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जन्माष्टमी आज: जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और 4 खास बातें

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WD Feature Desk

, शनिवार, 16 अगस्त 2025 (13:44 IST)
Janmashtami celebration 2025: जन्माष्टमी का त्योहार 2025 में 16 अगस्त, शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के अलावा जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी के रूप में भी जाना जाता है।ALSO READ: कृष्ण जन्माष्टमी पर दही हांडी कैसे मनाते हैं ?
 
शुभ मुहूर्त और पूजा का समय: जन्माष्टमी का व्रत 16 अगस्त को रखा जाएगा। पूजा का सबसे शुभ समय आधी रात का है, जिसे निशीथ काल कहते हैं, क्योंकि मान्यता है कि श्रीकृष्ण का जन्म इसी समय हुआ था।
 
जन्माष्टमी 2025 के शुभ मुहूर्त:
 
• अष्टमी तिथि प्रारंभ: 15 अगस्त को रात 11:49 से 
• अष्टमी तिथि समाप्त: 16 अगस्त को रात 09:34 तक।
• निशीथ पूजा का समय: 16 अगस्त को रात मध्यरात्रि 12:04 से 12:47 तक। 
• व्रत पारण का समय: 16 अगस्त को रात 09:34 के बाद (अष्टमी तिथि समाप्त होने पर) या 17 अगस्त को सूर्योदय के बाद।ALSO READ: कृष्ण जन्माष्टमी 15, 16 और 17 अगस्त 2025 तीनों दिनों में से कौनसी है सही डेट, पूजा का समय क्या है?
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पूजा विधि : हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप या बाल गोपाल की पूजा की जाती है। यहां पूजा की विधि दी गई है:
 
1. व्रत और संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पूजा का संकल्प लें। पूरे दिन फलाहार या निर्जल यानी बिना पानी का व्रत रखें।
 
2. सजावट: अपने घर के मंदिर या पूजा स्थान को साफ करें। फूलों, रंगोली और बंदनवार से सजावट करें। बाल गोपाल के लिए एक सुंदर झूला सजाएं।
 
3. अभिषेक: आधी रात को, बाल गोपाल की मूर्ति को एक थाल में रखें। उन्हें पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान कराएं और फिर गंगाजल से अभिषेक करें।
 
4. श्रृंगार: स्नान के बाद मूर्ति को साफ कपड़े से पोंछकर नए और सुंदर वस्त्र पहनाएं। उन्हें मुकुट, मोरपंख, बाजूबंद और माला से सजाएं।
 
5. भोग: भगवान को माखन-मिश्री, फल, और मिठाई का भोग लगाएं। ध्यान रखें कि भोग में तुलसी का पत्ता ज़रूर शामिल करें।
 
6. आरती और मंत्र जाप: घी का दीपक जलाकर भगवान की आरती करें और उनके जयकारे लगाएं। 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें।
 
जन्माष्टमी व्रत कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापर युग में मथुरा नगरी पर कंस नामक एक अत्याचारी राजा का शासन था। कंस की बहन देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ था। जब देवकी का विवाह हो रहा था, तभी एक आकाशवाणी हुई कि देवकी की आठवीं संतान कंस का वध करेगी। यह सुनकर कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया और उनकी सात संतानों को मार डाला।
 
जब आठवीं संतान का जन्म होने वाला था, तब घनघोर बारिश हो रही थी। आधी रात को कारागार के सभी दरवाजे अपने आप खुल गए, पहरेदार गहरी नींद में सो गए और वसुदेव के हाथ-पैरों की बेड़ियां खुल गईं। उसी समय भगवान विष्णु ने बाल श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया। वासुदेव ने नवजात शिशु को एक टोकरी में रखकर यमुना नदी पार कर गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के घर पहुंचाया और उनकी नवजात कन्या को वापस ले आए।
 
जब कंस को इस बात का पता चला तो वह कन्या को मारने के लिए उठा, लेकिन वह कन्या हवा में उड़ गई और बोली कि 'हे कंस, तेरा वध करने वाला गोकुल में जन्म ले चुका है'। इसी घटना की याद में जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है।ALSO READ: कृष्ण: अनंत अपरिभाषा
 
पून संबंधी ध्यान देने योग्य बातें: 
 
• पूजा में तुलसी के पत्ते का विशेष महत्व है, इसलिए इसे जरूर शामिल करें।
 
• रात 12 बजे तक व्रत रखें और इसके बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोलें।
 
• जन्माष्टमी के दिन किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन का सेवन न करें।
 
• पूजा करते समय मन को शांत और सकारात्मक रखें।
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।ALSO READ: कृष्ण परम आनंद हैं

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