Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कविता : तारे घबराते हैं

हमें फॉलो करें कविता : तारे घबराते हैं
-- डॉ. रूपेश जैन 'राहत'

तारे घबराते हैं
शायद इसीलिये टिमटिमाते हैं
सूरज से डरते हैं
इसीलिये दिन में छिप जाते हैं।
 
चांद से शरमाते है
पर आकाश में निकल आते हैं
तारे घबराते हैं
शायद इसीलिये टिमटिमाते हैं।
 
लोग कहते हैं
अंतरिक्ष अनंत है
लेकिन मैंने देखा नहीं
मैं तो केवल इतना जानता हूं 
 
सूरज बादल में छिप जाता है
चांद बादल में छिप जाता है
सो तारे जब डरते शरमाते होंगे
बादल में छिप जाते होंगे।
 
तारे घबराते हैं
शायद इसीलिये टिमटिमाते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

प्रेरक कहानी : आप कैसे हैं, आशावादी या निराशावादी?