Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
  • तिथि- कार्तिक शुक्ल सप्तमी
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक
  • व्रत/मुहूर्त-छठ पारणा, सहस्रार्जुन जयंती
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

आत्मशुद्धि का महायज्ञ है पर्युषण पर्व

हमें फॉलो करें आत्मशुद्धि का महायज्ञ है पर्युषण पर्व
The festival of Jainism
 
- डॉ. आर.सी. ओझा
 
सृष्टि में जो शाश्वत एवं सार्वभौमिक ज्ञान-धारा अविरल रूप से प्रवाहित हो रही है, पर्युषण महापर्व (paryushan parv 2022) उस अलौकिक आत्मज्ञान व तप का साक्षी रहा है। इस महापर्व को श्वेतांबर व दिगंबर विचारधारा में सीमित रखना पर्युषण पर्व की विश्वव्यापी सार्थकता के साथ न्याय नहीं होगा। वस्तुतः यह संपूर्ण मानव जाति की आत्मशुद्धि का महायज्ञ है।
 
पर्युषण पर्व का मूल उद्देश्य तपबल विकसित कर सारी सांसारिक प्रवृत्तियों को अहिंसा से सराबोर करना है। हिंसा और परिग्रह दो ऐसे विषैले वृक्ष हैं, जो हर जगह अपना जाल बिछा देते हैं। आम आदमी की भाषा में पर्युषण पर्व के दो अर्थ हैं। पहला जैन तीर्थंकरों की पूजा, सेवा और स्मरण तथा दूसरा इस विशिष्ट पर्व पर अनेक प्रकार के व्रतों के माध्यम से शारीरिक, मानसिक व वाचिक तप में स्वयं को पूरी तरह समर्पित करना। सामान्य भाषा में तप उस कठिन व्रत को कहते हैं, जो एक तो चित्त को शुद्ध करता है और दूसरा, विषयों के चिंतन से निवृत्त करने में मददगार साबित होता है।
 
 
श्वेतांबर चिंतन के अनुसार पर्युषण पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पंचमी तक मनाया जाता है। श्वेतांबर व दिगंबर समाज के पर्युषण पर्व की तिथियों में अंतर होता है। दिगंबर जैन समाज पर्युषण पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष पंचमी से चतुर्दशी तक मनाता है, परंतु पर्युषण पर्व का समवेत चिंतन सभी जैन धर्मावलंबियों के लिए समान है। इस पर्व के दौरान सभी चौबीस तीर्थंकरों ने ज्ञान चक्षुओं से जो तत्वज्ञान दिया है, उसका चिंतन-मनन पावन कर्तव्य समझा जाता है।
 
ये चौबीस तीर्थंकर हैं (24 jain tirthankar) : (1) ऋषभदेव या आदिनाथ, (2) अजितनाथ, (3) संभवनाथ, (4) अभिनंदननाथ, (5) सुमतिनाथ, (6) पदम प्रभु, (7) सुपार्श्वनाथ, (8) चंद्रप्रभु, (9) पुष्पदंत, (10) शीतलनाथ, (11) श्रेयांसनाथ, (12) वासूपूज्य, (13) विमलनाथ, (14)अनंतनाथ, (15) धर्मनाथ, (16) शांतिनाथ, (17) कुंतुनाथ, (18)अमरनाथ, (19) मल्लिनाथ, (20) मुनि सुव्रत, (21) नमिनाथ, (22) नेमिनाथ, (23) पार्श्वनाथ और (24) महावीर स्वामी।
 
भगवान महावीर स्वामी ने 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ द्वारा आरंभ किए गए तत्वज्ञान को परिमार्जित कर उसे जैन दर्शन का स्थायी आधार दिया। भगवान महावीर का जन्म वृज्जि गणराज्य की वैशाली नगरी के निकट कुंडग्राम में हुआ था। महावीर स्वामी के पिता सिद्धार्थ उस गणराज्य के सम्राट थे। कलिंग नरेश की कन्या यशोदा से उनका विवाह हुआ था।

 
तीस वर्ष की आयु में अपने ज्येष्ठ बंधु की आज्ञा लेकर महावीर स्वामी ने घरबार छोड़ दिया और तप कर 'कैवल्य' ज्ञान प्राप्त किया। मुक्त आत्मा 'कैवल्य' के नाम से जानी जाती है। सांख्य दर्शन के अनुसार पुरुषऔर प्रकृति के पार्थक्य की स्थिति कैवल्य कहलाती है। जैन धर्म में, जिसमें विशुद्ध ज्ञान ही ज्ञान रह जाता है, उसे 'कैवल्य' कहते हैं।
 
भगवान महावीर जीवित अवस्था में ही शुद्ध ज्ञान स्वरूप रह गए थे। उन्होंने बारह वर्षों तक घोर तप किया था और तत्वज्ञान का चिंतन किया था। इसके बाद वे सर्वज्ञ ब्रह्मस्वरूप हो गए। वे सभी अवस्थाओं के सर्वज्ञाता हो गए और 'जिन' कहलाए। 'जिन' से तात्पर्य कर्म पर विजय है। महावीर स्वामी अनेक नामों से जाने जाते हैं जैसे वर्धमान, अहर्थ, जिन, निर्गंथ, महावीर, अतिवीर आदि-आदि। इनके 'जिन' नाम की वजह से ही आगे चलकर इस धर्म का नाम 'जैन' धर्म पड़ा। पर्युषण पर्व उनके उपदेशों के चिंतन के लिए है।
 
श्वेतांबर समाज आठ दिन तक पर्युषण पर्व मनाता है, जिसे वह 'अष्टाह्निक पर्व' कहता है और दिगंबर समाज पर्युषण पर्व दस दिन का मनाता है, जिसे वह 'दसलक्षण पर्व' कहता है। ये हैं- क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य। पर्व के दौरान इन लक्षणों का चिंतन-वाचन होता है।
 
पर्युषण पर्व तीर्थंकरों की आध्यात्मिक परंपरा और ब्रह्मज्ञान से जुड़ा है। मोहमाया व परिग्रह से मुक्ति के लिए इस पर्व के दौरान निजी एवं सामूहिक स्तर पर णमोकार मंत्र का जप किया जाता है, जिससे सांसारिक बंधन टूटते हैं। इससे लोभ, मोह, माया, राग-द्वेष आदि विकारों से मुक्ति मिलती है और हृदय निर्मल स्थिति को प्राप्त होता है। पर्युषण पर्व आत्मकल्याण का एक साधन है। ज्ञान प्राप्त करना और ज्ञान को आचरण में उतारना दो अलग-अलग बातें हैं। पर्युषण पर्व तीर्थंकरों द्वारा उपलब्ध कराए हुए ज्ञान को आचरण में उतारने की प्रक्रिया है।

 
ग्रंथों में पर्युषण पर्व को अमृत तुल्य साधन माना गया है। समाज में सहिष्णुता और समभाव का विकास करना, समग्रता और आध्यात्मिक चेतना जागृत करना इस पर्व के मुख्य उद्देश्य हैं। आत्मचेतना से ही यह संभव है क्योंकि जब तक ज्ञान को आचरण में नहीं उतारा जाता, तब तक सामाजिक स्तर पर धर्म को प्रतिष्ठित करना कठिन रहता है। धर्म जो ज्ञान स्वरूप है, उसमें स्वयं प्रतिष्ठित होने की ऊर्जा रहती है। आचार्यश्री तुलसी का अणुव्रत का पालन करने से भी परिग्रह के पापों से मुक्ति संभव है।

 
णमोकार मंत्र के सतत जप, कल्पसूत्र वाचन व संतों के आध्यात्मिक उपदेश के साथ-साथ भगवान महावीर द्वारा प्रदत्त 5 ज्ञानोपदेश (प्राणी मात्र की हिंसा न करना, किसी वस्तु को बिना दिए स्वीकार न करना, मिथ्या भाषण न करना, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना, अपरिग्रह के प्रति समर्पित रहना) का चिंतन-मनन-आचरण पर्यूषण पर्व के मुख्य उद्देश्यों में शरीक हैं। इससे आत्मा निर्मल होती है और किसी तरह के सांसारिक विकार पास नहीं फटकते।

 
पर्युषण पर्व के दौरान जो उदार व विशाल हृदय विकसित होता है, उसकी प्रतिध्वनि क्षमा पर्व में सुनाई देती है। क्षमा याचना करना आध्यात्मिक व नैतिक शक्ति का प्रतीक है। हर इंसान के बूते की बात नहीं है कि वह क्षमा याचना कर सके। प्रतिशोध के भाव आराधना को पूरी नहीं होने देते।

इस पर विजय के लिए क्षमा धर्म जरूरी है। क्षमा सीधी आत्मा से जुड़ी है और यह दर्शाती है कि आत्मा किस स्तर तक निर्मल हो चुकी है। पर्युषण पर्व निजी तप है, तो क्षमा पर्व व्यापक सामाजिक स्तर पर उस तप का प्रतिफल है। क्षमा का स्वरूप प्रेरणादायी है। 

webdunia
 
 

 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

श्री गणेश को क्यों चढ़ाते हैं दूर्वा, जानिए क्या है कारण, नियम और मंत्र