श्री कृष्ण जन्मोत्सव पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस व्रत को व्रतराज कहते हैं। सभी व्रतों में यह व्रत सबसे उत्तम माना जाता है। आइए जानें इसका हमारे जीवन में क्या महत्व है? कब है पूजन का वास्तविक शुभ मुहूर्त।
जन्माष्टमी को लेकर विद्वानों में मत-मतांतर है। कुछ इसे 2 सितंबर को बनाए जाने के पक्षधर हैं वहीं कुछ लोगों के अनुसार यह पर्व 3 सितंबर को मनाया जाएगा।
कब है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहू्र्त
शास्त्रों के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन वृष राशि में चंद्रमा व सिंह राशि में सूर्य था। इसलिए श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव भी इसी काल में ही मनाया जाता है। लोग रातभर मंगल गीत गाते हैं और भगवान कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में होने के कारण इसको कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं। चूंकि भगवान श्रीकृष्ण का रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, इसलिए जन्माष्टमी के निर्धारण में रोहिणी नक्षत्र का बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं।
काशी पंचांग के अनुसार इस बार अष्टमी 02 सितंबर 2018 को रात्रि 08:47 पर आरंभ होगी और यह 03 सितंबर 2018 को रात्रि 8.04 पर समाप्त होगी।
मध्य रात्रि में अष्टमी तिथि 02 सितंबर 2018 को मिलेगी। इसलिए इस बार जन्माष्टमी 02 सितंबर को मनाना उत्तम होगा। मध्य रात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म होगा और तभी जन्मोत्सव मनाया जाएगा।
इस पर्व पर पूजन का शुभ मुहूर्त रात में 23:58 से 00:44 तक करीब 45 मिनट का है। जन्माष्टमी का पारण 3 सितंबर को होगा। अष्टमी तिथि में गृहस्थजन एवं नवमी तिथि में वैष्णवजन व्रत पूजन करते हैं।
पूजन विधि :-
वैसे तो भक्तजन नियमतः भगवान की छठी, बरही इत्यादि बड़े धूमधाम से मनाते हैं। लगभग 12 दिन तक झांकी सजी रहती है किंतु समयाभाव के कारण ज़्यादातर गृहस्थ जन केवल जन्मदिन के दिन ही पूजापाठ करते हैं अथवा मंदिरों में दर्शन कर लेते हैं। विस्तृत पुजा केवल मंदिरों ही होती है ।
जो भक्तजन अपने घर के मंदिर में जन्माष्टमी के दिन भगवान का जन्म उत्सव मनाते हैं। वे स बसे पहले कृष्णजी या लड्डू गोपाल की मूर्ति को गंगा जल से स्नान कराकर दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, केसर के घोल से स्नान कराएं। फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं। सुंदर वस्त्र पहनाएं। रात्रि बारह बजे भोग लगाकर पूजन करें व फिर श्रीकृष्णजी की आरती करें। उसके बाद भक्तजन प्रसाद ग्रहण करें। व्रती दूसरे दिन नवमी में व्रत का पारणा करें।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शास्त्रों में इसके व्रत को ‘व्रतराज’ कहा जाता है।
मान्यता है कि इस एक दिन व्रत रखने से कई व्रतों का फल मिल जाता है। अगर भक्त पालने में भगवान को झुला दें, तो उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा करने से यश, कीर्ति, पराक्रम, ऐश्वर्य, सौभाग्य, वैभव, संतान प्राप्ति, धन, सपंन्नता, आरोग्य, आयु तथा सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाकर हर मनोकामना पूरी की जा सकती है।
इस व्रत को करने से यह 5 आशीर्वाद निश्चित रूप से मिलते हैं।
1. चारों तरफ से सफलता के संदेश आने लगते हैं। भगवान श्रीकृष्ण कर्मयोगी थे। अत: कर्म क्षेत्र में मनचाही ऊंचाइयां चाहते हैं तो इस व्रत को अवश्य करें।
2. परिवार में कलह या तनाव हो तो इस व्रत से निश्चित रूप से शांति और प्रेम का वातावरण निर्मित होता है।
3. धन, धान्य, संपदा, समृद्धि के लिए इस व्रत से शुभ अन्य कोई व्रत नहीं है।
4. नि:संतान दंपत्ति अगर इस दिन चांदी के कान्हा जी लाकर विधिविधान से पूजन करें तो उन्हें अवश्य ही संतान प्राप्ति का आशीष मिलता है।
5. मनचाहा प्रेम, शादी और शादी के बाद पति-पत्नी के रिश्तों में मधुरता के लिए भी यह व्रत सर्वश्रेष्ठ है।