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नई कविता : अभी खुला है नया मदरसा

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

नहीं हुआ है ज्यादा अरसा,
अभी खुला है नया मदरसा।
 
हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी भी,
केजी वन है, केजी टू भी।
इसके आगे पहला दर्जा।
 
मिलती स्वादभरी तालीमें।
जैसे मिलती शकर घी में।
होती ज्ञान पुष्प की वर्षा।
 
मानवता का पाठ पढ़ाते।
मिल-जुलकर रहना सिखलाते।
जन-जन में यह होती चर्चा।
 
जाति-धर्म सब करें दुहाई।
मिलकर रहना ही सुखदायी।
बांट रहे घर-घर यह पर्चा।

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