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मुसलमान होकर भी काफिर हैं अहमदिया, पाकिस्तान में झेल रहे हैं जुल्म की इंतेहा

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, शनिवार, 4 फ़रवरी 2023 (18:30 IST)
अहमदिया मुसलमान (हालांकि इस्लामी लोग इन्हें काफिर मानते हैं) एक बार फिर पाकिस्तान में कट्‍टरपंथियों के निशाने पर हैं। गाहे-बगाहे उनके धर्मस्थलों पर हमले होते रहते हैं, लेकिन शुक्रवार को कुछ कट्‍टरपंथियों ने कराची में उनकी मस्जिद की मीनारें तोड़ दीं। इस घटना का वीडियो भी पूरी दुनिया में जमकर वायरल हुआ। जिस समय यह हमला, वहां पुलिस भी मौजूद थी। दरअसल, तीन माह में अहमदिया समुदाय के धार्मिक स्थलों पर 5 हमले हो चुके हैं। पाकिस्तान में इन्हें घृणा की दृष्टि से देखा जा सकता है। 
 
इस समुदाय के लोगों का सबसे बड़ा दर्द यह है कि इन्हें इस्लाम से अलग (काफिर) माना जाता है। इनके धर्मस्थलों को मस्जिद कहने पर भी रोक है। वैसे अहमदिया लोग इस्लाम का ही हिस्सा हैं, लेकिन वे हजरत मोहम्मद के अलावा एक और पैगंबर को मानते हैं। जबकि, इस्लाम के मुताबिक मोहम्मद ही आखिरी पैगंबर हैं। दूसरी ओर, मिर्जा गुलाम अहमद को अहमदिया अपना आखिरी पैगंबर मानते हैं, जबकि इस्लाम इसे मान्यता नहीं देता।
  • 19वीं सदी के अंत में भारत में मिर्जा गुलाम अहमद ने बनाया था अहमदिया संप्रदाय।
  • 1889 में पंजाब के गुरदासपुर के कादिया नामक स्थान पर हुई थी स्थापना।
  • मिर्जा गुलाम अहमद को भी पैगंबर मानता है अहमदिया संप्रदाय। 
  • अहमदिया समुदाय को मुसलमान नहीं मानता पाकिस्तान। 
जिनेवा डेली की रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 40 लाख की संख्या वाला पाकिस्तानी अहमदिया समुदाय यहां के स्व-घोषित इस्लामी नेताओं द्वारा उत्पीड़न का शिकार बनाया जा रहा है। पाकिस्तान में इनकी संख्या मात्र 0.09 प्रतिशत रह गई है। 2018 में चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक अहमदिया मतदाताओं की संख्या 1.67 लाख है। वहीं, भारत में अहमदिया मुसलमानों की संख्या डेढ़ लाख से ज्यादा है। 
 
कानून बनाकर घोषित किए गए गैर मुस्लिम : तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने 80 के दशक में एक संवैधानिक संशोधन पेश किया था, जिसमें अहमदी मुस्लिम समुदाय को गैर मुस्लिम घोषित किया गया था। वहीं, 1984 में जनरल जिया उल हक ने अध्यादेश पेश किया था, जिसने इनसे मुसलमानों के रूप में खुद को पहचानने के अधिकार और अपने मजहब में स्वतंत्र रूप से प्रार्थना करने की आजादी को भी छीन लिया था। 
 
कौन हैं अहमदिया मुसलमान : अहमदिया संप्रदाय एक धार्मिक आंदोलन है। इसकी शुरुआत 19वीं सदी के अंत में भारत में मिर्जा गुलाम अहमद ने की थी। इसका उद्देश्य मुसलमानों को कट्टरता से बाहर निकालना था। अहमदिया संप्रदाय की स्थापना 1889 में पंजाब के गुरदासपुर के कादिया नामक स्थान पर हुई थी। मिर्जा अहमद ने अपनी पुस्तक 'बराहीन-ए-अहमदिया' में अपने सिद्धांतों की व्याख्या की है।
 
विभाजन के बाद पाकिस्तान मुल्क मानकर गए थे, लेकिन... : भारत के विभाजन के बाद अधिकतर अहमदिया पाकिस्तान को अपना मुल्क मानकर वहां चले गए, लेकिन विभाजन के बाद से ही वहां उन पर जुल्म होने शुरू हो गए। इस्लामिक विद्वान इस संप्रदाय के लोगों को मुसलमान नहीं मानते। पाकिस्तान में अब इन लोगों का अस्तित्व खतरे में है।

इन्हें कानूनी रूप से भी गैर मुस्लिम करार दिया गया है। उन्हें काफिर भी करार दिया गया है।  28 मई 2010 को जुम्मे की नमाज के दौरान अल्पसंख्यक अहमदिया संप्रदाय की 2 मस्जिदों पर एकसाथ हमले हुए। इस हमले में 82 लोग मारे गए। इसके बाद उन पर लगातार हमले होते रहे हैं। वर्तमान में इस समूची कौम का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है। 
 
‍मिली थी चेतावनी : 24 दिसंबर 2015 को अमेरिका में अहमदिया मुसलमानों के संगठन के प्रवक्ता हारिस जफर को ईमेल के माध्यम से एक कानूनी नोटिस प्राप्त हुआ था। इस नोटिस में कहा गया था कि कोई अहमदिया या कादियानी अपने आप को सीधे मुसलमान नहीं कह सकता, ना ही ही अपने धर्म को इस्लाम कह सकता है। इसमें समुदाय की वेबसाइट बंद करने की बात कही गई थी। इसके साथ ही नोटिस में सख्त लहजे में चेतावनी भी दी गई थी कि वेबसाइट बंद करने के आदेश को नहीं मानने पर कानूनी कार्रवाई और 50 करोड़ (पाकिस्तानी मुद्रा) का जुर्माना लगाया जाएगा।
Edited by: Vrijenddra Singh Jhala

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