ओस्लो। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि नार्वे के लॉन्गेयरबेन शहर में इंसानों के मरने पर प्रतिबंध लगा हुआ है। यह बात आपको विचित्र लग सकती है लेकिन जब आपको इस प्रतिबंध के पीछे के कारण का पता लगेगा, उसे जानने के बाद आप भी इस प्रतिबंध का विरोध नहीं करेंगे।
मौत कब किसे आगोश में ले ले, यह बात कोई नहीं जानता। लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दुनिया में एक शहर ऐसा भी है जहां इंसानों के मरने पर भी पाबंदी है। यहां पर किसी को भी मरने नहीं दिया जाता और मरने से पहले शहर से बाहर कर दिया जाता है।
जी हां, नार्वे के लॉन्गेयरबेन शहर में इंसानों के मरने पर प्रतिबंध लगा हुआ है। लेकिन, इस प्रतिबंध के पीछे जो कारण हैं, उसे जानने के बाद आप भी इस प्रतिबंध का समर्थन करेंगे। लगभग दो हजार की आबादी वाले इस शहर में हर समय खून जमाने वाली ठंड होती है। यहां रहने वाले लोग या तो टूरिस्ट होते हैं या फिर शोधकर्ता वैज्ञानिक। चारों तरफ बस बर्फ ही बर्फ दिखाई देती है और यही कारण है कि यहां ट्रांसपोर्टेशन के लिए सिर्फ स्नो स्कूटर का इस्तेमाल होता है।
यहां साल में चार महीने सूरज नहीं निकलता और चौबीसों घंटे रात रहती है। शहर में एक बहुत ही छोटा सा कब्रिस्तान है जिसमें पिछले 70 सालों से कोई नहीं दफनाया गया है। दरअसल अत्यधिक ठंड और बर्फ में दबे रहने के कारण यहां लाशें जमीन में नष्ट ही नहीं होती हैं और ना ही खराब होती हैं।
कई साल पहले वैज्ञानिकों ने यहां के कब्रिस्तान से एक डेड बॉडी के टिशू सैंपल के तौर पर लिए थे और उसकी जांच करने पर उसमें अब भी इन्फ्लुएंजा के वायरस पाए गए। इसी के बाद से यहां 'नो डेथ' पालिसी लागू कर दी गई। यदि यहां पर कोई गंभीर रूप से बीमार हो जाता है या मौत के करीब पहुंच जाता है तो उसे प्लेन या शिप में बिठाकर नॉर्वे के दूसरे हिस्सों में भेज दिया जाता है।