Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(दशमी तिथि)
  • तिथि- वैशाख कृष्ण दशमी
  • शुभ समय- 6:00 से 9:11, 5:00 से 6:30 तक
  • जयंती/त्योहार/व्रत/मुहूर्त- भद्रा/जातकर्म/वाहन क्रय
  • राहुकाल- दोप. 12:00 से 1:30 बजे तक
webdunia

भगवान शांतिनाथ- सोलहवें तीर्थंकर

Advertiesment
हमें फॉलो करें सोलहवें तीर्थंकरभगवान शांतिनाथ

अनिरुद्ध जोशी

FILE

जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ का जन्म ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन शुभ नक्षत्रों के योग में हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वसेन था, जो हस्तिनापुर के राजा थे। उनकी माता का नाम महारानी ऐरा था।

बचपन में ही शिशु शांतिनाथ कामदेव के समान सुंदर थे। कहा जाता है उनका मनोहारी रूप देखने के लिए देवराज इन्द्र-इन्द्राणी सहित उपस्थित हुए थे। शांतिनाथ के शरीर की आभा स्वर्ण के समान दिखाई देती थी। उनके शरीर पर सूर्य, चन्द्र, ध्वजा, शंख, चक्र और तोरण के शुभ मंगल चिह्न अंकित थे। जन्म से ही उनकी जिह्वा पर मां सरस्वती देवी विराजमान थीं।

जब शांतिनाथ युवावस्‍था में पहुंचे तो राजा विश्वसेन ने उनका विवाह कराया एवं स्वयं राजा ने मुनि-दीक्षा ले ली। राजा बने शांतिनाथ के शरीर पर जन्म से ही शुभ चिह्न थे। उनके प्रताप से वे शीघ्र ही चक्रवर्ती राजा बन गए। उनकी 96 हजार रानियां थीं। उनके पास 84 लाख हाथी, 360 रसोइए, 84 करोड़ सैनिक, 28 हजार वन, 18 हजार मंडलिक राज्य, 360 राजवैद्य, 32 हजार अंगरक्षक देव, 32 चमर ढोलने वाले, 32 हजार मुकुटबंध राजा, 32 हजार सेवक देव, 16 हजार खेत, 56 हजार अंतर्दीप, 4 हजार मठ, 32 हजार देश, 96 करोड़ ग्राम, 1 करोड़ हंडे, 3 करोड़ गायें, 3 करोड़ 50 लाख बंधु-बांधव, 10 प्रकार के दिव्य भोग, 9 निधियां और 24 रत्न, 3 करोड़ थालियां आदि अकूत संपदा थीं।

इस अकूत संपदा के मालिक रहे राजा शांतिनाथ ने सैकड़ों वर्षों तक पूरी पृथ्वी पर न्यायपूर्वक शासन किया। तभी एक दिन वे दर्पण में अपना मुख देख रहे थे तभी उनकी किशोरावस्था का एक और मुख दर्पण में दिखाई पड़ने लगा, मानो वह उन्हें कुछ संकेत कर रहा था।

उस संकेत देख वे समझ गए कि वे पहले किशोर थे फिर युवा हुए और अब प्रौढ़। इसी प्रकार सारा जीवन बीत जाएगा। लेकिन उन्हें इस जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा पाना है। यही उनके जीवन का उद्देश्य भी है। ...और उसी पल उन्होंने अपने पुत्र नारायण का राज्याभिषेक किया और स्वयं दीक्षा लेकर दिगंबर मुनि का वेश धारण कर लिया। मुनि बनने के बाद लगातार सोलह वर्षों तक विभिन्न वनों में रहकर घोर तप करने के पश्चात अंतत: पौष शुक्ल दशमी को उन्हें केवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई और वे तीर्थंकर कहलाएं।

तदंतर उन्होंने घूम-घूमकर लोक-कल्याण किया, उपदेश दिए। ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन सम्मेदशिखरजी पर भगवान शांतिनाथ को निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्म के पुराणों के अनुसार उनकी आयु एक लाख वर्ष कही गई हैं।

भगवान शांतिनाथ का अर्घ्य
बसु द्रव्य संवारी तुम ढिग सारी, आनन्द कारी छग प्यारी।
तुम हो भवतारी, करुणा धारी, यातैं थारी शरणारी।
श्री शान्ति जिनेश, नुतनाक्रेशं वृष चक्रेशं, चक्रेशं।
हनि अरि चक्रेशं, हे गुनधेशं, दया मृतेशं, मक्रेशं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi