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कुरान, इस्लाम और मुसलमान

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शालिनी तिवारी

वर्ष 2010 के एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया के दूसरे सबसे बड़े धार्मिक संप्रदाय इस्लाम के तकरीबन 1.6 अरब अनुयायी हैं, जो कि विश्व की आबादी की लगभग 23% हिस्सा हैं जिसमें 80-90 प्रतिशत सुन्नी और 10-20 प्रतिशत शिया हैं। मध्य-पूर्व, उत्तरी अफ्रीका, अफ्रीका का हार्न, सहारा, मध्य एशिया एवं एशिया के अन्य कई हिस्सों में इस्लाम अनुयायी प्रमुखता से पाए जाते हैं।
 
राष्ट्र की एक छोटी लेखिका होने के नाते मेरा फर्ज बनता है कि उन प्रत्येक सामाजिक मुद्दों पर लिखूं, जो समसामयिक हों, सामाजिक बेहतरीकरण के हिस्सेदार हों और हम सबको एक नई राह दिखलाने में सहायक हों। लिखने से पहले मैंने पवित्र मजहबी पुस्तक कुरान-ए-शरीफ एवं हदीश को तसल्ली से पढ़ी, गहराई से समझने की कोशिश के साथ-साथ एक व्यापक मनन-चिंतन भी किया। 
 
खैर, कुछ तथाकथित सेक्यूलर लोग यह जरूर बोल सकते हैं कि यह अनावश्यक विषय है, मजहबी मामला है, इसमें हिन्दू लेखिका द्वारा लेख लिखा जाना ठीक नहीं है। मुझसे कई लोग अक्सर बोलते भी हैं कि आप एक हिन्दू लेखिका होकर भी मुस्लिम, सिख, ईसाई धर्म को क्यूं पढ़ती हो?
 
खैर, साहब आपकी सोच आपको मुबारक हो। मैं एक कालजयी लेखिका नहीं बनना चाहती, समाज की विसंगतियों पर में सतत कलम चलाती रहूंगी जिससे कि समाज में कुछ सकारात्मक बदलाव आ सके। मेरा इससे दूर दूर तक लेना-देना नहीं है कि आप मेरे बारे में क्या सोचते हैं? आप स्वतंत्र हैं, सोचते रहिए साहब। मैं एक स्वतंत्र लेखिका हूं, सतत लिखती रहूंगी। न तो मैंने कभी कलम को नीलाम किया है और न ही आगे करूंगी। सर कट जाए, मगर कलम नहीं बिकने दूंगी।
 
अल्लाह के द्वारा उतारी गई एवं देवदूत जिब्राएल द्वारा हजरत मुहम्मद को पहली बार सुनाई गई पवित्र कुरान मुस्लिम धर्म की नींव है। कुरान में कुल 114 सूरह, 540 रूकू, 14 सज्दा, 6,666 आयतें, 86,423 शब्द, 32,376 अक्षर, 24 नबियों का जिक्र है।
 
किंवदंतियों की मानें तो आदम को इस्लाम का पहला नबी यानी पैगम्बर माना जाता है। जिस प्रकार हिन्दू धर्म में मनु की संतानों को मनुष्य कहा जाता है, उसी प्रकार इस्लाम में आदम की संतानों को आदमी कहा जाता है और आदम को ही ईसाइयत में एडम कहा जाता है।
 
विशेष ज्ञातव्य है कि अल्लाह धरती पर किसी को भेजने से पहले ठीक-ठीक नसीहत देकर भेजता है और कहता है कि सीमित समय के लिए धरती पर जा रहे हों, वहां जाकर नेक कर्म ही करना। कुरान में भी कहा गया है कि सकारात्मक कार्य करो, जीवहत्या, पेड़ काटना, किसी को तकलीफ पहुंचाना, व्यर्थ पानी बहाना, अन्य गलत कार्य कुरान के मुताबिक पाप हैं। प्रत्येक आदमी को वापस अल्लाह के पास ही जाना पड़ेगा, कभी न कभी उसके अच्छे-बुरे कार्यों का हिसाब जरूर होगा। अल्लाह के सारे खलीफा या नबियों का एक ही पैगाम रहता है कि खुदा के बताए हुए राह पर कायम रहो, ईमान रखो और अल्लाह पर भरोसा रखो।
 
जो हजयात्रा करके वापस आते हैं, उन्हें 'हाजी' कहा जाता है। मगर हज तभी कुबूल होती है, जब हज करने वाला शख्स जकात और फितरा को जीवन में उतारकर अल्लाह के रसूलों के मुताबिक कार्य करता है। जो कुरान को अच्छी तरह से जानते, समझते और उसकी आयतों को जुबान पर रखते हों, उन्हें 'हाफिज' कहा जाता है। रमजान के महीने में मुसलमान अक्सर नमाज अदा करते हैं, रोजा रखते हैं, तकरीर भी करते हैं। कुरानशरीफ को आसानी से समझने और रसूलों से वाकिफ होने के लिए मौलवियों ने अपने-अपने तरीके से हदीश की विवेचना की है।
 
कुरान अरबी भाषा में लिखी गई है और इस्लाम एकेश्वरवादी धर्म है। विश्व के कई देशों एवं करोड़ों लोगों द्वारा पढ़ी जाने वाली कुरान के मुख्यत: 5 स्तंभ हैं-
 
1. शहादा (साक्षी होना)- गवाही देना। 'ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मद रसूल अल्लाह' मतलब अल्लाह के सिवाय और कोई परमेश्वर नहीं है और मुहम्मद, अल्लाह के रसूल हैं इसलिए प्रत्येक मुसलमान अल्लाह के एकेश्वरवादिता और मुहम्मद के रसूल होने के अपने विश्वास की गवाही देता है।
 
2. सलात (प्रार्थना)- इसे फारसी में नमाज कहते हैं। इस्लाम के अनुसार नमाज अल्लाह के प्रति कृतज्ञता दर्शाती है। मक्का की ओर मुंह करके दिन में 5 वक्त की नमाज हर मुसलमान को अदा करना होता है।
 
3. रोजा (रमजान)- यानी व्रत। इसके अनुसार रमजान के महीने में प्रत्येक मुसलमान को सूर्योदय से सूर्यास्त तक व्रत रखना अनिवार्य है। भौतिक दुनिया से हटकर ईश्वर को निकटता से अनुभव करना एवं निर्धन, गरीब, भूखों की समस्याओं और परेशानियों का अनुभव करना ही मुख्य उद्देश्य है।
 
4. जकात- यह वार्षिक दान है। इसके अनुसार प्रत्येक मुसलमान अपनी आय का 2.5% निर्धनों में बांटता है, क्योंकि इस्लाम के अनुसार पूंजी वास्तव में अल्लाह की देन है।
 
5- हज (तीर्थयात्रा)- इस्लामी कैलेंडर के 12वें महीने में मक्का में जाकर की जाने वाली धार्मिक यात्रा है, परंतु हज उसी की कुबूल होती है, जो आर्थिक रूप से सामान्य हो और हज जाने का खर्च खुद उठा सके। 
 
गौरतलब है कि कुरान के प्रत्येक सूरा के शुरुआत में 'बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्ररहीम' आता है। इसका मतलब है कि प्रत्येक मुसलमान प्रार्थना (अल्लाह के नाम से शुरू, जो बहुत मेहरबान रहमत वाला) करता है और कहता है कि 'हे अल्लाह! तू मुझे अपने बताए हुए उसूलों और ईमान पर चला, तू ही सारे जहान का मालिक है, रहमत वाला है, हम तुझी पर न्योछावर हैं, हमको सीधा रास्ता चला परंतु रास्ता तुझे पाने का हो, न कि बहकाने वालों का हो।'
 
राम, रहीम एवं हनुमान, रहमान के पैगाम में कोई फर्क नहीं है बशर्ते उसकी प्रार्थना और पाने का रास्ता भिन्न-भिन्न है। जिस कुरान के प्रत्येक सूरा में खुदा से रहमत की बात कही गई हो, वह कभी हिंसात्मक हो ही नहीं सकता। प्रत्येक धर्म में कुर्बानी की बात कही गई है, परंतु उसका यह कतई अर्थ नहीं है कि आप जीव-जंतु, पशु-पक्षी की हत्या करें। कुर्बानी का मतलब यह है कि आप अपनी आवश्यकता से अधिक धन-दौलत एवं विद्या गरीबों और जरूरतमंदों के लिए समर्पित यानी कुर्बान करें।
 
अशफाक उल्ला खां, इलाहाबाद से लियाकत अली, बरेली से खान बहादुर खां, फैजाबाद से मौलवी अहमद उल्ला, फतेहपुर से असीमुल्ला, मौलाना अबुल कलाम, ब्रिगेडियर एम. उस्मान, मेजर अनवर करीम व अन्य ऐसे तमाम क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त थे जिन्होंने जाति-धर्म से ऊपर उठकर भारत मां की आन-बान व शान की रक्षा करने हेतु प्राणों को न्योछावर कर दिया। इस सब महान आत्माओं के लिए धर्म से बढ़कर राष्ट्र था। इन्होंने सही मायने में जीवन को समझा और कुर्बानी दी।
 
अहिंसा, प्रेम, सद्भाव ही सभी धर्मों का मूल है और सबका मालिक भी एक है। फर्क इतना ही है कि हम उसे अलग-अलग नामों से जानते हैं। आप ही बताइए कि गर दुनिया को चलाने वाला एक है तो उसका पैगाम अलग-अलग कैसे हो सकता है? मानवता ही हम सबका का पहला धर्म है। 
 
अच्छाइयां व बुराइयां प्रत्येक जगह होती हैं, मगर समयोपरांत हम बुराइयों को छोड़कर अच्छाइयों को आत्मसात करते हैं इसलिए आज बाकी धर्मों के साथ-साथ इस्लाम धर्म के अनुयायियों को चाहिए कि वे अपनी मजहबी दुनिया से बाहर निकलकर मानवता एवं संविधान को सर्वोपरि समझें, मजहबी खामियों को दूर करें, सुप्रीम कोर्ट द्वारा तात्कालिक तीन तलाक पर रोक इसी की एक बानगी है और यह फैसला सचमुच काबिले तारीफ भी है। 
 
बेहतर होगा कि इस्लाम धर्म के जानकार और अनुयायी चिंतन करके कौम एवं मानव हित में सकारात्मक बदलाव लाएं, कुरान-ए-शरीफ के बताए हुए सही मार्गों पर चलें। समय के साथ बदलाव अवश्यंभावी है और होना भी चाहिए।

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