जैन धर्म में दशलक्षण पर्व का बहुत महत्व है। दशलक्षण पर्व के दौरान जिनालयों में धर्म प्रभावना की जाएगी। दिगंबर जैन समाज में पयुर्षण पर्व/ दशलक्षण पर्व के प्रथम दिन उत्तम क्षमा, दूसरे दिन उत्तम मार्दव, तीसरे दिन उत्तम आर्जव, चौथे दिन उत्तम शौच, पांचवें दिन उत्तम सत्य, छठे दिन उत्तम संयम, सातवें दिन उत्तम तप, आठवें दिन उत्तम त्याग, नौवें दिन उत्तम आकिंचन तथा दसवें दिन ब्रह्मचर्य तथा अंतिम दिन क्षमावाणी के रूप में मनाया जाएगा।
आइए जानते हैं दशलक्षण के दस पर्व का महत्व :-
1. क्षमा- सहनशीलता। क्रोध को पैदा न होने देना। क्रोध पैदा हो ही जाए तो अपने विवेक से, नम्रता से उसे विफल कर देना। अपने भीतर क्रोध का कारण ढूंढना, क्रोध से होने वाले अनर्थों को सोचना, दूसरों की बेसमझी का ख्याल न करना। क्षमा के गुणों का चिंतन करना।
2. मार्दव- चित्त में मृदुता व व्यवहार में नम्रता होना।
3. आर्जव- भाव की शुद्धता। जो सोचना सो कहना। जो कहना सो करना।
4. शौच- मन में किसी भी तरह का लोभ न रखना। आसक्ति न रखना। शरीर की भी नहीं।
5. सत्य- यथार्थ बोलना। हितकारी बोलना। थोड़ा बोलना।
6. संयम- मन, वचन और शरीर को काबू में रखना।
7. तप- मलीन वृत्तियों को दूर करने के लिए जो बल चाहिए, उसके लिए तपस्या करना।
8. त्याग- पात्र को ज्ञान, अभय, आहार, औषधि आदि सद्वस्तु देना।
9. अकिंचन्य- किसी भी चीज में ममता न रखना। अपरिग्रह स्वीकार करना।
10. ब्रह्मचर्य- सद्गुणों का अभ्यास करना और अपने को पवित्र रखना।