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16 अगस्त को होगी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, जानें क्यों और कैसे मनाएं?

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पं. हेमन्त रिछारिया

, सोमवार, 11 अगस्त 2025 (09:00 IST)
Janmashtami celebration 2025: 16 अगस्त को देशभर में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्योत्सव 'श्रीकृष्ण जन्माष्टमी' के रूप में मनाया जाएगा। हमारे सनातन धर्म में भगवान कृष्ण को पूर्णावतार कहा गया है। वे सोलह कलाओं युक्त एकमात्र पूर्णावतार हैं।

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म जीव को मुक्ति व मोक्ष का भी संकेत प्रदान करता है जिस प्रकार कंस के कारागार में जब भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ तब सारे द्वारपालों को मूर्च्छा आ गई एवं वसुदेव और देवकी के बन्धन स्वत: खुल गए ठीक उसी प्रकार जब हमारे अन्त:करण रूपी कारगार में भी श्रीकृष्ण का प्राकट्य होता है तब हमारे षड्विकार रूपी द्वारपालों को मूर्च्छा आ जाती है और हमारे मोहमाया रूपी बन्धन कट जाते हैं।ALSO READ: नरेंद्र मोदी के मंगल से होगा डोनाल्ड ट्रंप का नाश, श्रीकृष्ण और बाली की कुंडली में भी था ये योग
 
16 अगस्त को ही क्यों मनाएं जन्माष्टमी: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तिथि को लेकर अक्सर विद्वानों में मतभेद रहता है जो श्रद्धालुओं के मन में संशय उत्पन्न करता है। शास्त्रानुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि में 12 बजे हुआ था। अत: जिस दिन यह सभी संयोग बने उसी दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाना श्रेयस्कर है। 
 
यहां उदयकालीन तिथि की मान्यता इसलिए नहीं है क्योंकि जन्माष्टमी का पर्व रात्रिकालीन है, अत: इस दिन रात्रिकालीन तिथि को ही ग्राह्य किया जाना उचित है। 15 अगस्त को अष्टमी तिथि का प्रारम्भ अपराह्न 11 बजकर 52 मिनट से होगा जो 16 अगस्त को रात्रि 09 बजकर 35 मिनट तक रहेगी। पंचांग की अहोरात्र गणनानुसार सूर्योदय से सूर्योदय तक एक दिन माना जाता है। 
 
शास्त्रानुसार अर्द्धरात्रि में रहने वाली तिथि अधिक मान्य होती है किन्तु शास्त्रीय सिद्धांत अनुसार अष्टमी यदि सप्तमी विद्धा (संयुक्त) हो तो वह सर्वर्था त्याज्य होती है चूंकि 15 अगस्त को अष्टमी सप्तमी विद्धा (संयुक्त) है अत: वह शास्त्रानुसार सर्वर्था त्याज्य है वहीं 16 अगस्त को अष्टमी तिथि नवमीं विद्धा (संयुक्त) है जो शास्त्रानुसार ग्राह्य है इसलिए स्मार्त व वैष्णव सभी श्रद्धालुओं को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त 2025 को ही मनाना श्रेयस्कर रहेगा।ALSO READ: क्या भगवान जगन्नाथ में धड़कता है श्रीकृष्ण का हृदय, क्या है ब्रह्म तत्व का अबूझ रहस्य
 
कैसे मनाएं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त होकर अपने पूजाघर साफ़-स्वच्छ करें, तत्पश्चात् अपने पूजाघर को सजाएं व उसमें पालना (झूला) डालें। उसके बाद भगवान कृष्ण के विग्रह (मूर्ति) का षोडषोपचार पूजन करने के उपरांत केसर मिश्रित गौदुग्ध से 'पुरुष-सूक्त' के साथ अभिषेक करें। फ़िर भगवान कृष्ण को माखन-मिश्री व तुलसीदल का भोग अर्पण करें और भगवान के विग्रह को रेशमी पीताम्बर से आच्छादित (ढंक) कर दें।

रात्रि ठीक 12 बजे त्रि-करतल ध्वनि (तीन बार ताली बजाकर) व शंख बजाकर भगवान का प्राकट्य करें एवं पुन: भगवान के विग्रह का पंचामृत आदि से षोडषोपचार पूजन करने उपरान्त केसर मिश्रित गौदुग्ध से 'पुरुष-सूक्त' के साथ अभिषेक करें तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण को नवीन वस्त्र, मोरपंखी मुकुट, बांसुरी, अलंकार धारण कराकर पालने में पधराएं (बिठाएं) और माखन मिश्री का भोग अर्पित करें फ़िर भगवान कृष्ण की आरती करें। अभिषेक के प्रसाद (दुग्ध) को कुटुम्ब व परिवार सहित यह मंत्र बोलकर ग्रहण करें-
             
'अकाल मृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम् 
विष्णोत्पादोदकं पित्वा पुनर्जन्म ना भवेत्।'
 
इसके बाद प्रसाद वितरित कर भगवान को धीरे-धीरे झूला झुलाते हुए कृष्ण नाम का संकीर्तन करें।
  
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र

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