अटकलें पहले भी थीं कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के आरंभिक बीज अंतरिक्ष से आए रहे होंगे, पर अब इसकी पुष्टि होती दिख रही है। अमीनो एसिड, जिन्हें वास्तव में अमीनोकार्बोक्सील कहा जाना चाहिए, वे मूलभूत रासायनिक यौगिक हैं, जो पृथ्वी पर के सभी ज्ञात जीवधारियों में पाए जाते हैं। हमारा शरीर उनका उपयोग प्रोटीन बनाने के लिए तथा ऊर्जा-स्रोत के तौर पर भी करता है। अमीनो एसिड के लगभग सभी 20 प्रकार, पहली बार एक ऐसे नमूने में भी पाए गए हैं, जो 'रयुगू' (Ryugu) नाम के एक क्षुद्रग्रह (एस्टेरॉइड) की ऊपरी सतह को ठोंकने-खरोंचने से मिला है और अब जापान सहित कई देशों में जांचा-परखा गया है।
जापानी शोधयान 'हायाबुसा-2' दिसंबर 2020 में यह नमूना 'रयुगू' से लेकर आया था। तब से अब तक प्रयोगशालाओं में उसका पूरी बारीकी से अध्ययन हो रहा था। हायाबुसा-2, दिसंबर 2014 में जापान से चला था और 4 वर्षों की उड़ान के बाद हमारे सौरमंडल के इस क्षुद्रग्रह तक पहुंचा था। वहां तक पहुंचने और वहां से पृथ्वी पर लौटने में उसे कुल मिलाकर 5 अरब किलोमीटर से भी अधिक की दूरी तय करनी पड़ी।
इस जापानी शोधयान की उड़ान का उद्देश्य था, हमारे सौरमंडल और पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति को भलीभांति जानना और समझना। 'रयुगू' उन क्षुद्रग्रहों में से एक है, जो बहुत अधिक कार्बनयुक्त हैं। इस वर्ग के क्षुद्रग्रह मूल रूप से मंगल ग्रह और बृहस्पति के बीच रहकर सूर्य की परिक्रमा करने वाले क्षुद्रग्रहों की बेल्ट के बाहरी भाग में मिलते हैं। हायाबुसा-2 का पूर्वगामी 'हायाबुसा-1' 2010 में पहली बार एक क्षुद्रग्रह की मिट्टी के नमूने पृथ्वी पर लाया था।
जापानी हायाबुसा-2 मिशन में जर्मनी की अंतरिक्ष शोध संस्था 'डीएलआर' और फ्रांस की अंतरिक्ष शोध संस्था 'सीएनईएस' का भी सहयोग रहा है। इन दोनों संस्थाओं ने मिलकर 'मैस्कट' नाम का एक अवतरण यान (लैंडर) बनाया था, जिसे हायाबुसा-2 ने अक्टूबर 2018 में रयुगू' पर उतारा। 'मैस्कट' तब तक रयुगू की ऊपरी सतह को जांचता-परखता रहा, जब उसकी बैटरी काम करती रही। उसने पाया कि 'रयुगू' बहुत ही झरझरी (पोरस/रंध्रदार) सामग्री का बना है।
'रयुगू' की ऊपरी सतह की बनावट के जो नमूने हायाबुसा-2 अपने साथ पृथ्वी पर ले आया, उनका वर्गीकरण करने के बाद 2021 में उनके सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोपिक), खनिज विज्ञानी (मिनरॉलॉजिकल) और भूरासायनिक (जिओकेमिकल) अध्ययन किए गए। इन अध्ययनों में वे 4 अरब 60 करोड़ वर्ष पुराने पाए गए। इसका अर्थ यही है कि 'रयुगू' और उसके जैसे क्षुद्रग्रह, सौरमंडल बनने के शुरुआती दिनों में ही बन गए थे। जापानी अंतरिक्ष एजेंसी 'जाक्सा' ने कुछ नमूने दूसरे देशों के शोधकर्ताओं को भी दिए। इन नमूनों में अन्य बातों के साथ-साथ अमीनो एसिड के निशान भी मिले।
माना जाता है कि एकल-कोशिका वाला सरल जीवन 3 अरब 90 करोड़ वर्ष पूर्व पहली बार पृथ्वी पर अस्तित्व में आया। यह लगभग वही समय था, जब पृथ्वी इतनी ठंडी हो चुकी थी कि तरल पानी उसकी सतह पर टिका रह सके। प्रश्न यह था कि इतनी जल्दी जीवन पैदा कैसे हुआ? उसके लिए ज़रूरी अमीनो एसिड जैसे प्रथम बीज आए कहां से? इस प्रश्न ने लंबे समय से शोधकर्ताओं को व्यस्त रखा।
कहा जा सकता है कि 'रयुगू' की ऊपरी सतह की बनावट वाली सामग्री के नमूनों में अमीनो एसिड के विभिन्न प्रकारों के निशान मिलने से इस प्रश्न का उत्तर भी मिल गया है कि पृथ्वी पर जीवन के प्रथम बीज, 'रयुगू' जैसे क्षुद्रग्रहों और उल्काओं के पृथ्वी से टकराने पर यहां पहुंचे होंगे।
हाल ही में यह भी बताया गया कि जापान और अमेरिका की एक संयुक्त शोध टीम, तीन उल्कापिंडों में तथाकथित 'न्यूक्लियोबेस' का पता लगाने में सफल रही हैं। 'न्यूक्लियोबेस' ऐसे कार्बनिक क्षार (ऑर्गेनिक बेस) हैं, जो आनुवंशिक इकाइयों DNA और RNA के निर्माण के लिए ज़रूरी हैं।
DNA के चार क्षारीय घटक हैं एडेनिन, ग्वानिन, साइटोसिन व थाइमिन। RNA के भी चार क्षारीय घटक हैं। पहले तीन तो वही हैं, जो डीएनए में भी हैं। अंतिम घटक यूरासिल कहलाता है। विज्ञान पत्रिका 'नेचर कम्युनिकेशंस' के अनुसार, जटिल 'न्यूक्लियोबेस' अणु शायद सौर मंडल की उत्पत्ति से पहले ही अंतरिक्ष में बन गए थे।
प्रश्न यह भी उठता है कि 'न्यूक्लियोबेस' अणु या 'अमीनो एसिड' जैसी मूलभूत चीज़ें हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, कार्बन और ऑक्सीजन जैसे जिन रासायनिक तत्वों के मेल से बनती हैं, वे कैसे बनते और कहां से आते हैं? उत्तर है, ब्लैक होल अरबों वर्षों से वे मूल तत्व ब्रह्मांड में फैला रहे हैं, जिनसे जीवन की उत्पत्ति होती है!
यदि ब्लैक होल न होते तो हम भी आज इस पृथ्वी पर नहीं होते। वे ही जब-जब फुफकारते हैं, तब 'जेट' कहलाने वाली ऐसी ब्रह्मांडीय गैसों की प्रचंड धाराएं लाखों-करोड़ों प्रकाशवर्षों की दूरी तक अंतरिक्ष में फूंकते हैं, जिनमें निहित मूलतत्वों से अनुकूल परिस्थितियों में जीवन अंकुरित होता है। ये मूलतत्व ब्रह्मांड के कोने-कोने में लगभग एक समान फैले हुए हैं। इस खोज में जर्मनी, जापान और नीदरलैंड सहित कई देशों का योगदान है।
खगोलविद अब तक के अपने अध्ययनों के आधार पर इस अविश्वसनीय से लगते नतीजे पर पहुंचे हैं कि क्वासर या ब्लैक होल, ब्रह्मांड के आरंभकाल में ही अत्यंत गरम जेट पैदा करने लगे थे। ये जेट गैसों और ऊर्जा के रूप में उन मूलकणों को ब्रह्मांड में बिखेरते हैं, जिनसे हम और हमें ज्ञात-अज्ञात सभी जीवित या निर्जीव चीज़ें, हवा और पानी, ग्रह और तारे यानी वह सब बना है, जो दिखता है या नहीं भी दिखता।
यही परम सूक्ष्म कण अपने स्थूल रूप में द्रव्य या पदार्थ कहलाते हैं। उन्हें 6 क्वार्क और 6 लेप्टोनों में वर्गीकृत किया गया है। उन्हीं से परमणु के एलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और प्रोटॉन बनते हैं। वे ही हमारे रक्त, जीन, DNA या RNA का भी रूप धारण करते हैं।
खगोल भौतिकी के वैज्ञानिक अब कहने लगे है कि जीवन की उत्पत्ति के लिए ब्रह्मांड के आरंभकालीन महाविराट ब्लैक होल निर्णायक रहे हैं। 10 से 12 अरब वर्ष पूर्व तारों का बनना बहुत तेज़ हो गया था। ठीक उसी समय ब्लैक होल भी बहुत अधिक सक्रिय हो गए थे यानी तारों का बनना और ब्लैक होल सक्रियता एक ही समय बहुत बढ़ गई थी।
नीदरलैंड के शहर ऊटरेश्त के एक अंतरिक्ष शोध संस्थान की खगोलविद अरोरा सिमियोनेस्कू कहती हैं, वे चीज़ें, जो हमारी पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिए आवश्यक थीं, वास्तव में सब जगह मौजूद हैं, ब्रह्मांड की दूरतम गहराइयों में भी... ये सारे तत्व 10 से 12 अरब वर्ष पूर्व तब बने थे, जब ब्रह्मांड अपनी किशोरावस्था में था, पर इन तत्वों के आपस में मिश्रित होने के लिए समय ही नहीं, एक ऐसी शक्ति भी चाहिए थी, जो उन्हें मिश्रित करती। यह शक्ति बने अकूत द्रव्यराशि वाले उस समय के सक्रिय ब्लैक होल और उनसे निकले जेट।
कम्प्यूटर अनुकरण यह भी दिखाते हैं कि कार्बन का और गरम गैसों तथा ऑक्सीजन, नाइट्रोजन जैसे जीवन के लिए आवश्यक तत्वों का अरबों वर्षों तक ब्रहमांड में फैलना चलता रहा। क़रीब 4 अरब वर्ष पू्र्व हाइड्रोजन और कार्बन से भरे क्षुद्रग्रहों की पृथ्वी पर एक तरह से बमबारी हुई थी। उल्का (मेटेओराइट) कहलाने वाले उनके टुकड़े भी बड़ी संख्या में पृथ्वी पर गिरते रहे। वे ही पृथ्वी पर पानी और कार्बनिक सामग्री लाए।
जर्मनी में हुए एक प्रयोग में आदिकालीन परिस्थितियों की बहुत ही साधारण-सी नकल के द्वारा RNA के चारों घटक बना कर दिखाए जा सके। प्रयोग करने वाली टीम का कहना है कि यदि भू-भौतिकीय परिस्थितियां अनुकूल हों, तो प्रकृति ख़ुद ही जीवन रचना की आनुवांशिक इकाइयों के निर्माण को हर जगह प्राथमिकता देती है। ऐसा पृथ्वी पर ही नहीं, कहीं भी हो सकता है। दूसरे शब्दों में, यदि पृथ्वी पर जीवन है, तो ब्रह्मांड में अन्यत्र भी कहीं न कहीं जीवन अवश्य है।