एक्जाम के दिनों पर कविता : परीक्षा के रूप-रंग
कभी कठिन कभी सरल।
कदम-कदम पर होती परीक्षा,
कभी ठोस कभी तरल।
उधार की पूंजी से,
नहीं चलता है काम।
अपनी ही पूंजी से,
मिलता सुयश और नाम।
परीक्षा के होते हैं,
कितने ही रूप-रंग।
कभी लिखित कभी मौखिक,
तो कभी प्रकृति के संग।
हर मौसम लेता है परीक्षा,
कभी हवा गरम तो कभी नरम।
बड़ी-बड़ी सुनामी लहरें,
तोड़ देती हैं सारे भरम।
परीक्षा ही परीक्षा में,
बीत जाता सारा जीवन।
कभी मिलता विष ही विष,
तो कभी मिल जाता संजीवन।
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