Karnataka assembly elections : उत्तरी कर्नाटक के बेलगावी जिले में पिछले सात दशक से भाषीय आधार पर सीमा विवाद में फंसा खानापुर विधानसभा क्षेत्र विकास के लिए तरस रहा है। मराठी भाषी बहुल क्षेत्र खानापुर उन 264 गांवों में से एक है जिन्हें महाजन आयोग ने 1967 में पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र को देने की सिफारिश की थी।
मराठी भाषीय बहुल गांवों को स्थानांतरित करने को लेकर कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के बीच विवाद धीरे-धीरे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा बन गया। पड़ोसी महाराष्ट्र ने इन गांवों पर अपना दावा जताया है। महाराष्ट्र में सभी दलों का समर्थन हासिल करने वाले मराठी समर्थक सामाजिक-राजनीतिक संगठन महाराष्ट्र एकीकरण समिति (MES) इस उद्देश्य के लिए आवाज उठा रही है और वह कर्नाटक में विधानसभा चुनाव भी लड़ रही है।
इस क्षेत्र में एक चीनी फैक्ट्री चलाने वाले महालक्ष्मी ग्रुप के उपाध्यक्ष विठ्ठल महादेव कराम्बलकर ने कहा कि एमईएस ने हमेशा विकास नहीं बल्कि भाषायी मुद्दा उठाकर खानापुर में विधानसभा चुनाव लड़ा है। यहां की तीन पीढ़ियों ने कोई विकास नहीं देखा है।
कर्नाटक में 1960 में विधानसभा चुनाव शुरू होने के बाद से ही खानापुर विधानसभा सीट पर ज्यादातर एमईएस की जीत हुई है लेकिन अभी तक कोई भी उम्मीदवार पुन: निर्वाचित नहीं हुआ। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2008 में पहली बार यह सीट जीती थी जबकि कांग्रेस ने 2018 में पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की थी।
खानापुर में भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के महासचिव परशुराम नायक ने कहा कि भाजपा के कार्यकाल के दौरान खानापुर के विकास के लिए करीब 450 करोड़ रुपये की निधि आई। हमें उम्मीद है कि भाजपा फिर से जीतेगी और हमारी वर्तमान पीढ़ी को विकास देखने को मिलेगा।
राज्य पुनर्गठन कानून, 1956 और 1967 के महाजन आयोग की सिफारिशों को लागू न करने को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र सरकार की याचिका उच्चतम न्यायालय में लंबित है जिसके कारण खानापुर की अनदेखी की गई और वहां बस सुविधाएं तथा वन्य क्षेत्रों में स्कूल, उचित सड़कें, पुल तथा नहर और उच्च शिक्षण संस्थान समेत बुनियादी सुविधाओं की कमी है। न केवल खानापुर बल्कि विवाद में फंसे कई गांवों के निवासी इसके जल्द समाधान का इंतजार कर रहे हैं ताकि विकास कार्यों में और विलंब न हो।
महाजन आयोग ने 1967 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि 264 गांवों का महाराष्ट्र में विलय किया जाए तथा बेलगावी और 247 गांव कर्नाटक में ही बने रहें। हालांकि, महाराष्ट्र ने इस रिपोर्ट पर आपत्ति जताते हुए इसे पक्षपातपूर्ण और अतार्किक बताया था जबकि कर्नाटक ने इसका स्वागत किया था।
कन्नड़ कार्यकर्ता अशोक चंदार्गी ने कहा कि राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना यह विवाद अनसुलझा है जबकि दोनों राज्यों तथा केंद्र में भाजपा नीत सरकार है। उन्होंने कहा कि गतिरोध अभी तक बना हुआ है और लोग संघर्ष कर रहे हैं।
दुर्भाग्यपूर्ण रूप से, खानापुर विधानसभा क्षेत्र में सीमा विवाद कोई चुनावी मुद्दा नहीं बना है जहां भाजपा और कांग्रेस दोनों ने मजबूत मराठी उम्मीदवार क्रमश: विठ्ठल राव हलगेकर और अंजली निम्बालकर को प्रत्याशी बनाया है। एमईएस ने भी प्रभावशाली नेता मुरलीधर पाटिल को उम्मीदवार बनाया है।
यह पूछने पर कि निकट भविष्य में इस विवाद के हल होने पर क्या खानापुर के निवासी महाराष्ट्र का हिस्सा बनने से खुश होंगे, इस पर गृहिणी लक्ष्मी बाजीराव नायक ने कहा कि हमारे पास यहां बेहतर सुविधाएं हैं और हम स्थानांतरित होना नहीं चाहते। मुझे आवास योजना के तहत 1.50 लाख रुपये की वित्तीय मदद मिली और मेरे ससुर को पीएम-किसान के तहत अभी तक 4,000 रुपये मिले हैं।
हालांकि, खानापुर में कुछ लोगों का वर्ग महाराष्ट्र में विलय चाहता है क्योंकि उनके लिए कन्नड़ भाषा में लेन-देन मुश्किल है। उदाहरण के लिए संपत्ति कागजात कन्नड़ भाषा में है जिसे यहां कई लोग पढ़ नहीं सकते। (भाषा)