Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(सूर्य धनु संक्रांति)
  • तिथि- पौष कृष्ण एकम
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक
  • व्रत/मुहूर्त- सूर्य धनु संक्रांति, खरमास प्रारंभ
  • राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

Lord Parshwanath Life Story: जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का जन्म व दीक्षा कल्याणक दिवस 21 दिसंबर को

हमें फॉलो करें Lord Parshwanath Life Story: जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का जन्म व दीक्षा कल्याणक दिवस 21 दिसंबर को
- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
 
 
जल आदि साजि सब द्रव्य लिया। कन थार धार नुत नृत्य किया। सुख दाय पाय यह सेवल हौं। प्रभु पार्श्व सार्श्वगुणा बेवत हौं। 
 
21 दिसंबर 2019, शनिवार को जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का जन्म व दीक्षा कल्याणक महोत्सव मनाया जाएगा। आइए जानें... 
 
भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर हैं। उनकी मूर्ति के दर्शन मात्र से ही जीवन में शांति का अहसास होता है। पार्श्वनाथ वास्तव में ऐतिहासिक व्यक्ति थे। उनसे पूर्व श्रमण धर्म की धारा को आम जनता में पहचाना नहीं जाता था। पार्श्वनाथ से ही श्रमणों को पहचान मिली। वे श्रमणों के प्रारंभिक आइकॉन बनकर उभरे। पार्श्वनाथ के प्रमुख चिह्न- सर्प, चैत्यवृक्ष- धव, यक्ष- मातंग, यक्षिणी- कुष्माडी आदि है। 
 
पार्श्वनाथ का जन्म आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व पौष कृष्‍ण एकादशी के दिन वाराणसी में हुआ था। उनके पिता अश्वसेन वाराणसी के राजा थे। इनकी माता का नाम 'वामा' था। उनका प्रारंभिक जीवन राजकुमार के रूप में व्यतीत हुआ। 
 
तीर्थंकर बनने से पहले पार्श्‍वनाथ को नौ पूर्व जन्म लेने पड़े थे। पहले जन्म में ब्राह्मण, दूसरे में हाथी, तीसरे में स्वर्ग के देवता, चौथे में राजा, पांचवें में देव, छठवें जन्म में चक्रवर्ती सम्राट और सातवें जन्म में देवता, आठ में राजा और नौवें जन्म में राजा इंद्र (स्वर्ग) तत्पश्चात दसवें जन्म में उन्हें तीर्थंकर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पूर्व जन्मों के संचित पुण्यों और दसवें जन्म के तप के फलत: वे तीर्थंकर बनें। 
 
भगवान पार्श्वनाथ 30 वर्ष की आयु में ही गृह त्याग कर संन्यासी हो गए। 83 दिन तक कठोर तपस्या करने के बाद 84वें दिन उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। वाराणसी के सम्मेद पर्वत पर इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था।
 
पार्श्वनाथ ने चार गणों या संघों की स्थापना की। प्रत्येक गण एक गणधर के अंतर्गत कार्य करता था। सारनाथ जैन-आगम ग्रंथों में सिंहपुर के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं पर जैन धर्म के 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ ने जन्म लिया था और अपने अहिंसा धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। उनके अनुयायियों में स्त्री और पुरुष को समान महत्व प्राप्त था।

 
कैवल्य ज्ञान के पश्चात्य चातुर्याम (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह) की शिक्षा दी। ज्ञान प्राप्ति के उपरांत सत्तर वर्ष तक आपने अपने मत और विचारों का प्रचार-प्रसार किया तथा सौ वर्ष की आयु में देह त्याग दी।
 
भगवान पार्श्वनाथ की लोकव्यापकता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि आज भी सभी तीर्थंकरों की मूर्तियों और चिह्नों में पार्श्वनाथ का चिह्न सबसे ज्यादा है। आज भी पार्श्वनाथ की कई चमत्कारिक मूर्तियां देश भर में विराजित है। जिनकी गाथा आज भी पुराने लोग सुनाते हैं।


ऐसा माना जाता है कि महात्मा बुद्ध के अधिकांश पूर्वज भी पार्श्वनाथ धर्म के अनुयायी थे। श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन उन्हें सम्मेदशिखरजी पर निर्वाण प्राप्त हुआ। ऐसे 23वें तीर्थंकर को भगवान पार्श्वनाथ शत्-शत् नमन्।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

cancer 2020 love horoscope : कर्क राशि 2020, रोमांस के लिए कैसा है नया साल