Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(रुक्मिणी अष्टमी)
  • तिथि- पौष कृष्ण अष्टमी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक
  • व्रत/मुहूर्त-रुक्मिणी अष्टमी, किसान दिवस
  • राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

पर्युषण महापर्व : अष्टान्हिका और दशलक्षण में क्या है फर्क?

हमें फॉलो करें पर्युषण महापर्व : अष्टान्हिका और दशलक्षण में क्या है फर्क?

अनिरुद्ध जोशी

पर्युषण पर्व जैन धर्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व बुरे कर्मों का नाश करके हमें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा से यह पर्व अलग अलग तरीके से मनाते हैं। हालांकि इसमें कोई खास फर्क नहीं है।
 
1.श्वेतांबर भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की पंचमी और दिगंबर भाद्रपद शुक्ल की पंचमी से चतुर्दशी तक यह पर्व मनाते हैं।

महापर्व पर्युषण क्या है, जानिए
 
2.श्वेतांबर समाज 8 दिन तक पर्युषण पर्व मनाते हैं जिसे 'अष्टान्हिका' कहते हैं जबकि दिगंबर 10 दिन तक मनाते हैं जिसे वे 'दशलक्षण' कहते हैं। ये दसलक्षण हैं- क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, संयम, शौच, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य।
 
3.अष्टान्हिका में होते हैं आठ चरण-
1.अष्टमी में ॐ ह्रीं नंदीश्‍वर संज्ञाय नम: का जप।
2.नवमी में ॐ ह्रीं अष्टमहविभूति संज्ञाय नम: का जप।
3.दशमी में पके चावल के आहार के साथ ॐ ह्रीं त्रिलोकसार संज्ञाय नम: का जप।
4.एकादशी में अवमौर्दूय और समय भूख से कम भोजन के साथ ॐ ह्रीं चतुर्मुख संज्ञाय का जप।
5.द्वादशी में बारह सिद्‍धि (एकासन) के साथ ॐ ह्रीं पंचमहालक्षण संज्ञाय नम: का जप।
6.त्रयोदशी को पके चावल और इमली के साथ ॐ हरिम स्वर्गसोपान संज्ञाय नम: का जप।
7.चतुर्दशी को जल और चावल के साथ ॐ ह्रीं सिद्ध चक्राय नम: का जप।
8.पूर्णिमा के दिन उपवास में ॐ ह्रीं इन्द्रध्वज संज्ञाय नम: का जप किया जाता है।
 
4.हालांकि भाद्रपद माह के अलावा भी कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ माह के जो अंतिम आठ दिन होते हैं उसे भी अष्टान्हिका कहते हैं जो कि अष्टान्हिका पर्व के नाम से जाना जाता है।
 
5.खासकर अष्टान्हिका पर्व साल में तीन बार आता हैं। यह पर्व कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ के महीनों के अंतिम आठ दिनों में (अष्टमी से पूर्णिमा तक) मनाया जाता हैं। 
 
6.इस में खासकर चारों प्रकार के इंद्र सहित देवों के समूह नन्दीश्वर द्वीप में प्रति-वर्ष आषाढ़-कार्तिक और फाल्गुन मास में पूजा करने आते हैं। नन्दीश्वर द्वीपस्थ जिनालयों की यात्रा में बहुत ही भक्तिभाव से युक्त कल्पवासी देव पूर्व दिशा में, भवनवासी देव दक्षिण दिशा में, व्यंतर देव पश्चिमी दिशा और ज्योतिष देव उत्तर दिशा में विराजमान जिन मंदिर में पूजा करते हैं। जिनेन्द्र प्रतिमाओं की विविध प्रकार से आठ दिनों तक अखंड रूप से पूजा-अर्चना की जाती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

पर्युषण 2019 : दशलक्षण के 10 दिन के महापर्व का महत्व जानिए