूर कर पाता, 24 फ़रवरी 2022 को रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण ने अमेरिका की आपत्तियों को सही सिद्ध कर दिया। अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी सैन्य संगठन 'नाटो' के सभी देशों को प्राकृतिक गैस और कच्चे तेल जैसी सभी रूसी चीज़ों के बहिष्कार और रूस के विरुद्ध कई कड़े आर्थिक प्रतिबंध आदि लगाने की घोषणाएं करनी पड़ीं। इससे जर्मनी और पश्चिमी देशों में ही नहीं, भारत सहित पूरी दुनिया में मंहगाई आसमान छूने लगी। भारत पर अभी भी दबाव डाला जा रहा है कि वह पश्चिमी देशों का साथ दे और रूस का बहिष्कार करे।
 
यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के ठीक 7 महीने बाद, 26 सितंबर 2022 को दोनों पाइपलाइनों को ध्वस्त करने की एक ऐसी रहस्यमय घटना हुई, जिससे सभी पक्ष आज तक अचंभित हैं। आज तक अटकलें लगाई जा रही हैं किसने और क्यों, समुद्र के नीचे 70-80 मीटर की गहराई पर बिछी इन पाइपलाइनों को, डेनमार्क के बोर्नहोल्म द्वीप के पास विस्फोटकों से उड़ा देने का ख़र्च और अपनी भी जान जा सकने का जोखिम उठाया। जर्मनी के महाभियोक्ता और कई देशों की जासूसी सेवाओं से लेकर पत्रकारों सहित अनेक लोग खोजबीन करने में जुट गए कि इस घटना के पीछे किस का हाथ है– अमेरिका का, रूस का, यूक्रेन का या किसी और का?
 
पाइपलाइनें ध्वस्त करने का षड्यंत्र : मंगलवार, 7 मार्च को जर्मनी सहित कई देशों के मीडिया ने गुप्तचर सेवाओं और खोजी पत्रकारों से मिली जानकारियों के आधार पर कहा कि 5 पुरुषों और एक महिला वाली एक टोली ने दोनों गैस पाइपलाइनों को धवस्त कर देने का षड़यंत्र रचा था। उन्होंने 500 किलो विस्फोटक सामग्री जुटाई, यॉट कहलाने वाली एक सैलानी नौका पोलैंड में किराए पर ली और 6 सितंबर को डेनमार्क की दिशा मे चल पड़े।
 
डेनमार्क के बोर्नहोल्म द्वीप से कुछ दूरी पर, दो पुरुष गोताखोरों और उनकी सहायता करने वाले दो दूसरे पुरुषों ने पानी में उतर कर डुबकी लगाई। 70-80 मीटर की गहराई में दोनों पाइपलाइनों के पास पहुंच कर उन्होंने विस्फोटकों को उन पर जमाया और फिर ऊपर आ कर अपनी यॉट में लौट गए। अनुमान है कि विस्फोट को सही समय पर ट्रिगर करने के लिए किसी टाइमर या रिमोट कंट्रोल का उपयोग किया गया होगा। अपना काम पूरा कर इस टोली ने किराए की नौका पौलैंड में उसके मालिक को लौटा दी, उसे अच्छी तरह साफ़ किए बिना। जांच करने पर जर्मनी के महाभियोक्ता को इस नौका में विस्फोटक सामग्री रहे होने के निशान मिले।
 
500 किलो विस्फोटक सामग्री की भनक तक नहीं : यह नहीं बताया जा रहा है कि विस्फोटक का नाम क्या है और षड्यंत्रकारी उस तक पहुंचे कैसे। आश्चर्य इस बात को लेकर भी है कि 500 किलो विस्फोटक सामग्री जुटाई गई और सुरक्षा अधिकारियों को भनक तक नहीं लगी! हो सकता है कि विस्फोटक एक बार में नहीं, थोड़ा-थोड़ा करके अनेक बार में जुटाए गए हों। जर्मनी या पोलैंड में नहीं, यूक्रेन में जुटाए गए हों। वहां युद्ध के कारण विस्फोटकों की कमी नहीं है और क़ानून-व्यवस्था भी पहले से ही चरमराई हुई है।
 
अमेरिकी दैनिक 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने अमेरिकी अधिकारियों का उल्लेख करते हुए लिखा कि षड्यंत्रकारी टोली यूक्रेन-समर्थक ऐसे लोगों की भी हो सकती है, जो 'यूक्रेनी या रूसी या दोनों राष्ट्रीयताओं वाले हैं।' किंतु, जर्मनी के रक्षामंत्री बोरिस पिस्टोरियुस का कहना है कि जब तक कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिल जाते, तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि यूक्रेन की सरकार का इस में हाथ है। तब तक यह स्पष्ट भेद भी करना पड़ेगा कि षड्यंत्रकारी टोली ने जो कुछ किया है, वह यूक्रेन के कहने पर किया है या यह टोली यूक्रेन-समर्थक एक ऐसा गिरोह है, जिसने यूक्रेनी सरकार की जानकारी के बिना अपने मन से ऐसा किया है। यूक्रेन की सरकार ने तो अपने हाथ झाड़ते हुए यही कहा कि उसका इस घटना से कोई लेना-देना नहीं है। स्वाभाविक है कि यूक्रेन यह कभी नहीं कहेगा उसी ने यह ग़लत काम किया है।
 
सही पचान एवं नागरिकता अज्ञात है : मीडिया में जो कुछ कहा जा रहा है, उसके आधार पर अब तक यही ज्ञात है कि दोनों नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइनों को क्षतिग्रस्त करने वाली टोली में एक कप्तान, दो ग़ोताखोर, उनके दो सहायक और एक महिला डॉक्टर थी। उन्होंने जाली पासपोर्ट दिखाकर यॉट नौका किराए पर ली थी, इसलिए उनकी सही पहचान एवं नागरिकता अज्ञात है। लेकिन, यह भी कहा जा रहा है कि ऐसा हो नहीं सकता कि ये सभी लोग केवल अपने बलबूते पर काम करते रहे हों। 500 किलो विस्फोटक सामग्री जुटाना, उसकी क़ीमत चुकाना और पाइपलाइनों की गहराई तक पहुंचना, बिना अच्छी तैयारी एवं बाहरी सहयोग के संभव नहीं लगता।
 
एक अटकल यह भी लगाई जा रही है कि दोनों गोताखोर और उनके दोनों सहायक अतीत में कभी किसी नौसेना के गोताखोर रहे हो सकते हैं। 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने अमेरिकी गुप्तचर सेवाओं के बहाने से लिखा कि उनके पीछे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विरोधी छिपे हुए हैं, हालांकि ऐसे किसी विरोधी का नाम नहीं लिया जा रहा है।
 
विस्फोटक सामग्री का परिवहन भी अज्ञात है : जर्मनी के सबसे बड़े सार्वजनिक रेडियो-टीवी नेटवर्क ARD और प्रतिष्ठित साप्ताहिक पत्रिका 'दि त्साइट' के पत्रकार मिल कर नॉर्ड स्ट्रीम प्रकरण की छानबीन कर रहे थे। उन्होंने पाया कि पोलैड में जिस यॉट नौका को किराए पर लिया गया था, उसे वहां से पहले पूर्वी जर्मनी के रोस्टोक बंदरगाह में लाया गया। षड्यंत्रकारी, रोस्टोक से 6 सितंबर 2022 को डेनमार्क के बोर्नहोल्म द्वीप की तरफ रवाना हुए। अतः 'बहुत संभव है कि विस्फोटक सामग्री को किसी दूसरी छोटी नौका से पाइपलाइनों को ध्वस्त करने की जगह तक लाया गया हो।' इसके पीछे कारण यही रहा हो सकता है कि किसी छोटी नौका के बदले कोई जहाज़ या युद्धपोत होने पर वह दूर से दिखाई पड़ जाता। इसीलिए जर्मन या डेनिश गश्ती नौकाओं को कोई ऐसी चीज़ शायद नहीं दिखी, जो संदेह पैदा करती।
 
इस पूरे गोरखधंधे में यूक्रेन का हाथ होने के उचित या अनुचित संदेह के भी कई कारण बताए जा रहे हैं। संदेह का एक बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि यॉट नौका किराए पर पौलैंड में ली गई, पर उसके मालिक दो यूक्रेनी हैं। जो लोग इसे संदेह का उचित कारण नहीं मानते, उनका तर्क है कि ऐसा बाद की जांच-पड़ताल को भटकाने के और यूक्रेन की सरकार को जानबूझ कर फंसाने के लिए भी किया गया हो सकता है।
 
पाइपलाइन विध्वंस का असली लाभार्थी कौन : यॉट नौका के यूक्रेनी मालिकों वाले तथ्य को यूक्रेन पर संदेह करने का उचित कारण मानने वाले लोगों का तर्क है कि दोनों नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइनों के टूटने-फूटने से किसी दूसरे का नहीं, यूक्रेन का ही दोहरा हितसाधन हुआ है – उसके शत्रु रूस की गैस, जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों को मिलनी बंद हो जाने से रूस को हर दिन मिलने वाली करोड़ो डॉलर की आय भी बंद हो गई है। साथ ही, रूसी गैस मिलने का लोभ नहीं रह जाने से इन य़ूरोपीय देशों को यूक्रेन का खुल कर भरपूर समर्थन करने में अब कोई संकोच भी नहीं रहा।
 
इसी प्रकार, रूस यदि षड्यंत्रकारियों द्वारा यॉट के दो यूक्रेनी मालिकों वाले तथ्य के बहाने से शक की सुई यूक्रेन की तरफ घुमाना चाहेगा, तो इसका परिणाम भी इस दृष्टि से अंततः यूक्रेन के ही पक्ष में इसलिए जाता कि एक न एक दिन रूसी झूठ की कलई भी खुल ही जाएगी। उल्लेखनीय है कि रूस के प्रति जर्मनी की सारी भड़ास के बावजूद जर्मनी के महाभियोक्ता पेटर फ्रांक ने अपनी जांच में रूस को 'क्लीन चिट' दे दी है।
 
आरोपों-प्रत्यारोपों की इस झड़ी में रूस भी भला पीछे क्यों रहता! उसने आरोप लगाया है कि नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइनों पर विस्फोटक प्रहार अमेरिका और ब्रिटेन की गुप्तचर सेवाओं की मिलीभगत है। रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मरिया सख़ारोवा ने अमेरिकी पत्रकार सीमॉर हर्श की खोजों का उल्लेख करते हुए 8 मार्च को कहा कि यह काम अमेरिकी नौसेना के ग़ोताखोरों से करवाया गया। सीमॉर हर्श भी आलोचना के घेरे में हैं। उनके आलोचकों का तर्क है कि उन्होंने अपनी खोज के स्रोत नहीं बताए हैं, केवल दावे किए हैं। 
 
पाइपलाइनों का विध्वंस एक चेतावनी भी है : नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइनों को ध्वस्त करने के लिए उन पर विस्फोटकों द्वारा हमले के कुछ ऐसे परिणाम भी सामने आ रहे हैं, जिन के बारे में पहले कोई नहीं सोचता था। नाटो वाले देशों सहित सभी देशों के सुरक्षा अधिकारियों को समुद्रों के नीचे बिछी पाइपलाइनों ही नहीं, बिजली के और इंटरनेट सहित दूरसंचार के अनगिनत केबलों की सुरक्षा की भी चिंता होने लगी है। दुष्ट देश और लोग उन्हें कभी भी और कहीं भी क्षतिग्रस्त कर दुनिया को अपूर्व संकट में डाल सकते हैं। उदाहरण के लिए, ताइवान को उसके एक द्वीप समूह से जोड़ने वाले दो इंटरनेट केबल पिछले फ़रवरी महीने में एक चीनी जहाज़ ने तोड़ दिए। 
 
हमारे सागर-महासागर इतने बड़े हैं कि हर जगह, हर समय समुद्री केबलों व पाइपलाइनों की निगरानी नहीं हो सकती। तेल और प्रकृतिक गैस की आपूर्ति के लिए ही नहीं, जल्द ही तरल हाइड्रोजन गैस की लेन-देन के लिए भी समुद्री पाइपलाइनें बिछाने की योजनाएं बन रही हैं। भारत भी संचार एवं इंटरनेट सेवाओं के अनगिनत समुद्री केबलों द्वारा अपने द्वीपों से ही नहीं, पूरी दुनिया से जुड़ा हुआ है। भारत को भी इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा।  

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